दक्षिण अफ्रीका में मंडेला का नस्लवाद के विरुद्ध प्रेरणादायक संघर्ष

मंडेला करोड़ों लोगों के प्रेरणा स्रोत थे। उन्होंने अपने जीवन के 67 वर्ष मानवाधिकारों और सामाजिक न्याय के लिए समर्पित किए। उनके चरित्र की मुख्य विशेषताओं जैसे नेक नीयत, बहादुरी, दृढ़ता, आशावादी और प्रगतिशील सोच के कारण उनके मानवाधिकारों के रक्षक नेता से लेकर शांति-दूत और लोकतांत्रिक दक्षिण अफ्रीका के पहले राष्ट्रपति बनने तक का सम्मान प्राप्त हुआ।वर्ष 1867 में दक्षिण अफ्रीका के किम्बरले क्षेत्र में हीरों की खोज हुई और फिर 1886 में विटवाटररैंड क्षेत्र में सोने की खोज। इन खोजों ने दक्षिण अफ्रीका को कृषि प्रमुख अर्थ-व्यवस्था से औद्योगिक अर्थ-व्यवस्था में परिवर्तित कर दिया। जिस कारण अफ्रीका के बहुत सारे देशों से शरणार्थियों ने यहां आकर शरण ले ली। यूरोप के भी कई हिस्सों से बहुसंख्या में लोग यहां आकर बसे। सबसे पहले डच (हालैंड निवासी) यहां आकर बसे, उसके बाद फ्रांसीसी और फिर अंग्रेज़ आ बसे, जिस कारण 19वीं सदी के अंत तक दक्षिण अफ्रीका के स्वदेशी लोगों के हाथों से उनके देश की राजनीति और अर्थ-व्यवस्था की बागडोर छिन गई। अंग्रेज़ सरकार ने समाज को नस्ली दरार (अफ्रीकन, हिन्दोस्तानी तथा अन्य नस्लों के लोग और यूरोप से आए गोरे लोगों के बीच) के आधार पर बांट दिया। इस पक्षपात को और मज़बूत करने के लिए नस्ली कानून भी बना दिए गए। हीरे और सोने की खदानों के मालिक अंग्रेज़ थे और खदानों में कार्य करते अन्य नस्लों के लोगों पर दबाव डालने के लिए उनसे कम वेतन पर अधिक समय तक कार्य करवाया जाता था। ज्यादातर अफ्रीकन पुरुष इन खदानों में अमानवीय परिस्थितियों में बहुत कम वेतन पर कार्य करते थे, जिससे उनकी तथा उनके परिवारों की रोज़ी-रोटी भी मुश्किल से पूरी होती थी। कार्यालय के कार्यों में भी अफ्रीकियों को या तो नौकरी से निकाल दिया जाता था या उनकी शैक्षणिक योग्यताएं पूरी होने पर भी नौकरी पर नहीं लगाया जाता था। उनको अच्छे स्कूलों में पढ़ने, खेलों में हिस्सा लेने, रैस्टोरैंटों, सार्वजनिक स्थलों तथा सार्वजनिक परिवहन को इस्तेमाल करने की कोई भी सुविधा प्राप्त नहीं थी। इस नस्ली पक्षपात का विरोध करने वालों के विरुद्ध सरकार ने कड़े कदम उठाते हुए इनको जेलों में बंद करने, यातनाएं देने और कत्लेआम करवाने तक की ज्यादतियां की गईं।दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति नैल्सन मंडेला नस्लवाद के विरुद्ध संघर्ष के केन्द्र बिन्दू थे। नैल्सन रोलीहलाहला मंडेला का जन्म 18 जुलाई, 1918 को मोविज़ो नामक गांव के मुखिया के घर हुआ। 1941 में उनको जोहन्सबर्ग में कोयले की एक खान पर सिपाही के तौर पर नौकरी मिली। परन्तु उनकी इच्छा वकील बनने की थी, इसलिए 1943 में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ विटवाटररैंड में वकालत की पढ़ाई शुरू की और उसी वर्ष अफ्रीकी नैशनल कांग्रेस में भी सक्रिय नौजवान के तौर पर हिस्सा लेना शुरू कर दिया। वह और उनके खास साथी ओलीवर टैम्बो, वाल्टर सिसुलू, ए.पी. मड्डा, एन्टोन लैमबिड और लैलोन मांजोंबीजी के साथ मिलकर यूथ लीग बनाने में सफल रहे। 