कनाडा के कालेजों और यूनिवर्सिटियों ने अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों की ऑनलाइन पढ़ाई के लिए कमर कसी

गढ़शंकर, 27 मई (धालीवाल) : कनाडा, आस्ट्रेलिया, यू.के. आदि देशों में पढ़ने जाने की तैयारी करके बैठे प्रांत के हज़ारों विद्यार्थियों का कोरोना महामारी ने खेल बिगाड़ दिया है। अकेले कनाडा जाने वाले करीब एक लाख से अधिक विद्यार्थियों के प्रभावित होने की आशंका बनी हुई है। एक अकादमिक वर्ष (दो समैस्टरों) के लिए 7-8 लाख रुपये फीस भर चुके, कनाडा के कालेजों व यूनिवर्सिटियों में मई इन्टेक के लिए पढ़ने जाने वाले बड़े स्तर पर विद्यार्थी कोविड-19 के कारण अपनी पढ़ाई मई से सितम्बर इन्टेक के लिए पहले ही डैफर करवा चुके हैं। ऑनलाइन पढ़ाई से बचते नज़र आए इन विद्यार्थियों  को अब सितम्बर इन्टेक  की ऑनलाइन पढ़ाई का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि कनाडा के कई कालेज व यूनिवर्सिटियाें ने सितम्बर इन्टेक से अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों को  ऑनलाइन पढ़ाई करवाने के लिए कमर कस ली है। आस्ट्रेलिया व यू.के. के कालेजों व यूनिवर्सिटियों द्वारा ऑनलाइन पढ़ाई के लिए फिलहाल कोई फैसला नहीं लिया गया। कनाडा स्टडी के मई इन्टेक की पढ़ाई के लिए वीज़ा हासिल कर चुके 90 फीसदी पंजाबी विद्यार्थियों ने ऑनलाईन पढ़ाई से किनारा करते हुए कोर्स सितम्बर इन्टेक में डैफर करवाने की पहले ही सहमति दे दी थी। हाल ही में कनाडा की कुवाटलिन पॉलीटैक्निक यूनिवर्सिटी सरी और वैनकूवर कम्युनिटी कालेज वैन्कुवर जैसे बड़े  सरकारी शैक्षणिक संस्थानों द्वारा विद्यार्थियों को ई-मेल के द्वारा सितम्बर इन्टेक  की ऑनलाइन पढ़ाई के बारे सूचित करना शुरू कर दिया गया है। यहां एक विशेष वर्णनीय बात यह है कि यदि विद्यार्थियों के लिए हवाई उड़ानों के रास्ते खुल जाते हैं तो उनकी विदेश पहुंचने की आशा पूरी हो जाएगी। परंतु इसके विपरीत वह भारत में रह कर भी ऑनलाइन पढ़ाई करते हैं तो उनको मेहनत से ऑनलाइन पढ़ाई करके अपने समैस्टर  की परीक्षाओं को पास करना पड़ेगा। ऐसे हालातों का सामना करने वाले विद्यार्थियों का जहां विदेश में पढ़ कर सैटल होने का सपना टूट सकता है वहीं अभिभावकाें के खून-पसीने की कमाई के लाखों रुपये मिट्टी हो जाने की सम्भावना बन सकती है। फिलहाल कनाडा के कालेजों और यूनिवर्सिटियों द्वारा रूटीन की पढ़़ाई के लिए सुरक्षित और साजगार माहौल की आशा करते हुए ऑनलाइन पढ़ाई के लिए तैयारी कसी जा रही है। कनाडा के इमीग्रेशन माहिर मैंबर आई.सी.सी.आर.सी. गोपाल कौशल ने कहा कि  भारतीय शिक्षा प्रणाली में हैल्प बुक/गाइडों ने विद्यार्थियों को स्वै- पड़चोल, स्वै-मंथन और स्वै-खोजी होने की सोच या स्वभाव को अपंग कर दिया है।