क्या ‘मुठभेड़’ से दुष्कर्म रुक जायेंगे ?

आज (6 दिसम्बर) सुबह अखबार खोलते ही इस खबर पर नजर पड़ी कि जिला उन्नाव के एक गांव में एक 23 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता जब अपने घर से अदालत के लिए निकली तो पांच बदमाशों, जिनमें से दो उसके दुष्कर्म के आरोपी हैं, ने पहले उसे डंडों से बुरी तरह पीटा, फि र उस पर चाकुओं से ताबड़-तोड़ हमला करने के बाद उस पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी। 90 प्रतिशत जली लड़की को एयरलिफ्ट करके उपचार हेतु दिल्ली के एक अस्पताल में भेजा गया, जहां उसकी स्थिति नाजुक बनी हुई है। ध्यान रहे कि यह उन्नाव की वह लड़की नहीं है, जिसके दुष्कर्म का आरोप पूर्व भाजपा नेता कुलदीप सेंगर पर है। वह 19 वर्षीय लड़की 28 जुलाई को राय बरेली रोड पर उस समय गंभीर रूप से घायल हो गई थी, जब एक ट्रक ने उसकी कार में टक्कर मार दी थी। इस लड़की का भी दिल्ली के सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में उपचार चल रहा है, लेकिन चार माह के बाद भी वह अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम नहीं है। बहरहाल, ऐसी ही अन्य दुखद व चिंताजनक खबरों पर भी नजर गई- बक्सर में एक महिला का दुष्कर्म करने के बाद गोली मारकर, जलाकर उसकी हत्या कर दी गई। मालदा में एक महिला का जला हुआ शव मिला... लेकिन बीच में ही हैदराबाद से व्हाट्सएप्प मैसेज आया कि पशु चिकित्सक के सामूहिक दुष्कर्मी व जलाकर हत्या करने वाले चारों अभियुक्तों को पुलिस ने ‘मुठभेड़’ में मार गिराया है। यह ‘मुठभेड़’ हैदराबाद से 50 किमी दूर महबूब नगर जिले के चटनपल्ली गांव में हुई। इन चारों अभियुक्तों को 4 दिसम्बर को पुलिस हिरासत में सौंपा गया था, उसी रात को पुलिस उन्हें उस जगह ले गई जहां महिला डाक्टर का जला हुआ शव बरामद किया गया था। पुलिस के अनुसार ‘वहां जब घटना का सीन रीक्रिएट किया जा रहा था तो अभियुक्तों ने पुलिस पर हमला करने की कोशिश की जिसके बाद पुलिस की जवाबी कार्यवाही में वह मारे गये’। तेलंगाना पुलिस के एडीजी (कानून व्यवस्था) जितेंद्र ने बताया कि शुक्रवार (6 दिसम्बर) तड़के 3 बजे चारों संदिग्धों की मुठभेड़ में मौत हुई। गौरतलब है कि 27 वर्षीय महिला डाक्टर के सामूहिक दुष्कर्म व हत्या की वीभत्स घटना के बाद देशभर में वैसे ही विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये थे जैसे दिल्ली के 16 दिसम्बर 2012 के निर्भया कांड के बाद हुए थे और केंद्र सरकार को जस्टिस वर्मा आयोग की सिफारिशों के अनुसार आपराधिक कानूनों में सख्ती लाने के लिए संशोधन करना पड़ा था। सड़क से संसद तक हो रहे विरोधों का तेलंगाना राज्य सरकार पर जबरदस्त दबाव पड़ रहा था, यह ‘मुठभेड़’ उसी दबाव से निकलने का प्रयास प्रतीत होती है। इस ‘मुठभेड़’ की प्रक्रिया पर अनेक प्रश्न खड़े किये जा सकते हैं (पुलिस रात में सीन क्यों रीक्रिएट कर रही थी? आदि), लेकिन यहां सवाल ही दूसरा है- क्या इस किस्म की कार्यवाही से देश में महिलाओं के खिलाफ  निरंतर बढ़ रहे यौन अपराधों पर विराम लगाया जा सकेगा? ध्यान रहे कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले वर्ष की तुलना में महिलाओं के खिलाफ  हिंसा में 6 प्रतिशत का इजाफा हुआ है, जिसमें से 27.9 प्रतिशत मामले पति व अन्य रिश्तेदारों की क्रूरता से संबंधित थे। 