क्या फडणवीस व शिंदे के बीच बढ़ रही है दरार ?

किसी को यह समझने में मुश्किल नहीं होनी चाहिए कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीच दरार बढ़ती जा रही है। फडणवीस  मुख्यमंत्रियों के खिलाफ जाने के लिए हमेशा तैयार ही रहते हैं जैसा कि उन्होंने उद्धव बाला साहेब ठाकरे जैसे नेता के मुख्यमंत्रित्व काल में किया था। क्या यह एक बेतुकी बात होगी, जो मूल मुद्दे से भटकती है कि मुम्बई शहर में सब कुछ ठीक नहीं है, जहां जल्द ही निकाय चुनाव होने वाले हैं। मुख्यमंत्री फडणवीस और उप-मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को अपनी कमर कस लेनी चाहिए। ऐसा प्रभाव दिया जा रहा है जैसे शिंदे खलनायक हैं और फडणवीस एक योद्धा। शिंदे को ‘हमारे बीच ठंडा-ठंडा, कूल-कूल’ रिश्ता है, जैसे बेतुके बयान देने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
सच तो यह है कि एकनाथ शिंदे द्वारा किसी भी दरार से इन्कार करना उन ‘अफवाहों के खिलाफ है कि महायुति आंतरिक कलह की चपेट में है और सत्ता परिवर्तन की ज़रूरत है। फिर किसी तुलना से बचने के लिए शिंदे ने कहा कि अगर उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते, तो आज शिवसेना एक इकाई होती। पुरानी यादें उप-मुख्यमंत्री को दुखी कर रही हैं और मुख्यमंत्री में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह अपने डिप्टी को पीछे हटने के लिए कह सकें। ऐसा कुछ तो उन्हें विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत के समय करना चाहिए था।
मौजूदा दरार के लिए किसे दोषी ठहराया जाना चाहिए? महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए भाजपा को शिंदे सेना की ज़रूरत नहीं थी और पहले तो उप-मुख्यमंत्री की ज़रूरत ही नहीं थी, दो की तो बात ही छोड़िए। शिंदे अपने सांसदों, विधायकों और पार्टी के पदाधिकारियों के साथ बैठक करके अपनी सेना की रणनीति तैयार कर रहे हैं। शिंदे ने भाजपा नेतृत्व से सीख लेते हुए एक समानांतर व्यवस्था स्थापित की है, जिसका उदाहरण मंत्रालय में एक चिकित्सा सहायता प्रकोष्ठ है, जो शिंदे की पहल है, जो आम तौर पर लोगों की मदद करने के लिए है। इस पर कौन आपत्ति करेगा? उप-मुख्यमंत्री का चिकित्सा सहायता प्रकोष्ठ पहले भी स्थापित किया गया था। यह मुख्यमंत्री के चिकित्सा राहत कोष प्रकोष्ठ के साथ समन्वय करेगा और गरीब और जरूरतमंद मरीज़ों की मदद करेगा। इसलिए काम का दोहराव नहीं है। केवल एक सीएम वार-रूम है। अब भी प्रमुख परियोजनाओं को वार रूम से आगे बढ़ाया जायेगा। क्या यही है फडणवीस और शिंदे के बीच तथाकथित दरार? इसमें छिपे हुए तत्व होने चाहिए। शायद शिंदे नहीं चाहते कि उनके समर्थक उद्धव ठाकरे की शिवसेना में वापिस चले जायें। यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि जब मुम्बई में नगर निगम चुनावों की बात आती है तो शिवसेना (यूबीटी) को शिंदे सेना पर बढ़त हासिल है, जो देश की वित्तीय राजधानी में वर्षों से शिवसेना के वर्चस्व पर निर्भर करता है। शिंदे ने अपने समर्थकों को यह बात बतायी और उनसे कहा कि वे शिवसेना (यूबीटी) को एक और शिकस्त देने के लिए तैयार रहें, जैसा कि उन्होंने 2024 के विधानसभा चुनावों में किया था। 
शिंदे का मानना है कि निकाय चुनावों में उद्धव ठाकरे की शिवसेना को हराने से बालासाहेब ठाकरे द्वारा स्थापित सेना फिर टूट जायेगी तथा शिंदे सेना का विस्तार होगा। 
शिंदे कहते हैं कि उनकी शिवसेना को विस्तार करना चाहिए और निकाय चुनाव शिवसेना (यूबीटी) के लिए खतरे की घंटी बजा देंगे। संक्षेप में उपमुख्यमंत्री शिंदे के पास शिवसेना के अपने गुट के लिए बड़ी योजनाएं हैं और वे कार्य करने वाले हैं। स्वाभाविक रूप से भाजपा एकनाथ शिंदे से सावधान है और बृहन्मुम्बई नगर निगम चुनाव एक परीक्षा है, जिसमें शिंदे और उद्धव ठाकरे दोनों ही जीत के लिए लड़ रहे हैं। इस मामले में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस सबसे अलग हैं, जो विधानसभा चुनाव के बाद सबसे आगे थे, जब उन्हें बड़ा बहुमत मिला था मुख्यमंत्री फडणवीस ने अपनी सख्त छवि खो दी है जबकि शिंदे खुद को ‘प्रतिस्थापन’ के रूप में पेश कर रहे हैं। 
शिंदे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ तुलना करने की कोशिश की। उन्होंने कहा, ‘हम विकास का विरोध करने वालों के खिलाफ लड़ाई में हैं।’ लगभग ऐसा ही जैसे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मोदी और मोदी के नारे ‘विकसित भारत’ के बीच खड़े हों। इस बीच, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस शिंदे के सामने अपनी धार खो रहे हैं, जिन्हें ‘सुपर चीफ  मिनिस्टर’ को जवाब देने की ज़रूरत नहीं है। (संवाद)

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