क्रोध पर विजय का मंत्र है क्षमा

पेड़ को यदि कोई पत्थर मारे तो पेड़ उसे बदले में मधुर फल देता है। अगरबत्ती को यदि कोई जलाये तो अगरबत्ती उसे सुवास देती है। इसी प्रकार संत पुरुष को भी यदि कोई सताये तो वे उसे बदले में क्षमा देंगे, वे परमात्मा से ऐसे जीवों को सद्बुद्धि देने के लिए प्रार्थना करेंगे। यदि कोई उन पर गालियों की बौछार करेगा तो भी संत के हृदय से ऐसे जीवों के लिए आशीर्वादों की बौछार प्राप्त होगी। यदि कोई उन्हें लाठी और पत्थरों से भी मारे तो भले ही उनके तन से खून की धारा क्यों न बहे परन्तु उनके मन से ऐसे जीव के प्रति भी सदैव प्रेम की धारा ही बहेगी, क्षमता की अजस्त्र धारा बहेगी। यही तो संतत्व है, यही तो साधुत्व है कि अपने उपकारी और अपकारी पर एक जैसा (सम) भाव।
एक बार समुद्र की उत्ताल तरंगों पर तैरती हुई एक नौका अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रही थी। नौका में यात्रियों के साथ एक संत भी बैठे हुए थे तथा कुछ शरारती युवक भी उसी नौका में बैठे थे। नौका जब कुछ दूर पहुंची तो युवकों ने आपस में भद्दा मज़ाक प्रारंभ कर दिया जिसे सुन लोग शर्मिन्दा हुए। उस मज़ाक को सुनकर संत महात्मा बोले-‘भैया! बातें ही करनी हों तो कुछ ऐसी बातें करो जिसे सुनकर लोग प्रसन्न हों, अन्यथा परमात्मा का ही नाम भजो।’ परन्तु युवक न माने, उल्टे उस संत का ही मज़ाक उड़ाने लगे। सब लोग चुप हो गए। संत महात्मा ने आंखें मूंद ली, मन को परमात्मा के चरणों में एकाग्र बना दिया।महात्मा जी की इस मुद्रा को देख युवक संत को ‘ढोंगी’, ‘बकभक्त’, ‘मुंह में राम बगल में छुरी’ आदि कहते हुए खड़े हो गए और उनका तिरस्कार करने लगे परन्तु संत महात्मा जी, प्रभु ध्यान में लीन रहे। लोग संत महात्मा जी का यह अपमान देख क्रोधित हो उठे और वे कुछ करें, इससे पहले उन युवकों के कानों में समुद्र की लहरों से उठती हुई एक आवाज़ गूंजी :महात्मन्, संत! यदि आप कहो, तो इन दुष्टों को अभी सज़ा दूं, इनको पानी में डूबो दूं! या आप कहो तो इस नौका को ही उलट दूं!’ इस समुद्रवाणी को सुनकर सब यात्री घबराये। भयभीत युवक भी संत महात्मा जी के चरणों में गिरकर  क्षमायाचना करने लगे और आंसू बहाते हुए महात्मा जी को मनाने लगे परन्तु महात्माजी तो चुप थे। पुन: वही वाणी सुनाई दी-‘संत! कहो तो इस नौका को अभी उलट दूं।’ यह सुन संत ने आंखें खोलीं व समुद्र की ओर देखकर हाथ जोड़कर बोले, ‘हे समुद्र देव, यदि तुम उलटना ही चाहते हो तो नौका को मत उलटो, इनकी बुद्धि को उलट दो।’ संत के इस सज्जनतापूर्ण वचनों को सुनकर सभी यात्री संत की जय-जयकार करने लगे। उन युवकों की दुष्टता भी सदा के लिए नष्ट हो गई।दुष्टों की दुष्टता को दूर करने का उपाय यही है कि हम दुष्टों के प्रति भी प्रेमभाव रखें। यदि हम उनके प्रति भी प्रेमभाव से भर जायेंगे, अपकार का बदला उपकार से चुकायेंगे तो निश्चित ही दुष्टों की दुष्टता का अन्त हो जायेगा। उपकारी के प्रति तो सभी कृतज्ञता और स्नेह का भाव रखते हैं, इसमें कोई साधुता नहीं। साधुता तो अपकारी पर भी उपकार करने में है। धन्य हैं ऐसे संत जिन्होंने अपकारियों पर भी उपकार कर उनकी दुष्टता को सदा के लिए दूर कर दिया। उन्होंने रोगी को नहीं रोग को मिटाया, पापी को नहीं, पाप को मिटाया। यही है सच्चा ‘क्षमा वीरस्य भूषणम्’ का उदाहरण, आप अपने जीवन में भी उतार कर जीवन धन्य बनायें। (सुमन सागर)