आधुनिकता से कोसाें दूर है तालिबानी व्यवस्था

तालिबान शब्द सुनते ही आपके ज़ेहन में क्या छवि उभरती है? ज़ाहिर है कि एक ऐसा आदमी जो बड़ी सी दाढ़ी के साथ है ,ऊपर कुर्ता है, ऊंचा पायजामा पहने हुए है और पगड़ीनुमा एक कपड़ा सिर पर लपेटे है जिसका एक सिरा कंधे पर गिर रहा है और सबसे ज़रूरी कि कंधे पर बंदूक टंगी हुई है। यही सच्चाई है। यहां कोई प्रोपेगैंडा नहीं है, दरअसल हम जिस देश की बात कर रहे हैं, उसे साम्राज्यों की कब्रगाह कहा जाता है। यहां जिस छवि की बात की जा रही है, वह एक अफगान पुरुष की वैश्विक छवि है। तालिबान अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है छात्र। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि तालिबान के पास अ़फगानिस्तान सिर्फ पांच साल ही रहा है। 1990 के दशक की शुरुआत से ही सोवियत संघ के अ़फगानिस्तान से जाने के बाद वहां पर कई गुटों में आपसी संघर्ष शुरू हो गया था। वर्ष 1994 आते आते तालिबान सबसे शक्तिशाली गुट में परिवर्तित हो चुका था। 1996 में आखिरकार तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति मोहम्मद नजीबुल्लाह की जघन्य हत्या के साथ ही तालिबान ने समूचे अ़फगानिस्तान पर आधिपत्य स्थापित कर लिया। 1998 में जब तालिबान ने अ़फगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर देश पर शासन शुरू किया तो कई फरमान जारी किए। पूरे देश में शरिया कानून लागू कर दिया गया। शरिया कानून इस्लाम की कानूनी प्रणाली है, जो कुरान और इस्लामी विद्वानों के फैसलों पर आधारित है, और मुसलमानों की दिनचर्या के लिए एक आचार संहिता के रूप में कार्य करता है। शरिया कानून मुसलमानों के जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर सकता है, लेकिन, यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सा वर्जन लागू किया जाता है और इसका कितनी सख्ती से पालन किया जाता है। दरअसल पाकिस्तान को छोड़कर लगभग हर मुस्लिम मुल्क ने अपने-अपने तरीके से शरिया को अपने यहां लागू किया है। मुस्लिम ब्रदरहुड के लिए शरिया कुछ अलग स्वरूप लिए है। सलाफियों के लिए अलग है और तालिबान, आईएस, बोको हराम के लिए कुछ अलग ही है। तालिबान ने अ़फगानिस्तान में अपने पांच सालाें के कार्यकाल में शरिया का सबसे सख्त स्वरूप लागू किया। तालिबान ने दोषियों को कड़ी सजा देने की शुरुआत की ..... हत्या के दोषियों को फांसी दी जाती तो चोरी करने वालों के हाथ-पैर काट दिए जाते। पुरुषों को दाढ़ी रखने के लिए कहा जाता तो स्त्रियों के लिए बुर्का पहनना अनिवार्य कर दिया गया था। शरिया कानून के तहत ‘अंग-भंग और पत्थरबाजी’ को भी सही ठहराया गया है और इस कानून के तहत क्रूर सज़ाओं के साथ-साथ विरासत, पहनावा और महिलाओं से सारी स्वतंत्रता छीन लेने को भी जायज़ ठहराया जाता है। शरिया कानून के तहत तालिबान ने देश में किसी भी प्रकार के गीत-संगीत को बैन कर दिया था। इस बार भी कंधार रेडियो स्टेशन पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने गीत बजाने पर पाबंदी लगा दी है। वहीं, पिछली बार चोरी करने वालों के हाथ काट लिए जाते थे।  तालिबान के शासन के तहत महिलाओं को प्रभावी रूप से नजरबंद कर दिया गया था और उनकी पढ़ाई-लिखाई पर पाबंदी लगा दी गई थी। वहीं, आठ साल की उम्र से ऊपर की सभी लड़कियों के लिए बुर्का पहनना अनिवार्य था और वो अकेले घर से बाहर नहीं निकल सकती थीं। कमाल की बात यह है कि इस्लाम में औरतों को कई सारे अधिकार दिए गए हैं। उन्हें पढ़ने का, काम पर जाने का, अपनी मज़र्ी के मुताबिक शादी करने का, सम्पत्ति का अधिकार तक है लेकिन जितनी भी कट्टरपंथी व्याख्याए हैं, वे इन सारे कानूनों को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़कर केवल अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती हैं। शरिया कानून को ही यदि आपको मानना है, उसका ही समर्थन करना है तो इसका साफ मतलब यही है कि आप अभी भी धर्म के आधार पर शासित होना चाहते हैं और धर्म के नाम पर शासन करना लोकतांत्रिक व्यवस्था बिलकुल नहीं है। यह मूलत: विकास विरोधी विचार है। आप ही बताइए कि जिन मुस्लिम देशों में शरिया कानून लागू है, वहां कौन सी ऐसी यूनिवर्सिटी है जहां पढ़ने के लिए भारत का मुसलमान अपने बच्चों को भेजना चाहेगा ? दुनिया की सारी टाप यूनिवर्सिटी यूरोप अमरीका में हैं और वो टाप इसलिए ही बन पाईं क्योंकि उन्होंने धर्म को बिलकुल अलग कर दिया। (युवराज)