देश में स्पिन क्रांति के जनक थे बिशन सिंह बेदी
भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले सर्वश्रेष्ठ स्पिन गेंदबाज़ों की जब भी सूची बनायी जायेगी, तो उसमें बिशन सिंह बेदी का नाम न केवल शामिल किया जायेगा बल्कि सुनहरे अक्षरों में लिखा जायेगा। बतौर एक क्रिकेटर, एक कमेंटेटर और एक अच्छे इंसान वह मैदान में और मैदान के बाहर सबके प्रिय थे, विशेषकर इसलिए कि खिलाड़ियों के अधिकारों के लिए वह हर समय संघर्ष करने के लिए तैयार रहते थे। उनका लम्बी बीमारी के बाद 23 अक्तूबर 2023 को नई दिल्ली में निधन हो गया। बेदी का जन्म 25 सितम्बर 1946 को हुआ था। एक लेफ्ट आर्म स्पिन गेंदबाज़ के तौर पर उन्होंने भारत के लिए 67 टेस्ट खेले, जिनमें से 22 में वह कप्तान थे। 1966 व 1979 के बीच वह भारत की विख्यात स्पिन चौकड़ी का हिस्सा थे, जिसके अन्य सदस्य इरापल्ली प्रसन्ना, भगवत चंदरशेखर व एस वेंकट राघवन थे। 266 टेस्ट विकेट लेने वाले बेदी अपनी स्पष्ट व बेबाक राय रखने के लिए विख्यात थे।
बेदी को भारत में स्पिन क्रांति का जनक भी माना जा सकता है। उन्हें 1970 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। अपनी चतुर व कलात्मक गेंदबाज़ी की बदौलत बेदी ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध किया। कलकत्ता में 1969-70 में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के एक पारी में 98 रन देकर 7 विकेट लिए और 1977-78 में पर्थ में मैच में 194 रन देकर 10 विकेट लिए। बतौर कप्तान उनकी पहली टेस्ट जीत वेस्टइंडीज के खिलाफ पोर्ट ऑफ स्पेन में 1976 में आयी थी जब भारत ने चौथी पारी में तत्कालीन रिकॉर्ड 406 रन बनाये थे। प्रति टेस्ट मेडेन ओवर फेंकने में बेदी (16.35) सिर्फ लांस गिब्ब्स (16.62) से ही पीछे थे। चूंकि स्पिन गेंदबाज़ी में अंगों में लचीलापन चाहिए, इसलिए बेदी अपने कंधों व उंगलियों की एक्सरसाइज करने के लिए अपने कपड़े स्वयं धोते थे। दस एक दिवसीय मैच खेलने वाले बेदी का 12 ओवर कोटा वाले एक दिवसीय मैच में सबसे किफायती (12-8-6-1) गेंदबाज़ी करने का रिकॉर्ड है, जोकि 1975 विश्व कप में उन्होंने हेडिंगले में ईस्ट अफ्रीका के विरुद्ध बनाया था। बेदी के हिस्से और गर्वीली उपलब्धि है। प्रथम श्रेणी में क्रिकेट में 1500 से ज्यादा विकेट लेने वाले वह एकमात्र भारतीय खिलाड़ी थे। उन्होंने 370 प्रथम श्रेणी मैचों में कुल 1560 विकेट झटके थे।
