बड़ोग बनाम जोशीमठ, तुर्की व सीरिया

 

तुर्की, सीरिया व जोशीमठ की प्राकृतिक आपदा ने पूरे विश्व को दहला कर रख दिया है। तुर्की व सीरिया में मृतकों की संख्या 40,000 से अधिक हो चुकी है और घायलों की संख्या एक लाख से पार। 41,500 इमारतें ध्वस्त हो चुकी हैं। वहां की सरकारें बचाव कार्यों में व्यस्त हैं। संयुक्त राष्ट्र भी पूरा ज़ोर लगा रहा है और आस्ट्रेलिया तथा भारत जैसे अन्य देश भी अपना-अपना योगदान दे रहे हैं। परन्तु दूसरी तरफ कुछ लोगों की भूख का यह हाल है कि प्राकृतिक आपदा का शिकार हुए लोगों की लूट-पाट से बाज़ नहीं आ रहे। एक सौ से अधिक दुष्टों का हिरासत में लिया जाना भी कोई सबक नहीं सिखा सका। 
जोशीमठ का घटनाक्रम चाहे कई दिन पुराना है परन्तु इसने राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल को हिल स्टेशन मसूरी के विशेष अध्ययन के लिए 9 सदस्यीय समिति गठित करने हेतु मजबूर कर दिया है। यहां भी गैर-योजनाबद्ध निर्माण रुक नहीं रहे। समिति से 30 अप्रैल तक रिपोर्ट की मांग करते हुए निर्देश दिया गया है कि हिमालय के पर्यावरण के पक्ष से अति संवेदनशील क्षेत्रों में प्रवाह क्षमता का अध्ययन करके अनुचित क्षेत्रों में हो रहे अवैध निर्माणों का पर्दाफाश करे। 
स्पष्ट है कि ऐसे दुखद घटनाक्रम के लिए मानवीय लालच भी उतना ही ज़िम्मेदार है जितना प्राकृतिक आपदा। शायद उससे भी अधिक। माना बढ़ रही आबादी मानव जाति को अधिक घर तथा अन्य ऐसी सुविधाएं कायम करने के लिए  मजबूर करती है, परन्तु इमारत निर्माताओं का कर्त्तव्य है कि मांग करने वालों को ऐसे निर्माण से रोकें, जिसने जान का खतरा बनना है। उन्हें चाहिए कि अपने ग्राहकों को समझाएं कि वे नये तथा आवश्यक निर्माण के लिए ऐसे स्थानों पर जाने की सोचें जो घनी आबादी से दूर हों तथा यह भी देखा जाना चाहिए कि उन क्षेत्रों में किस प्रकार की सामग्री निर्माण के लिए इस्तेमाल करनी सुरक्षा के पक्ष से बेहतर हो सकती है ताकि तुर्की, सीरिया एवं जोशीमठ जैसी नौबत न आए। 
विपरीत स्थितियों में लूट-पाट करने वाले घटनाक्रम पर टिप्पणी करने के लिए मैं 1947 में देश के विभाजन की ओर लौटना चाहूंगा, जिसका मैं चश्मदीद गवाह हूं। तब हमारे गांव वाले अपने गांव के मुसलमानों की रक्षा करना चाहते थे, परन्तु पड़ोसी गांवों के हिन्दू-सिख हर-हर महादेव तथा बोले सो निहाल के नारे लगाते इस प्रकार टूट पड़े कि हमारी कोई पेश नहीं गई। उन्होंने 23 मुसलमानों की हत्या की और उनकी सात बहू-बेटियों को उठाकर ले गए। मूल उद्देश्य उनके आभूषण तथा सामान अस्बाब लूटना था। हमारे गांव वालों की उनकी बड़ी संख्या के आगे कोई पेश नहीं चली, इसलिए भी कि हम इस प्रकार की स्थिति से बिल्कुल अनजान थे। 
यह बात भी नोट करने वाली है कि विश्व में भूकम्पों की आपदा कोई नई बात नहीं। अखंड हिन्दुस्तान में घटित 1935 के कोटा भूकम्प की बातें आज भी होती हैं। वैसे भी संख्या के तौर पर प्रतिदिन विश्व में लगभग 150 भूकम्प आते हैं, परन्तु इनसे डरने की आवश्यकता नहीं। ये भूकम्प 6 रिक्टर स्केल से कम होते हैं। विनाश नहीं करते। ऐसे भूकम्पों के समय छोटे बच्चे अपने ठिकानों में से बाहर निकल कर नाचते तथा गाते भी देखे गए हैं। 
फिजी, जापान, अमरीका तथा इंडोनेशिया में प्रतिदिन किसी न किसी भाग में भूकम्प आता है। यह भी कि ऐसे भूकम्पों का संख्या में प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है। कारण यह कि मानव जाति पर्यावरण तथा जलवायु की हकीकत को नज़रअंदाज़ करके इमारतों के निर्माण में दिन-प्रतिदिन वृद्धि की जा रही है। विकास के नाम पर धरती के पदार्थों को नष्ट करना, कम गुनाह नहीं है। दूसरी तरफ यदि प्रकृतिक आपदा की बात करें तो रिक्टर स्केल सात तक या इससे अधिक वाला हो तो विनाश का अंत नहीं रहता, जैसे कि तुर्की व सीरिया या साथ लगते देशों में हुआ है।
भूकम्पों का मूल कारण वह है जो भवन निर्माता कर रहे हैं। भवन निर्माताओं के लालच ने मुझे कालका-शिमला रेलवे लाइन के निर्माण समय ब्रिटिश शासन की घटना याद करवा दी है जब बड़ोग की ऊंचाइयों में लाइन बिछानी थी तो अंग्रेज़ इंजीनियर ने ज़रूरी सुरंग जल्द से जल्द निकालने की भावना से इसकी खुदाई दोनों सिरों से करवानी शुरू कर दी। हुआ यह कि मेल वाले स्थान पर मिलने की बजाय कुछ टेढ़ी रह गई और पूरी खुदाई दोबारा करनी पड़ी। जब उस अंग्रेज़ इंजीनियर को सरकारी खज़ाना बर्बाद होने का अहसास हुआ   तो उसने आत्महत्या कर ली थी। सुरंग भी निकाली गई, रेलवे लाइन भी बिछ गई परन्तु उस अंग्रेज़ अधिकारी के ज़मीर की चर्चा आज तक होती है, जिसने अपनी गलती के कारण आत्महत्या की थी। उस इंजीनियर का नाम बड़ोग था जिसने नाम पर अभी भी रेलवे स्टेशन बड़ोग कायम है। यह भी सिर्फ सबब की बात नहीं कि वर्तमान भारत सरकार ने इस लाइन पर हाईड्रोजन ट्रेन शुरू करने के लिए इस लाइन पर जो तीन हाईड्रोजन केन्द्र स्थापित करने हैं, उनमें कालका व शिमला से अतिरिक्त जो तीसरा केन्द्र है, वह बड़ोग होगा। अंग्रेज़ इंजीनियर वाला।
अंतिका
(शान कश्मरी)
कितने झखड़ झुल्ले राह
 विच्च किद्दां दे तूफान आये
हारी नहीं तुरदी रही 
ए मुस्करांदी ज़िन्दगी