देश के माथे पर कलंक- सख्त कानून के बावजूद क्यों नहीं रुक रही दुष्कर्म की घटनाएं?
चंडीगढ़, 18 दिसम्बर (विक्रमजीत सिंह मान): दुष्कर्म जैसे घिनौने अपराध के खिलाफ देश में सख्त कानून बनाये गये, ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए, आंदोलन चलाये गये पर दुष्कर्म की घटनाएं इसके बावजूद भी रुक नहीं रहीं। ताज़ा आंकड़ों के अनुसार सिर्फ 6 महीनों में (1 जनवरी, 2019 से 30 जून 2019) के दौरान भारत में बच्चियों से दुष्कर्म के 24,212 मामले दर्ज किये गये। इस हिसाब से 1 महीने में 3,000 एक दिन में 130 और हर 5 मिनट में एक दुष्कर्म का मामला दर्ज हुआ है, जो अपने आप में हमारे देश के माथे पर एक बड़ा कलंक है। वर्ष 2012 में हुए निर्भया दुष्कर्म कांड ने देश को हिला कर रख दिया था। लोग सड़कों पर उतरे, लड़कियों ने रातों को कैंडल मार्च निकाले, देश दुनिया में इस घटना की निंदा हुई पर इसके बाद ही ऐसी घटनाओं की रफ्तार में कोई ़खास असर नहीं पड़ा।
महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामले में 4,882 की संख्या के साथ 2017 में मध्य प्रदेश सबसे आगे रहा। दिल्ली में इन घटनाओं की दहशत भी किसी से छुपी नहीं है। एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों के अनुसार 2017 में देश में 28,947 महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाएं दर्ज की गईं। इस मामले में उत्तर प्रदेश 4,816 और महाराष्ट्र 4,189 दुष्कर्म की घटनाओं के साथ देश में क्रमवार दूसरे व तीसरे स्थान पर रहा। नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामले में भी मध्य प्रदेश देश में सबसे आगे बताया जा रहा है। भारत में दुष्कर्म के कुछ ऐसे मामले भी सामने आए जिन घटनाओं ने देश दुनिया को हिला कर रख दिया।
बेअसर रही ‘बेटी बचाओ’ मुहिम : देश में दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ मुहिम भी शुरू की गई, पर जितने जोश से इस मुहिम को चलाया गया उसके बावजूद यह मुहिम अपने मनों में महिलाओं और बच्चियों के लिए घिनौने अपराध की सोच पाले बैठे दरिंदों पर बेअसर ही दिखाई दी। वर्ष 2019 तक पहुंचते-पहुंचे इस मुहिम का यह हाल देखने को मिला कि भाजपा के राजनीतिक विरोधियों ने यह कहना शुरू कर दिया कि भाजपा सरकार ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि अंतत: बेटियों को बचाया किससे जाये।
मानसकिता बदलने की ज़रूरत : देश में दुष्कर्म की घटनाओं के खिलाफ रोष के चलते धरने प्रदर्शन, विरोध और आंदोलन करना इन्सान फज़र् और समय की ज़रूरत है, पर इन घटनाओं को तब ही विराम लगाया जा सकता है यदि ऐसी घटनाओं को अंजाम देने का इरादा रखने वालों की सोच में बदलाव आए। ‘बेटी पढ़ाओ’ मुहिम बेशक चलनी चाहिए पर ‘बेटा पढ़ाओ और समझाओ’ मुहिम भी हमेशा जारी रखनी चाहिए।