उलझन में है जी.एस.टी.

कोरोना महामारी ने जहां समूचे जीवन को उलझा कर रख दिया है, वहीं आर्थिक पक्ष से भी इसने देश को कमज़ोर कर दिया है। महीनों तक कामकाज़ ठप्प रहने के कारण जहां आम व्यक्ति आर्थिक मंदी से गुज़र रहा है, वहीं व्यापक स्तर पर पैदा हुई बेरोज़गारी ने बेहद चिंता भी पैदा कर दी है। इस का प्रभाव देश की कर प्रणाली पर भी पड़ा है। अपनी पहली पारी में मोदी सरकार ने देश भर में वस्तु और सेवा कर (जी.एस.टी.) प्रणाली जारी करके आर्थिक क्षेत्र में एक बहुत बड़ा कदम उठाया था। चाहे इस प्रणाली को अपनाने की चर्चा पिछली सरकारों के समय से चली आ रही थी, विशेष तौर पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के समय इसकी बहुत चर्चा हुई थी परन्तु पहले कोई भी सरकार ऐसा बड़ा कदम उठाने से हिचकिचाती रही।
वर्ष 2014 में केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार बनने के उपरांत दुनिया के अधिकतर देशों की पद्धति पर इस कर प्रणाली को लागू करने में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेतली ने बड़ा योगदान डाला था। प्रत्येक स्तर पर लगातार विचार-विमर्श के बाद वर्ष 2016 में इसे कानून का रूप दिया गया था। जी.एस.टी. कौंसिल की पहली बैठक 23 सितम्बर, 2016 को नई दिल्ली में हुई थी। इसकी रूप-रेखा में सभी राज्यों की भागीदारी की गई थी। केन्द्रीय वित्त मंत्री को इसका चेयरमैन नियुक्त किया गया था। उसके अलावा प्रत्येक राज्य से चुना गया एक मंत्री भी इसमें शामिल किया गया था। इसके लिए कायदे-कानून बनाये गये थे। इस कौंसिल ने निश्चित समय में निरन्तर बैठकें करनी होती हैं। कौन-कौन सी वस्तुओं पर कितना-कितना कर लगाया जाना है और किसको इस दायरे से बाहर रखना है, इसका फैसला कौंसिल करती है। चाहे इस कानून के अधीन राज्यों द्वारा अधिकतर वस्तुओं पर कर नहीं लगाये जा सकते, परन्तु उनका निर्धारित हिस्सा उनको अवश्य मिलता रहता है। इसके साथ ही यह भी फैसला किया गया था कि जुलाई 2017 से पांच वर्ष के लिए राज्यों के 24 प्रतिशत तक राजस्व घाटे की पूर्ति केन्द्र सरकार करेगी। चाहे जी.एस.टी. कौंसिल की लगातार होने वाली बैठकों में परिस्थितियों के अनुसार फैसले लिए जाते रहे हैं परन्तु कोरोना महामारी ने इस प्रणाली पर अपना बड़ा प्रभाव डाला है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जी.एस.टी. कौंसिल की 41वीं बैठक के बाद स्पष्ट तौर पर देश की आर्थिकता के सिकुड़ जाने की बात की है और इसके साथ उन्होंने इस वित्तीय वर्ष में जी.एस.टी.  के राजस्व में 2.35 लाख करोड़ के घाटे का ज़िक्र करते हुये राज्यों को उनके राजस्व की कमी की पूर्ति करने से हाथ खड़े कर दिये हैं। इस पूर्ति को पूरा करने के लिए उन्होंने दो विकल्प भी राज्यों के समक्ष रख दिये हैं कि राज्य भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ऋण ले सकेंगे और आने वाले 5 वर्षों में इकट्ठा होने वाले सैस से यह भुगतान कर सकेंगे। इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि कोरोना महामारी के कारण हुये घाटे की पूर्ति के लिए सरकार द्वारा कर दरें बढ़ाने का कोई इरादा नहीं है। ऐसी स्थिति ने उन राज्यों को चिंता में डाल दिया है जो पहले ही आर्थिक घाटे में चल रहे हैं। इस पर उन्होंने केन्द्र सरकार से अपनी अप्रसन्नता व्यक्त करनी भी शुरू कर दी है। इससे एक दिन पूर्व कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा विपक्षी सरकारों के मुख्यमंत्रियों के साथ की गई बैठक में भी ऐसी भावनाओं का प्रकटावा किया गया था।
ऐसी स्थिति राज्यों और केन्द्र के मध्य टकराव को बढ़ा सकती है। ऐसी स्थिति इस महामारी के दौरान और भी असंतुष्टि बढ़ाने में सहायक होगी। इसके साथ जी.एस.टी. कर  प्रणाली पर भी पुन: प्रश्न उठने शुरू हो गए हैं, जिसके घेरे में केन्द्र सरकार भी आ गई है। नि:सन्देह इसमें से निकलने के लिए  केन्द्र सरकार को आर्थिक पक्ष से और बड़े कदम उठाने की ज़रूरत होगी, जो देश को इस मंदी से उभारने में सहायक हो।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द