गम्भीर मोड़ पर है रूस-यूक्रेन युद्ध

रूस तथा यूक्रेन में छिड़ा युद्ध लगातार खतरनाक रुख अख्तियार करता जा रहा है। रूस द्वारा 24 फरवरी, 2022 को युद्ध की घोषणा की गई थी। उसी दिन से उसने यूक्रेन के शहरों पर लगातार बमबारी करनी शुरू कर दी थी। यूक्रेन की राजधानी कीव पर भी वायु सेना ने बड़े हमले किये। इस युद्ध को शुरू हुए 7 महीने के अधिक का समय हो चुका है। यूक्रेन के एक बड़े भाग का विनाश हो चुका है। रूस की थल सेना भी वहां अलग-अलग तरफ से हमले कर रही है। शुरू में यह उम्मीद की जा रही थी कि शीघ्र ही यूक्रेन हथियार डाल देगा। परन्तु जितनी निडरता तथा बहादुरी यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदीमीर ज़ेलेन्सकी, वहां की सेना तथा वहां के लोगों ने दिखाई है, उसकी प्रशंसा करना बनता है। अभी तक ऐसे विनाश के समक्ष वे डट कर खड़े होने का हौसला कर रहे हैं।
रूस ने वर्ष 2014 में यूक्रेन के प्रदेश क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया था। उसके बाद यूक्रेन का झुकाव यूरोप के देशों  तथा वहां के बड़े संगठन यूरोपियन यूनियन की तरफ हो गया था। वह जहां अपनी शक्ति बनाये रखने के लिए इस संगठन का सदस्य बनना चाहता था, वहीं वह अपनी सुरक्षा हेतु अमरीका तथा पश्चिमी देशों पर आधारित सैनिक संगठन नाटो का भी सदस्य बनने का भी इच्छुक रहा है। यह संगठन सदस्य देशों पर एक ऐसा कवच है जो उन्हें किसी भी अन्य देश के सम्भावित हमले से बचाने का काम करता है। यूक्रेन रूस का पड़ोसी है। सोवियत यूनियन के अस्तित्व के समय रूस 14 अन्य पड़ोसी देशों के साथ एक संघीय देश माना जाता था। जिसका नाम सोवियत यूनियन रखा गया था। वर्ष 1990 में सोवियत यूनियन के टूटने से 15 अलग-अलग देश बन गये, जिनमें रूस शक्ति तथा ज़मीनी क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा देश था। व्लादीमिर पुतिन सत्ता में आने के बाद रूस को एक बार फिर बड़ी शक्ति बनाने के इच्छुक रहे हैं। इसी सोच का परिणाम है कि उसके द्वारा क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया गया था। पुतिन यह कभी नहीं चाहते थे कि उनकी सीमाओं के साथ लगते यूक्रेन सहित उसके अन्य पड़ोसी देश अमरीका तथा पश्चिमी देशों की तरफ झुक जाएं या नाटो जैसे संगठन में शामिल हो जाएं। उसने इस लड़ाई में यूक्रेन की काले सागर के साथ लगती सीमाएं जो क्रीमिया को ज़मीन द्वारा रूस के साथ जोड़ती हैं, पर कब्ज़ा कर लिया है, जिनमें यूक्रेन के लोहांस्क, दुनेतस्क, खेरसान तथा जापोरिजिया आदि प्रदेश शामिल हैं। इन प्रदेशों पर कब्ज़ा करके रूस ने उन्हें अपने साथ मिलाने की घोषणा कर दी है। परन्तु यूक्रेन सहित यूरोपियन यूनियन के दर्जनों ही देशों ने इसे मानने से इन्कार कर दिया है। युद्ध के शुरू से ही अमरीका, आस्ट्रेलिया, कनाडा तथा यूरोपियन यूनियन के देश जहां ज़ेलेन्सकी की हर तरह से आधुनिक हथियारों द्वारा सहायता कर रहे हैं, वहीं इनकी ओर से यूक्रेन को बड़ी आर्थिक सहायता भी दी जा रही है।  आज यूक्रेन के लाखों ही शरणार्थी जिनमें ज्यादातर संख्या में महिलाएं तथा बच्चे शामिल हैं, ने इन यूरोपियन यूनियन के देशों में शरण ली हुई है।
परन्तु ज़ेलेन्सकी के नेतृत्व में यूक्रेन ने हौसला नहीं हारा तथा वह लगातार रूस द्वारा कब्ज़ा में लिये गये क्षेत्रों को पुन: हासिल करने हेतु अपना पूरा ज़ोर लगा रहा है तथा इसमें उसे सफलता भी मिल रही है  परन्तु इसके बावजूद क्रीमिया सहित अब रूस के कब्ज़े में यूक्रेन का 20 प्रतिशत के लगभग भाग है। बड़ी चिन्ताजनक बात यह है कि लम्बा होता यह युद्ध किसी भी समय तीसरे विश्व युद्ध का रूप धारण कर सकता है। इसमें परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का भी डर बना हुआ है। यदि दुर्भाग्य से ऐसा होता है तो विश्व का बड़ी सीमा तक विनाश होने का ़खतरा पैदा हो सकता है। इसलिए भारत, चीन तथा बड़े देशों को इस युद्ध का मुंह मोड़ने के लिए कड़े यत्न करने की ज़रूरत होगी ताकि हर पक्ष से हो रहे तथा होने वाले सम्भावित नुक्सान से बचा जा सके।


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द