दुबई सम्मेलन का महत्त्व
किए गए एक अध्ययन के अनुसार भारत में बाहरी वायु प्रदूषण से प्रत्येक वर्ष 21 लाख से अधिक मौतें हो जाती हैं। इस संबंध में भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। इसी अध्ययन में यह भी कहा गया है कि उद्योग व बिजली उत्पादन तथा यातायात में जैविक ईर्ंधन का इस्तेमाल करने से होने वाला वायु प्रदूषण इन मौतों का कारण बनता है। इसी अध्ययन में यह भी कहा गया है कि जैविक ईंधन के इस्तेमाल को कम करके तथा इसके विकल्प स्वरूप अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को अपना कर ऐसे हालात से बचा जा सकता है। हम इसी सन्दर्भ में संयुक्त अरब अमीरात के एक राज्य दुबई में जलवायु परिवर्तन संबंधी हो रहे सम्मेलन को लेते हैं। पिछले कई दशकों से विश्व भर में धरती पर तपिश बढ़ने की चिन्ता व्यक्त की जा रही है। संयुक्त राष्ट्र ने धरती की तपिश बढ़ने तथा बिगड़ रहे पर्यावरण संतुलन के दृष्टिगत अलग-अलग देशों तथा वातावरण विशेषज्ञों को एकजुट होकर इस समस्या का हल ढूंढने का आह्वान किया था। दुबई सम्मेलन में जहां सैकड़ों ही देशों के प्रमुख शामिल हो रहे हैं, वहीं अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन तथा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस में शामिल नहीं हुए। यह भी माना जा रहा है कि इन दोनों देशों का वैश्विक तपिश के बढ़ने में बड़ा हिस्सा है। कुछ समय पहले ऐसे ही संयुक्त यत्न के रूप में फ्रांस में पैरिस समझौता किया गया था, जिसमें सभी देशों विशेष रूप से बड़े विकसित देशों को लगातार बढ़ती ज़हरीली गैसों को रोकने में सहायक होने के लिए कहा गया था। उस समय अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प थे, जिन्होंने इस समझौते को मानने से इन्कार कर दिया था तथा जलवायु परिवर्तन संबंधी किये जा रहे प्रयासों को एक तरह से नकार दिया था।
दूसरी तरफ एक अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि इस सदी के अंत तक धरती का तीन डिग्री सैल्सियस तापमान बढ़ जाएगा, जिसे रोकने के लिए ऐसा तापमान बढ़ाने वाली ज़हरीली गैसों को कम करना बहुत ज़रूरी है। पैरिस समझौते में इन गैसों को बढ़ाने वाले ईंधनों के इस्तेमाल को कम करने की बात की गई थी। इसके लिए एक संयुक्त फंड एकत्रित करके अन्तर्राष्ट्रीय प्रयास किए जाने ज़रूरी थे, परन्तु यदि विकसित तथा बड़े देशों द्वारा किए जाने वाले इस प्रयास के प्रति गम्भीरता न दिखाई गई तो ऐसा व्यवहार भविष्य में धरती के लिए ़खतरनाक सिद्ध होगा। दुबई सम्मेलन से पहले ब्रिटेन के बड़े शहर ग्लासगो में जो सम्मेलन हुआ था, उसमें भी उद्योगों से पैदा होने वाली गैसों को कम करने पर ज़ोर दिया गया था। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वैश्विक तपिश को कम करने संबंधी पूरी दिलचस्पी दिखाई जा रही है तथा इस संबंध में होने वाले प्रयासों में पूरी तरह भागीदार बनने की इच्छा व्यक्त की गई है।
दुबई सम्मेलन में भी भारत इस ओर प्रभावशाली भूमिका अदा कर सकता है परन्तु आगामी दशकों में निर्धारित लक्ष्यों पर तभी पहुंचा जा सकेगा, यदि सभी विकसित देश इसमें सहयोग करें तथा इन प्रयासों के लिए आवश्यक फंड देने में सहायक हों। यदि ऐसा न हो सका या पैदा होती ज़हरीली गैसों को सीमित न किया जा सका तो इस धरती के तेवर पूरी तरह बदल जाएंगे, जो मानवता के लिए विनाशकारी सिद्ध होंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि आगामी समय में दुबई सम्मेलन में निर्धारित किए गए लक्ष्यों को हासिल करने के लिए विश्व भर के देश अपना बनता योगदान डालने में सहायक होंगे।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द