" कुलभूषण जाधव का मामला " आईसीजे की अनदेखी कर रहा है पाक  

हालांकि कुलभूषण जाधव मामले की गेंद फिलहाल पाकिस्तान के पाले में है, लेकिन ऐसे स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि दोनों भारत व पाकिस्तान जल्द ही फिर से इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) में दस्तक दे सकते हैं। पाकिस्तान किस प्रकार की समीक्षा व्यवस्था अपनाता है, इस बात का भी इस संभावना पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। आईसीजे निर्णय के कुछ सप्ताह बाद ही पाकिस्तान ने मौखिक नोट के ज़रिये भारत को जाधव तक बिना अड़चन की पहुंच देने से इन्कार कर दिया था। भारत के वकील हरीश साल्वे ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि अगर पाकिस्तान का व्यवहार असंतोषजनक रहा तो नई दिल्ली आईसीजे लौटने में संकोच नहीं करेगी। आईसीजे नियमावली पार्टियों को निर्णय की व्याख्या के लिए उसके पास पुन: लौटने की अनुमति प्रदान करती है। इसलिए जाधव मामले में अभी अंतिम शब्द नहीं लिखा गया है।
17 जुलाई, 2019 को जब जाधव मामले में आईसीजे का अवार्ड प्रकाशित हुआ तो दोनों भारत व पाकिस्तान ने इसे अपनी-अपनी जीत घोषित किया था। सत्य संभवत: इसके कहीं बीच में है। अवार्ड ने मेरिट के आधार पर भारत के इस दावे को उचित ठहराया कि पाकिस्तान विएना कन्वेंशन ऑन कौंसुलर  रिलेशंस (वीसीसीआर) के उल्लंघन का दोषी है। एक बार नहीं बल्कि अनेक बार उसने समझौते के अनुच्छेद 36 के तहत जाधव को उनके अधिकारों की जानकारी प्रदान नहीं की। जाधव की गिरफ्तारी की सूचना भारत को अविलम्ब प्रदान नहीं की और जाधव को कौंसुलर एक्स्सेस प्रदान नहीं की गई। लेकिन आईसीजे ने भारत के दो महत्वपूर्ण दावे ठुकरा दिए। 
न्याय संगत ट्रायल अधिकार और समाधान 
भारत ने अपना अधिकतर मामला इंटरनेशनल कविनेंट ऑन सिविल एंड पोलिटिकल राइट्स (आईसीसीपीआर) के अनुच्छेद 14 पर आधारित किया था, जिसके तहत व्यक्तियों को न्याय-संगत ट्रायल अधिकार प्राप्त है। जाधव को सैन्य ट्रिब्यूनल ने उस वीडियो को साक्ष्य मानते हुए दोषी ठहराया, जिसमें दबाव की स्थितियों में उनसे इकबाल-ए-जुर्म कराया गया था और भारतीय राजनयिकों को जाधव के लिए कानूनी प्रतिनिधि की व्यवस्था नहीं करने दी। इसलिए भारत का कहना था कि जाधव के ट्रायल में अनुचित प्रक्रिया अपनायी गई थी। लेकिन जैसा कि अनुमान था, आईसीजे ने अपना निर्णय वीसीसीआर के ऑप्शनल प्रोटोकॉल के अनुच्छेद 1 के तहत दिया, जो आईसीजे को आवश्यक अधिकार केवल अर्जी से उत्पन्न विवादों या कौंसुलर कन्वेंशन की व्याख्या के संदर्भ में ही देता है। इस चयन का दुर्भाग्यपूर्ण नतीजा यह था कि अन्य अंतर्राष्ट्रीय नियमों के उल्लंघन पर जो विवाद था, जैसे आईसीसीपीआर के तहत मानव अधिकार जिम्मेदारियां। वह आईसीजे के न्यायिक क्षेत्र से बाहर हो गया। भारत ने आईसीसीपीआर व वीसीसीआर को यह कहकर मिलाने का प्रयास किया कि वीसीसीआर भी वास्तव में मानव अधिकार समझौता है और प्रभावी क्षतिपूर्ति के लिए आईसीसीपीआर को शामिल करना आवश्यक है, लेकिन इस दावे को पहली फुर्सत में ठुकरा दिया गया। भारतीय दृष्टिकोण से आईसीजे अवार्ड का अधिक चिंताजनक पहलू यह था कि भारत की इस प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया गया कि सैन्य ट्रिब्यूनल के निर्णय को रद्द करते हुए जाधव को रिहा कर दिया जाये। इसके विपरीत आईसीजे ने कहा कि उचित समाधान यह होगा कि पाकिस्तान ट्रिब्यूनल के निर्णय की प्रभावी समीक्षा व पुनर्विचार करे। साधारण शब्दों में इसका अर्थ यह है कि पाकिस्तान जाधव को कौंसुलर एक्स्सेस प्रदान करे और उनके दोषी पाए जाने व सज़ा पर पुनर्विचार करे और संभवत: उसे बदल दे।
आईसीजे का यह निर्णय कई कारणों से चिंताजनक है। इस प्रकार के समाधान का इतिहास उत्साहजनक नहीं है कि इसका सिर्फ  एक बार ही प्रयोग किया गया है, लाग्रैंड व अवेना मामले में, इसमें भी इन क्रमश: जर्मनी व मेक्सिको के नागरिकों को अमरीका ने कौंसुलर एक्स्सेस प्रदान नहीं किया था। इस समाधान को असंतोषजनक रूप से लागू किया गया और अमरीका ने आईसीजे के निर्णय की प्रतिक्रिया में कमज़ोर समीक्षा की। दूसरा यह कि इस समाधान में जाधव के उचित ट्रायल अधिकारों के उल्लंघन का संज्ञान ही नहीं है। इसका अर्थ यह है कि पाकिस्तान समीक्षा प्रक्रिया सैन्य ट्रिब्यूनल के ज़रिये ही करा सकता है जो जबरन तैयार किये गये वीडियो को ही आधार मानेगा। दरअसल, यह समाधान अति अस्पष्ट है और यह बड़ा कारण है कि पार्टियां आईसीजे में फिर लौट सकती हैं।

     —इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर