कई राज्यों में विफल हो रहे हैं भाजपा के ‘आप्रेशन लोटस’


कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा जिस राज्य में पहुंचने वाली होती है, वहां भाजपा के ऑपरेशन लोटस की चर्चा शुरू होने लगती है। यात्रा जब तेलंगाना में थी तो अखबारों में खबर छपी और टेलीविजन चैनलों पर भी दिखाया गया कि राहुल की यात्रा जब महाराष्ट्र पहुंचेगी तो ऑपरेशन लोटस होगा और कांग्रेस के कई विधायक टूट कर भाजपा में शामिल होंगे। उससे पहले जब यात्रा केरल से कर्नाटक पहुंची थी, तब भी यही कहा गया था। अभी जब 23 नवम्बर को यात्रा ने मध्य प्रदेश में प्रवेश किया तो उससे पहले कहा जा था कि कांग्रेस के विधायक भाजपा में शामिल होंगे। हालांकि हकीकत यह है कांग्रेस न कर्नाटक में टूटी, न महाराष्ट्र और न मध्य प्रदेश में। न ही उसका कोई विधायक टूट कर भाजपा में शामिल हुआ। गौरतलब है कि भाजपा महाराष्ट्र में लम्बे समय से कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने का प्रयास कर रही है। शिव सेना से टूट कर जब एकनाथ शिंदे गुट अलग हुआ और भाजपा के समर्थन से नई सरकार बनी तो उसके विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के समय कांग्रेस के कई विधायक नहीं पहुंचे थे। नहीं पहुंचने वाले विधायकों ने कहा कि वे ट्रैफिक में फंस गए थे लेकिन प्रचारित यह हुआ कि ये विधायक भाजपा में जाने वाले हैं। दो पूर्व मुख्यमंत्रियों अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण के बारे में भी कहा जा रहा था कि वे कांग्रेस छोड़ेंगे, लेकिन जब राहुल की यात्रा महाराष्ट्र पहुंची तो ये दोनों नेता यात्रा के साथ रहे। सो, जैसे कर्नाटक में ऑपरेशन लोटस फेल हुआ, वैसे ही महाराष्ट्र और अब मध्य प्रदेश में भी फेल हो गया। 
हिमाचल को लेकर चिंतित है भाजपा 
हिमाचल प्रदेश में चुनाव खत्म होने के बाद भाजपा में जो विचार-विमर्श हुआ है, उसका लब्बोलुआब यह है कि भाजपा जीत तो जाएगी लेकिन जीत का अंतर बहुत मामूली होगा। अंदरूनी हिसाब-किताब में पार्टी ने 35 से ज्यादा सीटें मिलने का अनुमान लगाया है। सीटों के आकलन के साथ-साथ पार्टी ने बागी उम्मीदवारों को लेकर भी मंथन किया है। पार्टी के आला नेताओं को इनके बारे में बड़ी चौंकाने वाली जानकारी भी मिली है। याद करें कि कैसे चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बागी प्रत्याशी को मनाने के लिए फोन किया था और उसने सीधे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की शिकायत कर दी थी। तब प्रधानमंत्री ने कहा था कि उन्हें सब पता है। 
भाजपा से जुड़े सूत्रों के मुताबिक कई बागी उम्मीदवार पार्टी के बड़े नेताओं की शह पर ही मैदान में उतरे थे। किसी ने बिलासपुर के इलाके में बागी उम्मीदवार खड़े करा दिए तो किसी ने हमीरपुर के इलाके में बागियों को शह दी। एक दूसरे को कमज़ोर करने की राजनीति के तहत बागी उम्मीदवार उतारे गए, जिसका नुकसान पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों को हुआ। इसके बावजूद भाजपा के आला नेतृत्व को फीडबैक यही मिली है कि पार्टी जैसे-तैसे चुनाव जीत जाएगी। बहरहाल, चुनाव का नतीजा चाहे जो हो लेकिन नतीजों के बाद पार्टी में कुछ नेताओं से जवाब तलब किया जाएगा। 
राहुल और केजरीवाल का अन्तर
