कर-ढांचे का सरलीकरण

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश के कर-ढांचे में संशोधन और इसका सरलीकरण किये जाने की घोषणा नि:सन्देह देश की आर्थिकता को सम्बल देने में सक्षम सिद्ध हो सकती है। इससे देश के कर-तंत्र में एक नये अनुशासन पर्व की शुरुआत भी हो सकती है। प्रधानमंत्री की ताज़ा घोषणा के अनुसार यह मात्र अभी शुरुआत है, और इस प्रक्रिया के जारी रहने से अर्थ-व्यवस्था में एक नया रुझान शुरू हो सकता है। देश की अर्थ-व्यवस्था आज तक पूर्णतया कर-राजस्व के केन्द्र बिन्दु के गिर्द घूमती है आई है, परन्तु इस बात में भी कोई दो राय नहीं, कि करों के निपटान में सर्वाधिक परेशानियों और चुनौतियों का सामना भी इसी कर-दाता वर्ग को करना पड़ता है। आज तक इस वर्ग के लिए कभी कुछ अधिक नहीं किया गया हालांकि कर-ढांचे में निरन्तर सुधार होते आए हैं। यह भी एक कटु सत्य है कि देश के कर-राजस्व को बढ़ाए जाने के लिए निरन्तर नये कर भी लगाये जाते रहे हैं, और पुराने कर-ढांचे की दरों में विस्तार भी होता आया है। केन्द्र और राज्यों के धरातल पर भिन्न-भिन्न कर-ढांचे होने के कारण जन-साधारण पर दोहरे करों का बोझ भी डलते आया है। गौ-कर एवं शिक्षा शुल्क के नाम पर राज्यीय करों का अतिरिक्त बोझ भी आम लोगों पर यदा-कदा पड़ता आया है। तथापि, कर-दाताओं को राहत प्रदान किये जाने और कर-ढांचे को सरल बनाये जाने की मांग बार-बार उठते रहने के बावजूद कभी कुछ अधिक होते नज़र नहीं आया। कर-ढांचे की इन पेचीदगियों और दांव-पेंचों से अक्सर नौकरी-पेशा वर्ग पिसता एवं प्रभावित होता है क्योंकि इसी वर्ग को कर-अदायगी के दौरान अधिक समय और धन खर्च करना पड़ता है। 
अब एक बार फिर प्रधानमंत्री ने देश के 74वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या-बेला पर देश के कर-ढांचे में सुधार और सरलीकरण की बात करके एक नई बहस की शुरुआत की है। देश का कर-ढांचा नि:सन्देह बेहद पेचीदा और कष्टकर है। इसीलिए अधिकांश लोग कर देने अथवा कर-दाताओं की कतारों में शामिल होने से कतराते हैं। कर-अदायगी की कवायद हमेशा से दुष्कर बनी रही है। सम्भवत: यही कारण है कि देश की कुल एक अरब 30 करोड़ आबादी में से केवल 13 लाख लोग स्वेच्छा से आयकर अदा करते हैं। इनमें से अधिकतर नौकरी-पेशा लोग हैं जिन्हें हर हालत में आय-कर अदा करना ही होता है। यह भी एक तथ्य है कि केवल भारत ही ऐसा देश है जहां इतनी बड़ी आबादी में इतने कम लोग आय-कर देते हैं।
नए कर सुधारों में एक बड़ी विशेषता इस व्यवस्था के फेसलैस होने अर्थात प्रशासनिक तंत्र के चेहरों से कर-दाताओं की मुक्ति से है। कर-दाताओं को अब निजी रूप से दफ्तरों के चक्कर काटने और अधिकारियों की मिन्नत-चिरौरी करने की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी। भविष्य में कर-प्रणाली का समूचा काम-काज कम्प्यूटर से अथवा ऑन-लाईन होगा जिससे प्रशासनिक अधिकारी वैयक्तिक तौर पर कर देने वालों से सम्पर्क नहीं कर सकेंगे। इसी प्रकार यदि किसी कर-दाता ने कोई अपील करनी है, तो यह व्यवस्था भी फेसलैस अर्थात बिना निजी सम्पर्क बनाए हो सकेगी। इससे नि:सन्देह भ्रष्टाचार में कमी आएगी, और रिश्वत के लेन-देन पर भी अंकुश लगेगा। नई व्यवस्था से स्वत: पेचदगियां धीरे-धीरे कम होती जाएंगी। 
