भारत, मध्य-पूर्व व यूरोपीय गलियारा उत्तर भारत के हित में नहीं होगा पंजाब से दूसरे गलियारे की भी ज़रूरत 

तबस्सुम तेरा-ओ-मेरा सांझा तो है मगर
दर्द के एहसास से फिर क्यों मिरा ही दिल भरा।
भारत की तरक्की, भारत की खुशी, भारत की मुस्कुराहट हमारी भी है क्योंकि पंजाब भारत का हिस्सा ही नहीं बल्कि इसकी खड्ग-भुजा भी है। यदि देश तरक्की करता है तो उसके प्रदेश एवं लोग स्वयं ही उस तरक्की के हकदार व भागीदार बन जाते हैं, परन्तु जी-20 शिखर सम्मेलन के एक बड़े फैसले का प्रभाव मेरे पंजाब के लिए शायद लाभदायक कम व नुकसानदायक अधिक हो सकता है। यह ठीक है कि भारत, मध्य-पूर्व व यूरोप आर्थिक गलियारा बनाने पर बनी सहमति भारत की एक बड़ी उपलब्धि है। यह भी सही है कि इस गलियारे के माध्यम से भारत से यूरोप व मध्य-पूर्व के देशों में सामान भेजने व मंगवाने का खर्च काफी कम हो जाएगा। एक अनुमान के अनुसार अब जो सामान जर्मनी पहुंचने में 36 दिन लगते हैं, गलियारा बनने पर 22 दिनों में पहुंच जाया करेगा अर्थात यह सामान लगभग 40 प्रतिशत तेज़ी से पहुंचेगा। इससे देश को बड़ा आर्थिक लाभ होगा। इससे हम भविष्य में चीन के साथ बढ़ते आर्थिक टकराव में चीन को टक्कर देने के समर्थ हो जाएंगे, परन्तु इस खुशी के साथ-साथ मन में एक कसक-सी भी उठती है कि काश, यह गलियारा पंजाब में से होकर गुज़रता। बेशक जी-20 सम्मेलन जिस भारत-मध्य पूर्व-यूरोपीय आर्थिक गलियारे पर सहमति बनी है, का अपना आर्थिक, रणनीतिक तथा राजनीतिक महत्व भी है और ज़रूरत भी। इसके साथ भारत का सीधा व्यापार यूरोप के साथ-साथ यू.ए.ई., सऊदी अरब, जार्डन तथा इज़राइल से भी बढ़ेगा। इस गलियारे की शुरुआत मुम्बई से होगी। यह 6 हज़ार किलोमीटर लम्ब होगा और इसकी मंज़िल यूरोप में यूनान तक होगी। इसमें 3500 किलोमीटर समुद्री मार्ग तथा 2500 किलोमीटर रेल मार्ग होगा। 
हम समझते हैं कि भारत को इस मार्ग के साथ-साथ यूरोप तक एक और मार्ग की भी आवश्यकता है जो शुद्ध सड़क या रेल मार्ग बन सकता है और उत्तर भारत के लिए वरदान सिद्ध हो सकता है। यदि भारत-पाक में मित्रता हो जाए तो यह मार्ग भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तन, ईरान और इराक से होते हुए तुर्की से यूरोप में जा निकलता है। इस पर खर्च भी हज़ारों करोड़ डालर कम होगा और इसके माध्यम से व्यापार और भी सस्ता पड़ेगा। 
वास्तव में हम समझते हैं कि मुम्बई से यूरोप तक बनने वाला आर्थिक गलियारा पंजाब, हरियाणा व उत्तर भारत के लिए अधिक लाभदायक नहीं होगा, अपितु इसका पंजाब जैसे प्रदेश को नुकसान ज़्यादा होगा, क्योंकि पंजाब में से मुम्बई तक सामान ले जाने का भाड़ा, पंजाब की उपज तथा उद्योग को महंगा बना देगा। नये तथा बड़े उद्योग लगाने वाले मुम्बई बंदरगाह के निकट ही नये उद्योग लगाने को प्राथमिकता देंगे। परिणामस्वरूप पंजाब उद्योग के मामले में और पिछड़ जाएगा। इसलिए हम भारत सरकार को निवेदन करते हैं कि मुम्बई-यूरोप आर्थिक गलियारा अवश्य बनाया जाए। यह देश के हित में है, परन्तु चीन को हार देने के लिए तथा उसके ‘वन बैल्ट वन रोड कार्यक्रम’ को और बड़ी टक्कर देने के लिए हमें कभी अपना