" मामला खेतों में पराली जलाने का " प्रभावी कदमों की ज़रूरत

गत कुछ वर्षों से पंजाब सरकार ने अपनी पूरी शक्ति लगाई हुई है कि धान की कटाई के बाद किसान खेतों में पराली को आग न लगायें। प्रशासन की ओर से अब तक समाचार-पत्रों द्वारा इस संबंध में सूचनाएं और अपीलें भी प्रकाशित की जाती रही हैं। पराली को आग लगाने के नुक्सानों का भी विस्तार दिया जाता रहा है। गत कुछ वर्षों से प्रशासन द्वारा किसानों के विरुद्ध ऐसा करने पर केस भी दर्ज किये गये और उनको जुर्माने भी लगाये गये। परन्तु किसानों की शिकायत रही है कि इसके लिए पर्याप्त मात्रा में मशीनरी न होने के कारण वह पराली को खेतों में खपाने की बजाये आग लगाने को बेहतर समझते हैं ताकि आगामी फसल के लिए भूमि तैयार की जा सके। गत वर्ष केन्द्र सरकार द्वारा भी राज्य सरकार को पर्याप्त मशीनरी के लिए 665 करोड़ रुपए देने का ऐलान किया गया था, ताकि पर्याप्त मशीनरी खरीदी जा सके। इस संबंध में तंदुरुस्त मिशन और कृषि विभाग के सचिव काहन सिंह पन्नू ने बताया है कि गत समय के दौरान सस्ती दरों पर 28 हज़ार मशीनें दी गई थी और इसके लिए 260 करोड़ रुपये की धन-राशि आरक्षित रखी गई थी। इस वर्ष भी 26 हज़ार नई मशीनें सस्ती दरों पर किसानों को दी जानी है। इसके साथ ही धान की कटाई करने वाली कम्बाइनों में ऐसी मशीनरी लगाने के लिए कड़े निर्देश दिये गये हैं। इनसे खेतों में पराली की मात्रा बहुत कम रह जाती है। इसके अलावा राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा पंजाब की सरकारों को यह निर्देश दिया है कि वह लगातार इस बात का ध्यान रखें कि किसानों को पराली खेतों में न जलाने दी जाए। इस संबंध में सार्वजनिक भागीदारी को भी उत्साहित किया जाना चाहिए और किसानों में इसके प्रति अधिक से अधिक जागरुकता बढ़ाई जानी चाहिए। इस बात का भी अधिक से अधिक प्रयास किया गया है कि हैप्पी सीडर और सुपर सीडर मशीनों का प्रयोग किया जाए ताकि पराली को कतर कर उसकी खेत में ही खपत हो सके  और इसके साथ ही बिजाई भी की जा सके। एक रिपोर्ट के अनुसार किसानों ने सबसिडी वाली ऐसी मशीनें बड़े स्तर पर खरीदनी शुरू कर दी हैं। इस संबंध में पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी की पूरी सहायता ली जा रही है। प्रशासन द्वारा किसानों के साथ-साथ सहकारी संगठनों और सोसायटियों को मशीनें मुहैया करवाने का प्रयास किया जा रहा है ताकि किसानों पर ऋण का बोझ कम हो सके। इस बार प्रशासन ने यहां तक भी निर्देश दिये हैं कि पंचायती भूमि पर किसी भी तरह की फसल के बाद आग न लगाई जाए, जिन किसानों की यह ज़मीनें हैं उन किसानों को भी सख्ती से यह बता दिया गया है। सभी ज़िलों में उच्चाधिकारियों की ड्यूटी लगाई गई है कि वह निचले स्तर पर इसकी निगरानी करें। यहां तक कि जिस खेत में पराली जलाई जाती है उस भूमि की गिरदावरी में रेड एंट्री दर्ज की जाए। मार्किट कमेटियों तथा रजिस्टर्ड आढ़तियों को इस कार्य को सही ढंग से मुक्म्मल करने के लिए कहा गया है। परन्तु अफसोस इस बात का है कि इतने प्रयासों के बावजूद किसानों द्वारा पराली को आग लगाने के समाचार लगातार आने शुरू हो गये हैं। गत दो सप्ताह में देश भर में पौने 300 के लगभग ऐसे मामले सामने आ चुके हैं। इसके लिए कड़े निर्देश दिये गये हैं। यदि इस मामले में प्रशासन और सचेत होकर प्रभावी ढंग से नज़रसानी शुरू करता है और इसके साथ ही कड़े प्रशासनिक कदम भी उठाये जाते हैं तो इन घटनाओं में कमी आने की उम्मीद की जा सकती है। आगामी समय में लगातार हर पक्ष से इस संबंध में ध्यान देकर इस समस्या को पूरी तरह खत्म किया जाना आवश्यक है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द