 प्रधानमंत्री की इस संबंधी अपील में बेशक भावुकता भी है और कर-दाताओं को समुचित सम्मान और आदर प्रदान किये जाने की उनकी यह भावुकता जन-साधारण को प्रभावित भी करती है। इस नई शुरुआत के पारदर्शी होने का बड़ा दावा किया गया है, और इसी के दृष्टिगत कर-ढांचे में आये नये सुधारों के बाद कर-दाताओं की संख्या बढ़ने की भी प्रबल सम्भावना है। इस घोषणा के साथ ही प्रधानमंत्री द्वारा वैश्विक महामारी कोरोना के विरुद्ध जंग के दृष्टिगत देश के औद्योगिक, व्यवसायिक और व्यापार क्षेत्र को राहत पहुंचाने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज को भी वाबस्ता किया गया है जिसका जन-साधारण पर अच्छा प्रभाव पड़ने की आशा है। इससे कर-राजस्व में वृद्धि और कर-सूचि में नये नाम जुड़ने की एक नई आशा भी उपजती है। प्रधानमंत्री की इस घोषणा में ईमानदारी का सम्मान करने और पारदर्शी कर-प्रणाली का आह्वान भी सम्भवत: इन्हीं सुधारों को प्रेरित है। इस घोषणा के कुछ अन्य सार्थक पगों में कर-दाताओं के भय को कम किया जाना और कर-प्रशासन द्वारा कर-दाताओं की उलझनें कम करने का प्रयास आदि भी शामिल हैं! बहुत स्वाभाविक है कि इससे नये कर-दाता पैदा होंगे। प्राय: धारणा यह रहती है कि लोग तो स्वेच्छा से समुचित कर-अदायगी करना चाहते हैं, परन्तु प्रशासनिक तंत्र उनके पथ को दुश्वार करता है। इससे कर-दाता भयभीत होने लगता है और कर-राजस्व में वृद्धि होने की प्रक्रिया प्रभावित होने लगती है। कर-दाताओं के पथ पर प्रशासनिक तंत्र की ऐसी दुश्वारियां अक्सर उन्हें कर-चोरी हेतु भी प्रेरित और विवश करती हैं। इससे भ्रष्टाचार जन्म लेता है। 
हम समझते हैं कि बेशक प्रधानमंत्री की यह घोषणा उनकी सदाशयता को दर्शाती है। प्रधानमंत्री द्वारा आयकर के मौजूदा तंत्र को सरकारी फरमान तंत्र करार देना उनकी इस सदाशयता का प्रमाण बनता है। तथापि इस योजना की सफलता और सार्थकता इसी प्रशासनिक तंत्र की ईमानदारी और प्रतिबद्धता पर आश्रित करती है। अधिकारी कर-दाताओं की ईमानदारी, प्रतिबद्धता की समझ/पहचान करके उनके साथ किस प्रकार की उदारता और विनम्रता से व्यवहार करते हैं, अथवा इसे कितना फेसलैस रहने देते हैं, इस पर भी इस घोषणा की सफलता निर्भर करेगी। अधिकारी कर-पेचीदगियों से जुड़े मामले कितनी शीघ्रता और बिना वाद-विवाद के निपटाते हैं, इस पर भी इस घोषणा की सत्यता निर्भर करेगी। कुल मिला कर, प्रधानमंत्री की मौजूदा घोषणा देश के राजस्व को सम्बल प्रदान करने वाली सिद्ध हो सकती है।