देश में रिवेंज शॉपिंग से मिलेगा इकोनॉमी को बूस्ट 


गुस्सा या यों कहें कि बदला भी इकोनोमी को बूस्ट कर सकता है। इसका जीता जागता उदाहरण है कोरोना के साये से निकलने के बाद खरीददारी की आजादी का। कोरोना काल ने लोगों की सोच ही बदल डाली थी और लोग भविष्य के लिए इस कदर चिंतित होने लगे थे कि बचत ही एकमात्र ध्येय हो गया था। लोगों का ध्यान केवल बचत और खाने-पीने की सामग्री के संग्रहण पर ही  हो गया था। इसका कारण भी साफ था कि कोरोना के दौर में कब घर में कैद होना पड़े  इसका अंदाज ही नहीं लगाया जा सकता था। ऐसे में लोग समुचित खाद्य सामग्री घर पर रखने पर जोर देने लगे तो अलावा अन्य चीजों पर ध्यान देना ही लगभग छोड़ दिया गया। सालाना मोबाईल बदलने की आदत लोगों की छूटी तो लोगों ने कपड़ों आदि की खरीददारी से भी मुंह मोड़ लिया। यहां तक कि कोरोना लाकडाउन के बाद भी लोगों ने मॉल्स में जाना, सिनेमाघरों की ओर रुख करना, होटल या बाहर खाना खाने जाना, घूमने-फिरने पर भी ब्रेक लगा दिया जो अब धीरे धीरे बदलने लगा है। जब घर पर ही रहना है तो काहे को कपड़े अन्य वस्तुएं खरीदें। ऐसें में इकोनॉमी पर भी बुरा असर पड़ना लाजिमी था। परन्तु अब कोरोना के असर के कम होते होते लोगों में रिवेंज शॉपिंग का इस कदर शौक चढ़ा है कि पूरी इकोनॉमी को ही बूस्ट मिलने लगा है। दूसरी ओर लोगों ने बचत की आदत को पांच साल पीछे धकेल दिया है। रिवेंज शॉपिंग को इस तरह से समझा जा सकता है कि देश में चौपहिया वाहनों और उसमें भी खासतौर से एसयूवी सेगमेंट के वाहनों की खरीददारी को बूम मिला है । पर्यटन खासतौर से देशी पर्यटन को बढ़ावा मिल रहा है। घर से बाहर खाना तो फैशनेबल परिधानों की खरीदारी, गेजेट्स की खरीददारी तेजी से बढ़ रही हैं। देखा जाए तो सभी सेक्टर में बूम देखने को मिल रहा है। 
रिवेंज शॉपिंग को यूं समझा जा सकता है कि इंग्लैण्ड की प्रिंसेज डायना को जब यह पता चला कि प्रिंस विलियम की जिंदगी में दूसरी औरत है तो उन्होंने उसी दिन ब्लैक ऑफ सोल्डर ड्रैस पहनी जो आज भी लोगों के जेहन में है। जिस तरह से बाड़े में बंद जानवरों को जब बाड़े से निकाला जाता है तो वे दौड़ लगा देते हैं। उसी तरह से कोरोना त्रासदी से मुक्ति का जश्न लोग आज रिवेंज शॉपिंग के माध्यम से मनाने लगे हैं। रिजर्व बैंक ऑफ  इण्डिया की हालिया रिपोर्ट को देखें तो भारतीयों में घरेलू बचत की जो आदत थी वह घट कर पिछले पांच वर्ष के निचले स्तर पर आ गई है जबकि कोरोना काल में घरेलू बचत का आंकड़ा जीडीपी के 21 फीसदी तक पहुंच गया था। देखा जाए तो ‘ऋणं कृत्वा घृतम पिवेत’ की संस्कृति विकसित हुई है। 
दरअसल जब लोगों के पास पैसा आता है या यों कहें कि पैसों की सहज उपलब्धता होने लगती है तो बाजार में बूम आता ही है। इकोनोमी के लिए यह जरूरी भी है। मजे की बात यह है कि यह सब कुछ तब है जब बाजार में सभी वस्तुओं के दामों में बढ़ोतरी हो रही है। कोरोना काल में  लोगों की सोच था कि दो पैसा है तो अड़ी-बड़ी वक्त में काम आयेगा वहीं अब लोगों की सोच में यह बदलाव देखने को मिल रहा है कि जिंदगी का दो घड़ी का भरोसा नहीं। 
वैसे भी अब बाजार विशेषज्ञों की त्यौहारी खरीदारी पर नजर है। जिस तरह से मार्केट रिएक्शन्स आने लगे हें उससे सभी क्षेत्र में अच्छी खरीदारी के संकेत आने लगे हैं। जानकारों की मानें तो दीपावली के त्यौहारी सीजन में 125 करोड़ रुपये के कारोबार की संभावनाएं व्यक्त की जा रही है, पिछले दिनों में सर्राफा बाजार में तेजी देखने को मिली  तो इलेक्ट्रानिक उद्योग भी गति पकड़ रहा है। जानकारों की मानें तो रिवेंज शॉपिंग का पूरा असर इस त्यौहारी सीजन में दिखाई देगा।  
रिवेंज शॉपिंग का असर हमारे यहां ही नहीं अपितु दुनिया के अन्य देशों मे भी साफ  दिखाई दे रहा है। हमारे देश में यह नया चलन है। जिस तरह से आक्रोश दबा रहता है परन्तु उसका असर दिखाई देने लगता है, उसी तरह से रिवेंज शॉपिंग का असर दिखाई देगा और यही भारतीय इकोनॉमी की चहुंमुखी बहार का कारण बनेगा। इसमें कोई दो राय नहीं दिखाई देतीं है। रिवेंज शॉपिंग का असर एमएसएमई से लेकर घरेलू दस्तकारों, शिल्पकारों और निर्माताओं तक को मिलेगा। हालांकि अब ई मार्केटिंग की ओर तेजी से रुझान बढ़ता जा रहा है। ऐसे में कोरोना के बाद रिवेंज शॉपिंग को भारतीय घरेलू इकोनोमी के लिए शुभ संकेत के रूप में ही देखा जाना चाहिए।