ही अंग रहे पकिस्तान के साथ मित्रता की नीतियां बनानी और होगी उसके माध्यम से एक अलग व्यापार मार्ग खोला जाना चाहिए ताकि भारत विकास के जिस नये दौर में दाखिल हो रहा है, उसका लाभ पंजाब तथा उत्तर भारत के लोगों को भी मिल सके। हम समझते हैं कि विश्व राजनीति में जिस प्रकार भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कद ऊंचा हुआ है और जिस प्रकार पाकिस्तान के हालात बने हैं, यदि प्रधानमंत्री मोदी अपने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ तथा ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारों पर क्रियान्वयन की शुरुआत अपने पड़ोसी देश से ही करें तो वह इतिहास में और भी बहुत बड़ी शख्सियत के रूप में उभर सकते हैं। यह विश्व के इस क्षेत्र में शांति की गारंटी भी होगी। इससे भारत का उत्तरी क्षेत्र और विशेषकर पंजाब भी औद्योगिक क्रांति का आनंद ले सकेगा। 
मेरी रूह की ह़क़ीकत मेरे आंसुओं से पूछो,
मेरा मजलिसी तबस्सुम मेरा तज़र्मा नहीं है।
(मेरी रूह की हालत मेरे आंसुओं से पूछो, मेरी दिखाने वाली मुस्कराहट मेरी असलियत नहीं)
कांग्रेस-‘आप’ समझौते के आसार 
जिस प्रकार की ‘सरगोशियां’ सुनाई दे रही हैं, उनके अनुसार कांग्रेस हाईकमान तथा ‘आप’ हाईकमान में लोकसभा चुनाव को लेकर सीटों का विभाजन करने का फैसला अंतिम चरण में है। चाहे पंजाब कांग्रेस के नेता ‘आप’ पर तीव्र हमले कर रहे हैं, परन्तु ‘आप’ के नेता नि:संदेह जवाब तो दे रहे हैं, परन्तु उनकी भाषा उतनी तीखी नहीं है। प्राप्त जानकारी के अनुसार यह समझौता पंजाब तथा दिल्ली में 6-7 तथा 3-7 के अनुपात से होने की बात अंतिम दौर में है। हालांकि पंजाब कांग्रेस के अधिकतर नेता यह समझते हैं कि पंजाब में समझौते का कांग्रेस को लाभ की बजाय नुकसान अधिक होगा। उनकी दलील है कि ‘आप’ ने जिस प्रकार पंजाब में बड़े कांग्रेसी नेताओं के साथ ही नहीं अपितु कांग्रेसी सरपंचों के स्तर तक बदले की जो नीति अपनाई है, उसी कारण इस समझौते से कांग्रेस के काडर में निराशा फैलेगी। वे यह भी समझते हैं कि ‘आप’ के साथ सीट विभाजन का लाभ अकाली दल तथा भाजपा को हो सकता है, क्योंकि उनके अनुसार त्रिकोणीय या चहुकोणीय लड़ाई में कांग्रेस की जीत के आसार अधिक होंगे। यदि समझौता हुआ तो जहां ‘आप’ उम्मीदवार होगा, वहां का कांग्रेसी वोट का बड़ा भाग ‘आप’ को नहीं पड़ेगा और जहां कांग्रेसी उम्मीदवार होगा, वहां ‘आप’ का वोट अकाली दल की ओर या भाजपा की ओर लौट सकता है। कांग्रेसी नेताओं के अनुसार पंजाब में सत्ता विरोधी रुझान उभर रहा है जिसका नुकसान कांग्रेस को मुफ्त में सहना करना पड़ेगा, परन्तु पंजाब के कांग्रेस नेता जो चाहे कह लें, जो जानकारी मिल रही है, उसके अनुसार दोनों पार्टियों के बीच में समझौते के आसार काफी अधिक हैं। वैसे नवजोत सिंह सिद्धू जैसे हाईकमान के निकटवर्ती नेता का बयान तथा हवा का रुख पहचान कर स्टैंड लेने के लिए प्रसिद्ध सांसद रवनीत सिंह बिट्टू के बयान भी इसी बात की ओर संकेत करते हैं जबकि दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष की नव-नियुक्ति भी यही प्रभाव दे रही है। 
बड़े बे-आबरू होकर...
जी-20 शिखर सम्मेलन बारे जिस प्रकार के समाचार तथा तस्वीरें सामने आई हैं, उनसे यह प्रभाव ही बनता है कि भारत में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को काफी दृष्टिविगत किया गया है। कनाडा में विपक्ष ने तो ट्रूडो के भारत दौरे को ‘बेइज़्जती’ तक करार दिया है। 
कनाडा के मुख्य विपक्षी नेता पीयरे पोइलिवरे ने तो एक्स (ट्विटर) पर लिख दिया, ‘पक्षपात को एक तरफ रखते हुए किसी भी कनाडाई प्रधानमंत्री को शेष दुनिया की ओर से बार-बार अपमानित होते देखना पसंद नहीं।’ कैनेडियन पत्र टोरंटो सन ने एक तस्वीर प्रकाशित की है जिसमें ट्रूडो तो कैमरों की ओर देख रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हाथ उनके हाथ में है, परन्तु मोदी बाहर की ओर देख रहे हैं तथा उनका दूसरा हाथ किसी दूसरी तरफ इशारा करते प्रतीत हो रहा है। समाचार पत्र ने इस फोटो को कैप्शन (सिरलेख) दिया है, ‘दिस वे आऊट’ (अर्थात् यह रास्ता बाहर को जाता है)। इस समाचार पत्र ने ट्रूडो द्वारा भारतीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के रात्रि-भोज तथा एक और अंतर्राष्ट्रीय दोपहर के खाने में शामिल न होने का ज़िक्र भी किया है। हम समझते हैं कि भारत का अपने हितों के लिए किसी भी देश पर कूटनीतिक दबाव बनाना उसका हक है, परन्तु किसी भी देश के प्रमुख को ऐसी स्थिति में फंसाना द्विपक्षीय संबंधों के लिए साज़गार नहीं होता।  विशेषकर जब पहले ट्रूडो की 2018 की भारत यात्रा के समय भी ट्रूडो को भारत में दृष्टिविगत किये जाने के आरोप लगे थे। नूह नारवी के शब्दों में :
मह़िफल में तेरी आ के यूं बे-आबरू हुए,
पहले थे आप, आप से तुम, तुम से तू हुए।
हरियाणा गुरुद्वारा चुनाव लटकने के आसार?
हालांकि हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव बारे बनी कमेटी के चेयरमैन सेवामुक्त जज एच.एस. भल्ला ने कहा है कि 30 सितम्बर तक वोट बनाने का कार्य पूर्ण हो जाएगा। कार्यक्रम के अनुसार फरवरी में चुनाव हो जाएंगे, परन्तु राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भाजपा इन चुनावों में अकाली दल के सक्रिय होने से परेशान दिखाई दे रही है। इसलिए ये चुनाव किसी न किसी बहाने लटकाए जा सकते हैं। वैसे भी फरवरी 2024 में लोकसभा चुनाव का प्रचार शिखर पर होगा और यह चुनाव लटकाने के लिए बड़ा कारण बन सकता है। 
       -मो. 92168-60000