राहुल गांधी सचमुच जोखिम उठा रहे हैं। राजनीति में जो टैक्टिकल लाइन होती है, उसे छोड़ कर वह भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं। जिस दिन उन्होंने सावरकर पर हमला करके महाराष्ट्र में कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया, उसके एक दिन बाद ही उनकी यात्रा में नर्मदा बचाओ आंदोलन का चेहरा रहीं मेधा पाटकर शामिल हुईं। राहुल उनके कंधे पर हाथ रख कर चलते दिखे। भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी सभा में कहा कि मेधा पाटकर ने गुजरात और गुजरातियों को देशभर में बदनाम किया और उनके साथ कांग्रेस नेता यात्रा कर रहे हैं। अब सोचने वाली बात है कि क्या राहुल गांधी को पता नहीं था कि मेधा पाटकर के साथ यात्रा करने पर गुजरात में पार्टी को नुकसान हो सकता है? उनको पता था, फिर भी उन्होंने अपनी विचारधारा की वजह से जोखिम लिया। इसी मामले में बिना विचारधारा वाली आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी का फर्क दिखता है। जब गुजरात के चुनाव की घोषणा नहीं हुई थी, तब कहीं से यह खबर मीडिया में प्लांट की गई कि आम आदमी पार्टी मेधा पाटकर को गुजरात में मुख्यमंत्री का चेहरा बना सकती है। इस बात पर केजरीवाल इस तरह भड़के कि उन्होंने कहा कि उन्होंने भी सुना है कि भाजपा सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाने जा रही है। देखने वाली बात है कि मेधा पाटकर का नाम जोड़े जाने भर से केजरीवाल कितना भड़के थे और राहुल उनके कंधे पर हाथ रख कर चल रहे थे। 
अंधा कर देती है साम्प्रदायिक ऩफरत 
इस समय भारत जोड़ो यात्रा पर निकले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दाढ़ी बढ़ा रखी है, जिस पर तन्ज़ कसते हुए असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि राहुल का चेहरा सद्दाम हुसैन की तरह हो गया है। दरअसल हिमंता जब से भाजपा में गए हैं, तब से वह हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय के तौर पर अपनी पहचान बनाने में लगे हैं। वह कांग्रेस और मुसलमानों के खिलाफ  बढ़-चढ़ कर नफरत भरे बयान देते रहते हैं। उन्होंने सद्दाम से राहुल की तुलना सिर्फ  इस वजह से की क्योंकि सद्दाम हुसैन मुसलमान थे। हिमंता का म़कसद सद्दाम से तुलना करके राहुल और कांग्रेस को मुसलमानों जैसा या मुस्लिमपरस्त बताना था, लेकिन ऐसा करके अपने को हिंदुत्व का अग्रदूत साबित करने के चक्कर में हिमंता राजनीतिक रूप से अपने जाहिल होने का परिचय दे बैठे, क्योंकि हकीकत यह है कि सद्दाम हुसैन भारत के परम मित्र थे। उन्होंने इराक का राष्ट्रपति रहते हुए हर मंच पर भारत का साथ दिया था। जब पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो कश्मीर मसले पर इस्लामिक देशों का समर्थन जुटाने के अभियान पर निकलीं थी तो इराक अकेला मुल्क था, जिसने बेनज़ीर को खाली हाथ लौटाया था। बांग्लादेश युद्ध के समय भी सद्दाम ने भारत का साथ दिया था। इतना ही नहीं, जब बाबरी मस्जिद ध्वस्त किए जाने के खिलाफ  समूचे इस्लामिक जगत में भारत विरोधी प्रदर्शन हो रहे थे, तब सद्दाम ने इराक में कोई प्रदर्शन नहीं होने दिया था। इसलिए सद्दाम न तो भारत विरोधी थे और न हिंदू विरोधी, मगर यह बात अकल के अंधों की समझ में नहीं आ सकती।