आत्मा का महत्त्व

एक दिन राजा और महात्मा की भेंट हुई। महात्मा ने आत्मा की महत्ता बताई और राजा अपने राज की महानता बताने लगा। तब महात्मा ने राजा से पूछा—यदि तुम रेगिस्तान से घिर जाओ और प्यास से ‘प्राण’ निकलने लगें और उस समय कोई पानी के बदले आधा राज मांगे तो दोगे या नहीं दोगे? राजा ने कहा, दूंगा। फिर महात्मा ने पूछा—यदि तुम इतने बीमार पड़ जाओ कि बचने की कोई भी आशा न रहे। तब यदि कोई वैद्य शर्त के साथ इलाज करे और अच्छा करने की कीमत में आधा राज्य मांगे तो दोगे या नहीं? राजा ने कहा—दूंगा। महात्मा जी खूब खिलखिला कर हंसे और हंसते-हंसते कहा, जो राज एक लोटा पानी और एक शीशी दवा के बदले दिया जा सकता है, उसका महत्त्व आत्मा से बढ़कर कैसे हो सकता है? जिस जीवन की रक्षा के लिए मनुष्य बड़े से बड़ा काम कर सकता है, उस जीवन के उत्कर्ष के लिए उसे राजपाट से भी बड़ी चीज का त्याग करने को उद्यत होना चाहिए।

—धर्मपाल डोगरा, ‘मिंटू’