जड़ता को तोड़ने की ज़रूरत 

किसान सिंघु एवं दिल्ली की कुछ अन्य सीमाओं पर डटे हुये हैं। सिंघु सीमा पर उनका धरना 24वें दिन में शामिल हो गया है। अपनी दृढ़ता, दिलेरी एवं योजनाबन्दी से उन्होंने एक उदाहरण कायम कर दिया है। ऐसे किसी आन्दोलन को पिछले दशकों में शायद ही कभी इतना समर्थन मिला हो। ज्यादातर लोग भावुकतापूर्ण इस संघर्ष से जुड़े दिखाई दे रहे हैं। इतने लम्बे संघर्ष के बाद भी उनके हौसले पस्त नहीं हुए, अपितु पूरी तरह कायम दिखाई देते रहे हैं। जहां किसान संगठनों ने किसी भी बातचीत का आधार तीन कृषि कानूनों को सरकार द्वारा रद्द किया जाना ही तय किया हुआ है तथा अब तक वे अपनी इस मांग पर दृढ़ दिखाई दे रहे हैं, वहीं केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर द्वारा उनसे पुन: अपील की गई है कि वे इन कानूनों में दर्ज धाराओं को लेकर किसान संगठनों  से बातचीत करने के लिए खुले मन से तैयार हैं। इसके साथ-साथ उन्होंने पुन: इस बात को दोहराया है कि ़फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य पूर्ववत् जारी रहेगा तथा राज्यों के मंडी प्रबंध में भी कोई बदलाव नहीं आएगा एवं पहले की तरह ही सरकार निर्धारित मूल्य पर फसलों की खरीद करती रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि इस संबंध में यदि किसानों के मनों में आशंका उत्पन्न हुई है तो सरकार उनको लिखित  रूप में इन धाराओं का स्पष्ट उत्तर दे सकती है। इस संबंध में सरकार ने लिखित रूप में किसानों की मांगों संबंधी एक दस्तावेज़ भी जारी किया है और वह यह भी दावा करती है कि वह इसके आधार पर बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी किसानों के साथ सुखद ढंग से बातचीत के संकेत दिये हैं। उन्होंने फसलों के चल रहे न्यूनतम समर्थन मूल्य में कोई बदलाव न किये जाने की बात भी कही है। तेज़ी से घटित हो रहे घटनाचक्र में स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट को भी हस्तक्षेप करना पड़ा है। सर्वोच्च न्यायालय ने किसानों के शांतिपूर्वक आन्दोलन के अधिकार को मानते हुये साथ ही यह भी कहा है कि इस बात का ध्यान रखने की ज़रूरत है कि नागरिकों के जीवन में आन्दोलन के कारण किसी प्रकार का विघ्न न पड़े। इस संबंध में एक जन-हित याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने सरकार को भी कहा है कि किसान पक्षों के साथ बातचीत करके समुचित ढंग से इस मामले का समाधान किया जाना चाहिए। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र, पंजाब एवं हरियाणा की सरकारों तथा किसान प्रतिनिधियों सहित कुछ कृषि विशेषज्ञों पर आधारित एक निष्पक्ष एवं स्वतंत्र कमेटी बनाने का भी सुझाव दिया है। परन्तु साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप में कहा है कि किसानों के विरोध के अधिकार से दूसरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए तथा न ही पूरे शहर की नाकाबंदी की जा सकती है। मामले का समाधान बातचीत से ही होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से अब किसान संगठनों के समक्ष यह प्रश्न ज़रूर उत्पन्न होता है कि वे सिर्फ कृषि कानूनों को रद्द करने की बात पर ही कायम रहें या इन कानूनों में उनको प्रभावित करती भिन्न-भिन्न धाराओं को आधार बना कर सरकार के साथ बातचीत करने को वे प्राथमिकता दें। यह अच्छी बात है कि सुप्रीम कोर्ट में मामला जाने के उपरांत किसान संगठनों ने बुद्धिजीवि वकीलों से विचार-विमर्श करके इस संबंध में अपना पक्ष पेश करने की पहुंच अपनाई है। नि:सन्देह आने वाले लम्बे समय तक इस मामले का लटकते जाना देश एवं समाज के किसी वर्ग के लिए भी लाभदायक साबित नहीं होगा, परन्तु किसानों की संतुष्टि ज़रूर होनी चाहिए। इस मामले में किसी तरह की भी जड़ता सभी पक्षों के लिए नुकसान का कारण बन सकती है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द