लॉकडाऊन से बदल रहा है फिल्मों का कारोबार

इरफान खान ने लम्बी बीमारी से लौटने के बाद अपनी फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ पूरी की। यह फिल्म 13 मार्च को थिएटरों में रिलीज हुई। समीक्षकों ने इसकी जमकर तारीफ की, लेकिन कोरोना वायरस के डर और फिर लॉकडाऊन, जिसमें सिनेमा घरों को भी बंद कर दिया, के कारण इस फिल्म को वह आर्थिक सफलता नहीं मिली, जिसकी उम्मीद थी। अब अपने नुकसान की कुछ भरपाई करने के लिए इस फिल्म के निर्माताओं ने इसे ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज किया।  यह भी कोविड-19 संकट के कारण बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा न चलीं और इन्हें भी ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज किया गया।इस पृष्ठभूमि में यह प्रश्न प्रासंगिक है कि क्या भारत में यह ट्रेंड बन जायेगा कि थिएटर रिलीज के लिए तैयार की गईं छोटे व मध्यम बजट की फिल्मों को प्रीमियम फ्री की बजाय सीधे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर रिलीज किया जायेगा? इस पर अलग-अलग व्यक्तियों की अलग-अलग राय हैं। एमएक्स प्लेयर के सीईओ करण बेदी का कहना है, ‘लॉकडाऊन की अवधि बहुत सारी चीजों को तय करेगी। अनेक निर्माता अपनी फिल्मों को रिलीज करने के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की ओर जा रहे हैं क्योंकि कंटेंट का जबरदस्त बैकलॉग है। हम उनके टच में हैं ताकि उनकी फिल्मों को रिलीज करने का कोई रास्ता निकाला जा सके। इससे कार्य करने के सामान्य तरीकों में बाधा उत्पन्न हो सकती है। जाहिर है हर बात कंटेंट पर निर्भर करती है। निर्माता के साथ जो भी डील होगी वह दोनों के लिए ही जीत की स्थिति होनी चाहिए।’दूसरी ओर पीवीआर पिक्चर्स के सीईओ कमल ज्ञानचंदानी का कहना है, ‘यह अजीबोगरीब स्थिति है। हम निर्माताओं से टच में हैं और सभी की यह राय है कि थिएटर सिनेमा के प्रदर्शन के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थान है।’ जबकि व्यापार समीक्षक कोमल नाहटा का कहना है, ‘हम बहुत सारे टकराव देखेंगे। बड़ी फिल्मों को रुकना पड़ेगा कि ओवरसीज मार्केट्स में स्थिति सामान्य हो जाये। इसलिए बड़ी फिल्मों के निर्माता अपनी फिल्मों को ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर रिलीज करने के बारे में विचार नहीं करेंगे, लेकिन अगर स्थितियां कठिन हो जाती हैं तो मध्यम रेंज की और छोटी फिल्में अपना निवेश वापस लाने के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म्स विकल्प के बारे में सोच सकती हैं।’रिलाएंस एंटरटेनमेंट कबीर खान की फिल्म ‘83’ को बैक कर रहा है, जो बनकर तैयार है और दस अप्रैल को थिएटर में रिलीज होनी थी। यह फिल्म कपिल देव के नेतृत्व में क्रिकेट में भारत की पहली विश्व कप जीत पर बनी है। इस कंपनी के कंटेंट, डिजिटल एंड गेमिंग विभाग के ग्रुप सीईओ शिबाशीष सरकार का कहना है, ‘जब चीजें खुल जायेंगी तो रिलीज विंडो पर जबरदस्त भीड़ होगी। मुझे आश्चर्य नहीं होगा कि कुछ मध्यम व छोटे बजट की फिल्में सीधे डिजिटल रिलीज के लिए चली जायें। फिल्म को लम्बे समय तक रोकने की क्षमता हर निर्माता में नहीं है। अगर कुछ महत्वपूर्ण फिल्में सीधे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर चली जाती हैं तो इससे एक नया पैटर्न अवश्य खुल सकता है।’इस क्रम में न रिलीज़ होने वाली फिल्में इस प्रकार हैं सूर्यवंशी, कुली, नं.1, ब्रह्मास्त्र, कंगना की थलाइवी, करीना और आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा, अक्षय कुमार की लक्ष्मी बम इत्यादि शामिल है।इन सभी बयानों में एक बात साझा है, जिसकी ओर आपका ध्यान अवश्य गया होगा, कि मध्यम व छोटे बजट की फिल्में सीधे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स रिलीज के लिए जा सकती हैं। इस अनुमान के दो प्रमुख कारण हैं। एक, स्थिति सामान्य होने पर बड़ी फिल्मों को रिलीज बैकलॉग जबरदस्त होगा, जो आपस में टकरा भी सकती हैं, और ऐसे में मध्यम व छोटे बजट की फिल्मों को रिलीज के लिए थिएटर ही उपलब्ध नहीं होंगे, अगर कुछ थिएटर मिल भी गए तो उनकी स्थिति बड़े तालाब में छोटी मछली की हो जायेगी, जिसके अस्तित्व पर ही खतरा मंडराता रहता है। दूसरा यह है कि बड़ी फिल्म की तरह छोटी फिल्म में भी फाइनेंसर का मोटे ब्याज पर पैसा लगा होता है। फिल्म को रिलीज होने में जितनी देर होगी उतना ही ब्याज चढ़ता जायेगा। इसलिए रिलीज के उन विकल्पों की तलाश रहती है जिनसे जल्द पैसा वापस आ जाये।इसमें शक नहीं है कि लॉकडाऊन का अन्य उद्योगों की तरह फिल्मों उद्योग पर भी गहरा आर्थिक संकट पड़ा है। अचानक शटडाउन से लाखों दैनिक दिहाड़ी मजदूर, जिन्हें प्रति घंटा शूटिंग के हिसाब से पैसे मिलते हैं, रोटी के लिए मोहताज हो गये हैं। निर्माता एसोसिएशनों ने उनके लिए कुछ सप्ताह के राशन की व्यवस्था तो अवश्य की है, लेकिन जब निर्माताओं के अपने ही आय के स्रोत (यानी फिल्म रिलीज) बंद पड़े हैं तो वह इन श्रमिकों को रोटी का सहारा भी कब तक दे सकते हैं? कोरोना संकट लम्बा चलने की आशंका निरंतर बढ़ती जा रही है।ऐसे कुछ एक प्रयासों से समस्या का समाधान नहीं होने जा रहा है और न ही फिल्म व टीवी निर्माताओं के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म्स आय का एकमात्र साधन बन सकते हैं, भले ही इस लॉकडाऊन में भारतीय नागरिक रोजाना अपने स्मार्टफोंस पर 3 घंटे 48 मिनट गुजार रहे हों और मूवी चैनलों की व्यूअरशिप 3 सप्ताह में 77 प्रतिशत बढ़ गई हो।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर
कैलाश सिंह