1940 और 1950 के दशक के दौरान मंडेला कई तरह की नस्ली घटनाओं का शिकार बने जिन्होंने उनकी राजनीतिक विचारधारा को एक नई दिशा दी। इस समय के दौरान मंडेला के व्यक्तित्व में काफी बदलाव आए। वह एक उत्साही-नौजवान से एक सहनशील जन-नेता बनें। 12 जून, 1964 को मंडेला और उनके 6 अन्य साथियों को रॉबिन आईलैंड में उम्र कैद की सज़ा हुई। रॉबिन आईलैंड पर मंडेला ने अपने जीवन के जेल में बिताए 27 वर्षों में 18 वर्ष काटे। फिर उन्हें पौलसमूर जेल और विक्टरवैस्टर जेल में कैद रखा गया। 1970 और 1980 के दौरान दक्षिण अफ्रीका में फैले नस्लवाद के विरुद्ध संघर्ष की खबरें दुनिया के हर कोने तक पहुंच गई और मंडेला की रिहाई की मांग ज़ोर पकड़ने लगी। अंत में वर्ष 1990 में कड़े नस्ली कानूनों और अधिनियमों को खत्म करके सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई सहित 11 फरवरी, 1990 को मंडेला को भी बिना शर्त रिहा कर दिया गया। दक्षिण अफ्रीका के पहले राजनीतिक चुनाव 27 अप्रैल, 1994 को हुए और दो करोड़ लोगों ने पहली बार अपनी सरकार बनाने के लिए मतदान किया। 300 से भी अधिक वर्षों से नस्ली दबाव की ज़ंजीरों से बाहर निकल कर दक्षिण अफ्रीका ने अपने पहले स्वतंत्र राष्ट्रपति के तौर पर नैल्सन मंडेला को चुना। खुशी में झूमते लोगों को राष्ट्रपति बनने के बाद मंडेला ने पहले भाषण में कहा, ‘दक्षिण अफ्रीका ने राजनीतिक आज़ादी प्राप्त कर ली है और हमने बीते कल की राख पर एक नए समाज का सृजन तो कर लिया है परन्तु अब हमारे समक्ष एक नया संघर्ष है...अनपढ़ता, गरीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी को खत्म करने का  और इसके खिलाफ जंग अभी जारी है।’ मंडेला को 1993 में नोबल पुरस्कार के साथ सम्मानित किया गया।मंडेला के शब्दों में ‘श्रेष्ठ समाज का सृजन करना हमारे अपने हाथों में है। मैंने अपने जीवन को अफ्रीकी लोगों के संघर्ष के लिए समर्पित किया है। यदि मैं गोरों के नस्लवादी इरादों के खिलाफ हूं तो मैं काले लोगों के दबदबे के भी खिलाफ हूं। मैं लोकतांत्रिक और समान अधिकारों वाले समाज का उपासक हूं, जिसमें सभी प्रेम-पूर्वक और एकता के साथ रहें। यह समाज केवल मेरी आशा ही नहीं बल्कि मेरा सपना भी है और मैं इस तरह के समाज के सृजन के लिए जीवित हूं और इस सृजन के लिए यदि मुझे बलिदान भी देना पड़े तो मुझे मंजूर है।’ दुनिया में केवल मुट्ठी भर ही नेता है, जिनके प्रशंसक और प्यार करने वाले पूरी दुनिया में हों। मंडेला उनमें से एक हैं और इन मुट्ठी भर नेताओं में कुछ एक ही होंगे जो ताकत और सत्ता में आने के बाद उसको त्याग दें। मंडेला ने अपने जीवन के 50 वर्ष दक्षिण अफ्रीकी लोगों के हित के लिए लड़ने में गुज़ारे, परन्तु राष्ट्रपति बनने के बाद अपने पहले पांच वर्ष के बाद दोबारा चुनाव नहीं लड़ा। उस समय वह 81 वर्ष के थे। चाहे चुनाव लड़ने पर उनकी जीत निश्चित थी परन्तु फिर भी वह अपने जीवन के अंतिम चरण को परिवार के साथ बिताना चाहते थे। उनकी मृत्यु 2013 में 95 वर्ष की आयु में फेफड़ों की बीमारी के कारण हुई। मंडेला के संघर्षपूर्ण जीवन से प्रेरणा लेकर हम भी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध आवाज़ उठाएं और उनको दूर करके, एक प्रगतिशील समाज की स्थापना करने में अपना योगदान डालें। 

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