छात्रवृत्ति घोटाले की गूंज
केन्द्र की ओर से बनाये गये कृषि संबंधी कानूनों के विरोध में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में पंजाब विधानसभा ने जो प्रस्ताव एवं बिल पारित किये, उन्हें किसान संगठनों ने भी अपने आन्दोलन की आंशिक विजय करार दिया है। हम मुख्यमंत्री के इस पग की सराहना करते हैं परन्तु इन बिलों की तैयारी में उन्हें विपक्षी दलों को विश्वास में लेना चाहिये था। उनकी ओर से आये सुझावों को भी इनमें शामिल किया जाना चाहिए था।
यदि ये अहम बिल सामूहिक रूप में पूरी तरह सोच-विचार के बाद पेश किये जाते तो इनके संबंध में वे विवाद नहीं उठने थे, जो अब विपक्षी दलों की ओर से खड़े किये जा रहे हैं। ये बिल कहां तक कारगर सिद्ध हो सकेंगे, इस बात के बारे में अभी तक कुछ भी विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता परन्तु इससे समूचे सदन की भावना की अभिव्यक्ति अवश्य हो जाती है, जो उभरे इस आन्दोलन के लिए और भी उत्साहजनक सिद्ध हो सकती है। इस उद्देश्य हेतु कम समय के लिए बुलाये गये विधानसभा के अधिवेशन में कुछ अन्य बिल भी पारित करवा लिये गये परन्तु इनके अतिरिक्त विपक्षी दलों के नेताओं की ओर से जो महत्त्वपूर्ण मामला उठाया गया, वह भी बड़े ध्यान की मांग करता है। अनुसूचित जातियों के विद्यार्थियों के छात्रवृत्ति वितरण में जो गड़बड़ की जाती रही है, उस संबंध में सदन में आम आदमी पार्टी, अकाली दल एवं लोक इन्साफ पार्टी के नेताओं ने इस मामले को एक बार फिर पूरे ज़ोर से उठाया है। इसकी कुछ महीनों से प्रत्येक धरातल पर भारी चर्चा होती रही है, परन्तु सरकार की ओर से विपक्षी दलों एवं दलित समाज की ओर से व्यक्त किये जा रहे रोष की परवाह न करना शोभा नहीं देता। अब तक इस उबाल को ढकने के बड़े यत्न किये जाते रहे हैं परन्तु यह निरन्तर अपने किनारों से बाहर आता रहता है। इसलिए सम्बद्ध मंत्री साधु सिंह धर्मसोत पर निरन्तर अंगुलियां उठती रही हैं परन्तु सरकार ने इसे पूरी तरह दृष्टिविगत करने की नीति अपना ली है। 64 करोड़ी इस घोटाले के संबंध में विभाग के ही एक सचिव की ओर से लम्बा-चौड़ा लिखित खुलासा किया गया था जिसके बाद अधिक सन्देह की गुंजाइश नहीं रह जाती थी। केन्द्र ने वर्ष 2014-17 तक दलित विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति योजना के अन्तर्गत भारी राशि भेजी थी तथा वर्ष 2018-20 में तीन किश्तों में यह राशि बांटने के लिए प्रदेश सरकार को भेजी गई थी, परन्तु सम्बद्ध विभाग में से अब तक जो विवरण प्राप्त हुये हैं, उनके अनुसार इस योजना के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न ढंगों से राशि में भारी हेराफेरी की गई है जिसकी चर्चा उस समय से लेकर अब तक होती रही है। परन्तु विभाग के ही एक उच्चाधिकारी की ओर से लिखित रूप में एक पत्र ने यह सब कुछ स्पष्ट कर दिया था।
चाहे सरकार इस मंत्री को बचाने के लिए पूरे यत्न कर रही है। इस उद्देश्य के लिए सचिव स्तर के अपने ही अधिकारियों से एक समिति बनाकर उक्त मंत्री को क्लीन चिट दिलाने से विपक्षी दल एवं दलित संगठनों की संतुष्टि नहीं हो सकती। पिछले दिनों बहुजन समाज पार्टी ने भी प्रदेश के भिन्न-भिन्न शहरों एवं क्षेत्रों में इस संबंध में भारी प्रदर्शन किये हैं। इस मामले के शीघ्र शांत होने की सम्भावना नहीं प्रतीत होती। नि:सन्देह सरकार की छवि को भी इस घोटाले ने धूमिल किया है। इसलिए इसकी उच्च स्तर पर निष्पक्ष जांच करवाया जाना आवश्यक है ताकि इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराये जाने वाले व्यक्तियों को कानून के अनुसार दंड का भागीदार बनाया जा सके। ऐसी कार्रवाई ही इस मामले में सरकार की छवि को साफ करने में सहायक होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द