श्री कीरतपुर साहिब में सम्पन्न हुआ होला-मोहल्ला का प्रथम पड़ाव

श्री आनंदपुर साहिब, 7 मार्च (मधु सूदन) : खालसे की जन्मभूमि श्री आनंदपुर साहिब एवं साथ लगते धार्मिक कस्बे श्री कीरतपुर साहिब में गत 5 मार्च से चल रहा छह दिवसीय राष्ट्रीय पर्व होला-मोहल्ला का प्रथम पड़ाव आज श्री कीरतपुर साहिब में अमन शांति के साथ सम्पन्न हो गया, जबकि इस महाकुंभ का दूसरा व अंतिम पड़ाव आज 8 मार्च 2020 से श्री आनंदपुर साहिब में आरंभ होने जा रहा है जो 10 मार्च 2020  तक जारी रहेगा। गौरतलब है कि होला-मोहल्ला का पावन त्योहार दो पड़ावों में मनाया जाता है जिसका पहला पड़ाव 5 मार्च से 7 मार्च तक श्री कीरतपुर साहिब में मनाया गया, जबकि दूसरा पड़ाव आज से श्री आनंदपुर साहिब में आरंभ होने जा रहा है, जबकि इस महान पर्व के आकर्षण का मुख्य केंद्र माने जाने वाला पर्व ‘मोहल्ला’ 10 मार्च को निकाला जायेगा जिसमें गुरु की लाडली फौजें निहंग सिंह स्थानीय चरण गंगा स्टेडीयम में घुड़सवारी, गतका, नेजे, तीर अंदाजी,  तलवारबाज़ी आदि के जौहर दिखाएंगे तथा इस दौरान पांच तख्तों के सिंह साहिबानों, शिरोमणि कमेटी के अध्यक्ष व अन्य धार्मिक हस्तियों की हाजरी में विशाल, भव्य एवं अलौकिक (नगर कीर्तन) ‘मोहल्ले’ के रूप में निकाला जायेगा जो आर्कषण का मुख्य केन्द्र होगा। श्री आनंदपुर साहिब एवं श्री कीरतपुर साहिब सहित पूरे क्षेत्र में गत तीन दिनों से हो रही लगातार बारिश के कारण भी संगतों का भारी संख्या में आना लगातार जारी है तथा पूरे मेला क्षेत्र में संगतों की पूरी चहल-पहल है एवं पूरा नगर गगनभेदी जयघोषों से गूंज रहा है। इस दौरान श्री कीरतपुर साहिब के गुरुद्वारा श्री पतालपुरी साहिब में मेले के प्रथम पड़ाव की सम्पन्ता हेतु अरदास भी की गई तथा गत 7 मार्च से चल रहे श्री अखंड पाठ साहिब के पाठों के भोग भी डाले गए। इस पावन अवसर पर भारी संख्या में शिरोमणि कमेटी के स्टाफ के सदस्य तथा संगतें भी मौजूद थी। बारिश के कारण सड़कें कीचड़ से भरीं, संगत हुई परेशान : लगातार हो रही बारिश के कारण संगत को कई प्रकार की मुश्किलों से जूझना पड़ा। सबसे बड़ी समस्या संगत को सड़कों में भरी कीचड़ के कारण हुई। वर्णनीय है कि मेले से पहले शहर की कई सड़कों की हालत बेहद खस्ता बनी हुई थी। प्रशासन ने मेले से पहले सभी सड़कें आज़री तौर से ठीक करवा दीं परन्तु बारिश ने सड़कों की आज़र्ी मुरम्मत को एक झटके में जड़ से उखाड़ दिया। यदि बात गुरुद्वारा पतालपुरी साहिब की की जाए तो यहां पहुंचने के लिए संगत को कीचड़ से बचने के लिए सोच-सोच कर पांव रखने पड़े।