साल 2008 में विजडन क्रिकेटर अल्मनैक ने बेदी को उन पांच सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटरों में शामिल किया जो कभी विजडन क्रिकेटर ऑ़फ द इयर के लिए न चुने जा सके। घरेलू क्रिकेट में बेदी ने मुख्यत: दिल्ली की टीम का प्रतिनिधित्व किया। क्रिकेट से रिटायर होने के बाद वह अनेक प्रतिभाशाली भारतीय क्रिकेटरों के कोच व मेंटर बने। क्रिकेट मैदान से अलग उन्होंने बतौर कमेंटेटर भी काम किया। अपने 75वें जन्मदिन से एक दिन पहले बेदी व्हीलचेयर में बैठकर ‘द सरदार ऑ़फ स्पिन’ पुस्तक के विमोचन समारोह में शामिल हुए थे, जोकि उनके ही जीवन व उपलब्धियों पर लिखी गई है। बेदी एक ऐसे आलोचक थे जो हमेशा बिना किसी लाग-लपेट के सीधी बात करते थे। गोलमोल लफ्फाज़ी उनकी आदत का हिस्सा ही नहीं थी। मसलन, बेदी ने तमिल मूल के श्रीलंकाई क्रिकेटर मुथैया मुरलीधरण (जो टेस्ट क्रिकेट में सबसे अधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज़ हैं) की गेंदों को ‘भट्टा’ कहते हुए उन्हें कभी गेंदबाज़ नहीं माना। वह स्पष्ट कहते थे कि मुरलीधरण गेंदबाज़ हैं ही नहीं।
गौरतलब है कि ऑस्ट्रेलिया के एक अंपायर ने तो मुरलीधरण के एक्शन को रिपोर्ट करने की बजाय उनकी गेंदों को टेस्ट के दौरान ही ‘नो बॉल’ घोषित किया था।
इसके बावजूद बेदी के प्रशंसकों व दोस्तों की कमी नहीं थी, जोकि केवल भारत में ही नहीं हैं बल्कि दुनियाभर में हैं। लगभग दो साल पहले, अपने 75वें जन्मदिन से पहले, बेदी की हार्ट सर्जरी हुई थी, जिसके तीन दिन बाद उन्हें ब्रेन क्लॉट के कारण स्ट्रोक पड़ गया था, फलस्वरूप रिस्की सर्जरी की आवश्यकता थी। तब उनकी पत्नी अंजू को इसकी मंजूरी देने के संदर्भ में फैसला लेना था। अंजू को याद आया कि बेदी अपने साथियों से हमेशा कहते थे कि जब तक आखरी गेंद न फेंक ली जाये तब तक खेल खत्म नहीं होता है। यह याद आते ही अंजू ने दूसरी सर्जरी की अनुमति दे दी। तीन दिन के भीतर दो बड़ी व गंभीर सर्जरी हुई थीं। हार्ट अटैक व स्ट्रोक के साथ-साथ बेदी को कोविड-19 संक्रमण भी हो गया था। उनके स्वास्थ व जीवन को लेकर दिल्ली के गंगा राम अस्पताल में हर कोई चिंतित था। कपिल देव, जिन्होंने बेदी की कप्तानी में अपना करियर आरंभ किया था, जब अस्पताल में अपने कप्तान को जीवन व मृत्यु के बीच संघर्ष करता हुआ देखते थे तो उनकी आंखों से आंसू छलकने लगते थे।
कप्तान बेदी हमेशा अपने साथी खिलाड़ियों की मदद के लिए खड़े रहे और हक बात कहने से कभी पीछे नहीं हटे। कपिल देव जब बच्चों की तरह रोते थे तो अंजू की आंखें भी भर आती थीं। यही हाल मदन लाल, कीर्ति आज़ाद, मनिंदर सिंह व गुरशरन सिंह का था। सीमा पार से इंतिखाब आलम, मुश्त़ाक मुहम्मद, ज़हीर अब्बास, माजिद खान व सरफराज़ नवाज़ भी बराबर फोन पर बने हुए थे। साथी व प्रतिद्वंदी खिलाड़ियों में इतना प्रेम व सम्मान तभी संभव है, जब व्यक्ति में अच्छा इंसान होने के गुण कूट-कूटकर भरे हों। बेदी अच्छे खिलाड़ी थे और अच्छे व सच्चे इंसान थे, जो रात को रात कहने का साहस रखते थे और जिस महफिल में मौजूद हों उसमें अपनी हाज़िर जवाबी व लतीफों से रंग भर देते थे।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर