पड़ाव दर पड़ाव

केन्द्र सरकार की ओर से तालाबंदी में और नरमी लाने का चौथा चरण शूरू हो गया है। इस में प्रतिदिन के जीवन में कुछ और ढील दिये जाने की घोषणा की गई है। धार्मिक तथा राजनीतिक गतिविधियों में छूटे दी गई हैं। प्रत्येक स्तर पर शैक्षणिक संस्थानों को भी पड़ाव दर पड़ाव खोलने के लिए कहा जा रहा है। खेलों के क्षेत्र में भी छूट दी जा रही है हालांकि अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें पूरी तरह नहीं चल सकेंगी। सिनेमा घर अभी नहीं खोलने की घोषणा भी की गई है। 
चौथे चरण में दी गई छूटों से यह बात ज़ाहिर है कि सरकार ने सार्वजनिक गतिविधियों को शुरू करने के लिए एक तरह से हरी झंडी दे दी है परन्तु इसके साथ ही देखने वाली बात यह है कि देश में कोरोना पीड़ितों की संख्या कम नहीं हुई बल्कि लगातार बढ़ रही है। देश में प्रतिदिन जितने केस सामने आ रहे हैं, वे विश्व भर के देशों से अधिक हैं। अब तक पीड़ितों की संख्या 33 लाख से बढ़ गई है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि प्रतिदिन टैस्टों का संख्या में वृद्धि की जा रही है। टैस्टों की संख्या प्रतिदिन 10 लाख के पार हो गई है। विचार करने वाले कुछ और पहलू भी हैं। यदि देश में मौतों की संख्या 62,000 के पार हो चुकी है तो ठीक  होने वालों की संख्या भी 76 प्रतिशत तक हो चुकी है। अब तक 26 लाख से अधिक लोग ठीक हो चुके हैं और टैस्टों की संख्या 3 करोड़ से अधिक हो गई है। इस बीमारी से हो रही मौतों के संबंध में अमरीका पहले स्थान पर है, जहां अब तक 1 लाख 87 हज़ार के करीब मौते ंहो चुकी हैं। ब्राज़ील में 1 लाख 21 हज़ार के करीब और उसके बाद तीसरे स्थान पर भारत 64 हज़ार से अधिक मौतों पर पहुंच गया है। पहले यह इंग्लैंड, इटली, फ्रांस और स्पेन से पीछे था, लेकिन अब यह उनसे आगे बढ़ गया है। लेकिन देश में मृत्यु दर अभी भी कम है। दुनिया भर की मृत्यु दर 3.4 प्रतिशत के लगभग है। अमरीका की 2.1 प्रतिशत, ब्राज़ील की 3.2 प्रतिशत और भारत की अब तक 1.8 प्रतिशत दर है। विगत महीनों में जो बातें बेहत उभर कर सामने आई हैं, उनमें समूचे रूप में लोगों की परेशानियों का बढ़ना लाज़िमी लगता है। देश के आर्थिक ढांचे के कमज़ोर होने का कारण सरकार की आर्थिकता डगमगा गई है। अब तक करोड़ों लोग बेरोज़गार हो चुके हैं। प्रवासी मज़दूर अस्थिर हो गए हैं। विश्व भर में प्रभावशाली दवाइयों के ईजाद होने के साथ-साथ आगामी महीनों में इस महामारी को काबू में करने के लिए टीकों के ईजाद का काम भी शिखर पर पहुंच गया लगता है। 
इस सब कुछ को देखते हुए सार्वजनिक जीवन में छूटे देने के बिना और कोई विकल्प दिखाई नहीं देता लेकिन इसके साथ-साथ इस बीमारी के प्रभाव को कम करने के लिए आवश्यक सावधानियां बरतने पर ज़ोर दिया जाना भी बेहद ज़रूरी है। ज़िन्दगी का प्रवाह चलते रहना चाहिए। इसे रोका जाना संभव नहीं है। चाहे यह महामारी कम नहीं हो रही लेकिन इस पर आबूर हासिल करने की उम्मीद अधिक उजागर होने लगी है। ऐसी ही उम्मीद आने वाले समय में ज़िन्दगी को बढ़िया धड़कनें प्रदान कर पाने के समर्थ होगी। 
-बरजिन्दर सिंह हमदर्द