चीते की झपट जैसा धनराज पिल्लै

धनराज ल्लै का जन्म 16 जुलाई, 1968 को केरल राज्य के गांव खड़की में एक आदिवासी परिवार में हुआ। उसके दादा रोज़ी-रोटी की तलाश में पहले बंगलौर और फिर यहां आए थे, जहां उनको आयुद्ध फैक्टरी में नौकरी मिल गई। धनराज के पिता भी इसी फैक्टरी में चपरासी भर्ती हुए। फैक्टरी वालों ने उसे खेल मैदानों की देखभाल करने के लिए जिम्मेदारी सौंप दी। इन मैदानों में धनराज ने 17 वर्ष की आयु में और उसके तीन बड़े भाईयों ने टूटी हाकियों को रस्सियों से बांध कर हाकी खेलनी सीखी। माता-पिता ने उसका नाम धनराज इस कारण रखा था कि वह बड़ा होकर धन कमा कर घर की गरीबी को दूर कर देगा। एक कमरे के क्वार्टर में रहते इस परिवार ने बेहद बुरे दिन देखे। बहुत बार उनको बिस्कुट तथा चाय के साथ ही पेट भरना पड़ा। भूखे पेट चारों भाई मैदान पर खूब पसीना बहाते। बड़ा भाई रमेश पिल्लै तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक भी खेला, परन्तु उसने अपने खेल करियर की बलि देकर छोटे भाई को ध्यान चंद बनाने के लिए पूरा ज़ोर लगाया क्योंकि धनराज में हाकी का जुनून और गरीबी की आग जल रही थी। सचमुच ही धनराज पिल्लै ने अपनी हाकी कला से अपने पूरे परिवार की स्थिति को भी बदल दिया है। धनराज पिल्लै अब तक 1990 लाहौर, 1994 सिडनी, 1998 एटरैख्ट, 2002 कुआलालंपुर के विश्व कप, 1992 बार्सिलोना, 1996 एटलांटा, 2000 सिडनी, 2004 एथेंस के ओलम्पिक खेल, 1990 पेइचिंग, 1994 हिरोशीमा, 1998 बैंकाक तथा 2002 के एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुका है। 
1998 के एटरैख्ट विश्व कप तथा 1998 के बैंकाक एशियाई खेलों के समय वह भारतीय हाकी टीम का कप्तान था। उसकी कप्तानी में भारत ने बैंकाक एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। इन खेलों के दौरान 11 गोल करके वह सबसे अधिक गोल करने वाला खिलाड़ी बना। 1996 तथा 1998 के दौरान वह भारत उत्तम स्कोरर रहा। उसके द्वारा किये गए गोलों की संख्या लगभग 170 से अधिक है। कुछ हाकी पंडित गोलों की संख्या अधिक भी बताते हैं। जैसे 1952-56 के समय के दौरान फारवर्ड बलबीर सिंह, राइट इन बाबू और ऊधम सिंह की तिक्कड़ी गोल करने के लिए प्रसिद्ध थी, उसी तरह 40-50 वर्षों के बाद ऐसी तिक्कड़ी धनराज पिल्लै, गगनअजीत तथा दीपक ठाकुर की बनी। बलबीर स्वयं गोल करता था परन्तु इसके विपरीत धनराज गोल करवाने वाला होता था क्योंकि वह हमेशा विरोधी खिलाड़ियों द्वारा घिरा रहता था। कम से कम दो खिलाड़ी पिल्लै के साथ चुम्बक की तरह चिपके रहते थे। इसका लाभ गगनअजीत एवं दीपक ठाकुर को मिलता और वे विरोधियों का फट्टा खड़काने में देर न लगाते। 2002 की चैम्पियन ट्राफी कालोन में चाहे भारतीय हाकी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था, परन्तु इस टूर्नामैंट में धनराज पिल्लै को सर्वोत्तम खिलाड़ी घोषित किया गया।

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