5वां पड़ाव

विगत लगभग 6 महीनों से महामारी के चंगुल में फंसे लोगों का सामान्य की तरह विचरण शुरू हो गया है। केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से मार्च में तालाबन्दी का दौर शुरू हुआ था। महामारी के कारण सरकारों के साथ-साथ आम लोग भी बुरी तरह भयभीत हो गए थे। तालाबंदियों के कड़े दौर ने जीवन दूभर कर दिया था। आर्थिकता डगमगा गई थी। बेरोज़गारी बड़े स्तर पर बढ़ने लगी थी। व्यापार ठप्प हो गए थे। औद्योगिक पहिया रुक गया था। जितना बड़ा नुक्सान हो रहा था, देश उसे सहन करने की स्थिति में नहीं था। चाहे इस महामारी का मुकाबला करने के लिए भी आपने सामर्थ्य के अनुसार हर पक्ष से पूरा ज़ोर लगा दिया गया था परन्तु इसके प्रसार के प्रति अनिश्चितता बनी रही थी। देश में इस बीमारी से मरने वालों की संख्या का आंकड़ा एक लाख से पार हो चुका है। अभी भी इसका प्रकोप जारी है परन्तु इसके साथ ही अगर आंकड़ों पर नज़र दौड़ाई जाए तो जहां इससे स्वस्थ होने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, वहीं कम हो रही मृत्यु दर भी राहत देने वाली महसूस हो रही है। अनेक देशों द्वारा इस संबंधी टीके बनाने के यत्न जारी हैं। लगभग सभी देश इस पक्ष से टीका बनाने के अंतिम चरण में पहुंच गए हैं। रूस ने तो दो महीने पूर्व ही यह घोषणा कर दी थी कि उसके द्वारा तैयार किया गया टीका पूरी तरह सुरक्षित और प्रभावशाली है। वहां के स्वास्थ्य विभाग ने बड़ी संख्या में लोगों का टीकाकरण शुरू भी कर दिया है, जिसके परिणाम काफी सार्थक नज़र आ रहे हैं। वैज्ञानिकों की टिप्पणियां भी उत्साहजनक हैं। अधिकतर ने यही अनुमान लगाये हैं कि इस वर्ष के अंत तक प्रभावशाली टीके सामने आ जाएंगे जो लोगों को बड़ी राहत दे सकेंगे। केन्द्र के साथ राज्य सरकारों ने भी चरणबद्ध लगाईं पाबंदियों और तालाबंदियों में ढील देनी शुरू कर दी थी। इसका एक बड़ा कारण यह था कि लगभग सभी इस परिणाम पर पहुंच गये थे कि जीवन के प्रवाह ने तो चलना ही है। इसलिए इस बीमारी के साथ ही जीना पड़ेगा, क्योंकि जीवन की चाल को जारी रखा जाना बेहद आवश्यक है। महामारी के कारण जितना बड़ा नुकसान हो चुका है,  प्रत्येक तरह की गतिविधियां शुरू किये बिना उसकी पूर्ति होना सम्भव नहीं है। अभी भी देश में कुछ एक ऐसे क्षेत्र हैं जो इस महामारी से बुरी तरह प्रभावित हैं। उनको छोड़ कर पहले चार पड़ावों पर तालाबंदियों की शर्तों में ढील दी जाती रही है। अब 5वें पड़ाव में अधिकतर पाबंदियों में छूट दे दी गई है। इसका एक बड़ा कारण यह रहा कि पंजाब में जिस तरह के हालात बने रहे हैं और राजनीतिक पार्टियों ने जिस  प्रकार गतिविधियां शुरू कर दी हैं, उन पर अब पाबंदियां लगाना बेहद कठिन है। किसान स्थान-स्थान पर धरने लगा रहे हैं। राजनीतिक पार्टियां रैलियां और प्रदर्शन कर रही हैं, जिनमें भारी जन-समूह देखने को मिल रहे हैं। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अब इन गतिविधियों पर रोक लगाना बेहद मुश्किल है। इसलिए ज्यादातर पाबंदियां हटा ली गई हैं। जो कुछ रह गई हैं, उनको भी हटा लेने की सम्भावना बन गई है परन्तु इस सब कुछ के साथ-साथ लोगों को अधिक सावधान और सचेत रहने की बेहद आवश्यकता है।
जब तक इस बीमारी के लिए कोई प्रभावशाली दवाई या टीका तैयार नहीं हो जाता, तब तक दर्शायी गई सावधानियां अपनाना बेहद आवश्यक है। इनसे  ही इस बीमारी से काफी सीमा तक बचा जा सकता है। अब जब इस संबंध में उत्पन्न हुये बड़े भय का एहसास कम हो रहा है, तो भविष्य में सावधानियां अपना कर इससे निजात पाने की उम्मीद भी बनती नज़र आ रही है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द