संताप की वार्ता


कश्मीर के पुंछ क्षेत्र में पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी  संगठन जैश-ए-मोहम्मद के समर्थक पी.ए.एफ.एफ. (पीपल्ज़ एंटी फासिस्ट फ्रंट) द्वारा एक सैनिक ट्रक पर हमला करने से 5 जवानों के शहीद होने के बाद दोनों देशों में एक बार फिर संबंध बिगड़ गये हैं। पिछले दशक भर से दोनों देशों की सीमाएं बड़ी हद तक बंद हैं। आपसी व्यापार बुरी तरह प्रभावित हो चुका है। पाकिस्तान के माध्यम से केन्द्रीय एशिया के देशों का भारत के साथ होता व्यापार भी बेहद प्रभावित हुआ है। लगभग ये समाचार मिले थे कि 12 वर्ष बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी गोवा में अलग-अलग देशों के साझे संगठन ‘शंघाई कार्पोरेशन आर्गेनाइजेशन’ की हो रही एक बैठक में भाग लेने आ रहे हैं। इससे पहले वर्ष 2011 में वहां की विदेश मंत्री हीना रब्बानी भारत आई थीं। यह भी अनुमान लगाये जा रहे थे कि यदि यह बैठक अच्छे परिणाम वाली सिद्ध होगी तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शऱीफ के भी भारत की यात्रा की सम्भावनाएं बन सकती हैं परन्तु यदि पुंछ जैसी घटनाएं घटित होती रहीं तो इन यात्राओं पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
यह बात सुनिश्चित प्रतीत होने लगी है कि पाकिस्तान में चाहे कोई भी सरकार हो, वह भारत के साथ संबंध सुधारना भी चाहती हो तो भी आतंकवादी घटनाओं के कारण ऐसा नहीं होता। पाकिस्तान में स्थापित सरकार के साथ-साथ सेना अपने ढंग तथा निर्धारित एजेंडे के अनुसार काम करती है। इसके साथ ही वहां अनेक तरह के आतंकवादी संगठन भी स्वतंत्र रूप में विचरण करते हुए दिखाई देते हैं। यदि वहां की कोई सरकार न भी चाहती हो तो भी सेना तथा आतंकवाद मिल कर भारत के विरुद्ध अपनी गतिविधियां जारी रखते हैं। आज पाकिस्तान की अर्थ-व्यवस्था बुरी तरह दयनीय हालत में है। लोग आटे तथा अन्य ज़रूरी वस्तुओं के लिए त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। विश्व भर में इस देश को आतंकवादियों का अड्डा माना जा रहा है। परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि किसी भी सरकार के लिए ऐसी स्थिति को नियंत्रित कर पाना सम्भव नहीं है।
वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी की सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में सरकारी आमंत्रण पर तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शऱीफ पहुंचे थे, उसके बाद श्री मोदी द्वारा अचानक ही पाकिस्तान का संक्षिप्त दौरा किया गया था। बाद में भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी पाकिस्तान गई थीं परन्तु अक्सर यह भी देखा गया है कि जब कभी भी दोनों देशों के संबंध सुधरने लगते हैं तो आतंकवादी संगठनों द्वारा की गई कार्रवाइयों के कारण इन संबंधों में पुन: कटुता पैदा हो जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों देशों के संबंध सुधरने में अभी और समय लगेगा, परन्तु इसके साथ ही यह ज़रूर महसूस किया जाता है कि इन संबंधों की कटुता के कारण करोड़ों लोगों की ज़िन्दगियां प्रभावित हो रही हैं। आज भी दोनों देशों की अपनी-अपनी बड़ी समस्याएं हैं, आज भी आगे का रास्ता बेहद कठिन है परन्तु आतंकवाद के फैले जाल ने दोनों देशों को एक तरह से जकड़ लिया है। ऐसी जकड़न कब ढीली होगी इसका अनुमान लगाना बेहद मुश्किल दिखाई देता है। प्रतीत होता है कि आगामी लम्बी अवधि तक इस क्षेत्र के लोगों को संताप झेलना पड़ेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द