32,559 दुष्कर्मों में से एक तिहाई नाबालिगों से संबंधित थे। ऐसा कोई अध्ययन या रिकॉर्ड नहीं है जिससे यह साबित होता हो कि फांसी की सजा या ‘मुठभेड़’ से इतना डर बैठ जाता है कि अपराध होने बंद हो जाते हैं। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सत्ता संभालने के बाद अपराधों पर नियंत्रण करने के लिए ‘मुठभेड़ की पॉलिसी’ अपनायी, सैंकड़ों ‘मुठभेड़’ अंजाम दिए गये, लेकिन अपराधों में कमी आने की बजाय उनमें वृद्धि ही हो रही है, बल्कि अपराधों में अधिक वीभत्सता आ गई है, जैसा कि उन्नाव की ताजा घटना से स्पष्ट है। उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रघुवेंद्र प्रताप सिंह का तो यहां तक कहना है कि भगवान राम भी 100 प्रतिशत अपराध-मुक्त समाज की गारंटी नहीं ले सकते। दरअसल, अपराधों को नियंत्रित करने के लिए वर्तमान कानून पर्याप्त हैं, बशर्ते कि उन्हें ईमानदारी, निष्पक्षता व सख्ती से लागू किया जाये। इसके लिए आवश्यक है कि पुलिस महकमे को स्वायतत्ता प्रदान करते हुए उसे जवाबदेह व प्रोफेशनल बनाया जाये। सत्तारूढ़ दल के अधीन होने के कारण पुलिस पर अधिकतर मामलों में राजनीतिक दबाव होता है, जिससे वह निष्पक्षता से काम नहीं कर पाती। सत्तारूढ़ दलों से जुड़े अपराधियों को लगता है कि उन्हें राजनीतिक शरण प्राप्त है, इसलिए कुछ भी कर लें उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा। फि र पुलिस का गैर-पेशेवर रवैय्या भी काफी हद तक अपराधों के लिए जिम्मेदार है, उन्नाव की जिस 23 वर्षीय लड़की को 5 दिसम्बर की सुबह जलाया गया, वह पिछले साल दिसम्बर में अपनी शिकायत लेकर पुलिस के पास गई थी। लेकिन इस साल अप्रैल में उसकी एफ आईआर दर्ज हुई और जब आरोपी जमानत पर छूटे तो पीड़िता की सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं की गई। हैदराबाद में भी महिला डॉक्टर के परिजन एक पुलिस स्टेशन से दूसरे पुलिस स्टेशन दौड़ते रहे और हर जगह यही जवाब मिला कि यह उनके कार्यक्षेत्र का केस नहीं है। अगर इसमें कई घंटे बर्बाद न होते तो शायद डॉक्टर आज जिन्दा होती। पुलिस व्यवस्था में सुधार के साथ-साथ यह भी जरूरी है कि इस तरह के मामलों के ट्रायल तेजी से समाप्त हों, लेकिन अदालतों में इतने अधिक मामले लम्बित पड़े हैं कि ऐसा दुर्लभ ही होता है। गवाहों की सुरक्षा विश्वसनीय नहीं है और अदालती कार्यवाही भी लम्बी चलती रहती हैं जिससे रसूख वाले आरोपी अपने आपको कानून के शिकंजे में आने से बचा लेते हैं। पिछले साल दिसम्बर में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकारों को आदेश दिया था कि गवाह सुरक्षा योजना एक साल के भीतर लागू की जाये। अब सुप्रीम कोर्ट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कितने राज्यों ने इसे लागू किया है? हाल के दिनों में हैदराबाद, लुधियाना व नागपुर पुलिस ने महिला सुरक्षा की मांग की प्रतिक्रिया में हेल्पलाइन व रात में महिलाओं को घर ड्राप करने की सुविधा उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है। इससे कुछ महिलाओं को मदद मिलेगी, लेकिन सुरक्षा का माहौल होना ज्यादा जरूरी है ताकि महिलाएं किसी भी समय अकेली बाहर आ जा सकें। लेकिन इस समय तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का सिलसिला थमेगा नहीं और यह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मनाक स्थिति है, हैदराबाद की अपराधियों की इस ताजा ‘मुठभेड़’ के बावजूद।

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