पाकिस्तान—गृह-युद्ध की ओर !

पाकिस्तान आज बुरी तरह से चारों ओर से घिरा दिखाई दे रहा है। वह बेहद आर्थिक मंदी के दौर से गुज़र रहा है। वह विश्व भर के आतंकवादियों का गढ़ भी बन गया है। वहां का राजनीतिक परिदृश्य उबाल लेने लगा है। वहां की सेना के तेवर पूरी तरह उत्तेजित दिखाई देते हैं। सामाजिक तथा धार्मिक तौर पर यह देश रास्ते से भटक गया प्रतीत हो रहा है।
जहां तक इसकी अर्थ-व्यवस्था का संबंध है, बाहर से बेहद ज़रूरी वस्तुएं मंगवाने हेतु भी इसके पास विदेशी करंसी कुछ सप्ताह तक की ही शेष है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इसे लगातार चेतावनियां दी हैं कि वह अन्तर्राष्ट्रीय ऋण चुकाने के लिए प्राथमिक ज़रूरतों की पूर्ति नहीं कर रहा। सभी बड़े देश ऐसी स्थिति में उसे किसी तरह का भी फंड देने से किनारा करने लगे हैं। इसी तरह उसे अन्तर्राष्ट्रीय ऋण देने वाली संस्था ने लम्बे समय से ‘ग्रे सूची’ में शामिल कर रखा है। उसकी ज़रूरतें पूरी करने के लिए भी यह प्रयत्नशील होता रहा है। शाहबाज़ शऱीफ जोकि 13 राजनीतिक पार्टियों के संगठन पाकिस्तान डैमोक्रेटिक मूवमैंट द्वारा प्रधानमंत्री बने हैं, ने भी पिछले महीनों में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात तथा कई अन्य देशों का दौरा किया है ताकि उनके हाथ में पकड़ा कटोरा भर सके, परन्तु इसके साथ ही तहरीक-ए-इन्स़ाफ पार्टी के अध्यक्ष इमरान खान ने अपनी उच्छृंखल कार्रवाइयों तथा आधारहीन बयानबाज़ी से समूचे देश का माहौल ही खराब कर दिया है, जिस कारण वहां गृह-युद्ध के हालात बनते दिखाई दे रहे हैं। विगत वर्ष अप्रैल मास में इमरान खान की सरकार को वहां की संसद में दर्जन से अधिक विपक्षी राजनीतिक पार्टियों तथा उनकी अपनी पार्टी के ही बड़ी संख्या में सदस्यों द्वारा उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करके उन्हें कुर्सी से उतार दिया था। इसके बाद वह पूरी तरह बेकाबू हुए दिखाई दिये। जहां इमरान ने तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल जावेद बाजवा की खुल कर आलोचना की, वहीं कुर्सी से उतारे जाने का आरोप अमरीका पर भी लगाया। अब भी लगातार इमरान यह बयान दे रहे हैं कि मौजूदा सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर उन्हें मारना चाहता है। नि:सन्देह सेना ने पाकिस्तान को लम्बी अवधि तक अपनी जकड़ में रखा है। यह सिलसिला अयूब खान से शुरू हो कर जनरल परवेज़ मुशर्रफ तक चलता रहा है। इन सैनिक तानाशाहों ने देश के संविधान में अपने अनुसार संशोधन करवा कर देश पर अपनी पकड़े बनाये रखी तथा अपनी इच्छानुसार इसे चलाया। इस प्रकार वहां के करोड़ों लोगों की ज़ुबान बंद कर दी गई। 
कुर्सी छिन जाने के बाद इमरान खान ने संसद के शेष समय से पूर्व ही चुनाव करवाने की ज़िद्द पकड़ ली। इसके साथ ही उन्होंने प्रांतीय असैम्बलियों में अपने सदस्यों को त्याग-पत्र देने का निर्देश जारी कर दिया ताकि प्रदेश असैम्बलियां भंग हो जाएं तथा सरकार पर चुनाव के लिए दबाव डाला जा सके, परन्तु शाहबाज़ शऱीफ की सरकार जब राष्ट्रीय असैम्बली के चुनाव समय से पहले करवाने हेतु न मानी तो उन्होंने पंजाब तथा ़खैबर पख़्तूऩखवा में पुन: चुनावों की मांग शुरू कर दी। उनकी लगातार अर्थहीन कार्रवाइयों के कारण जहां उन पर देश में 100 से अधिक मामले चल रहे हैं, वहीं उन्हें पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने पर उन्होंने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं तथा लोगों को मैदान में उतरने की अपील कर दी थी। इससे एक बार तो पूरे पाकिस्तान में ज्वाला भड़कने लगी थी। भीड़ों ने बड़े-छोटे संस्थानों पर हमले करने के साथ-साथ सैनिक मुख्यालयों पर भी हमले कर शुरू कर दिये थे। सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये इमरान-पक्षीय फैसलों के दृष्टिगत पाकिस्तान डैमोक्रेटिक मूवमैंट से संबंधित पार्टियों के कार्यकर्ता सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष भी जा खड़े हुये थे। उत्पन्न हुए ऐसे हालात सेना को सत्ता सम्भालने का निमंत्रण देने वाले हैं। ऐसी चेतावनी जनरल असीम मुनीर ने जारी भी कर दी है, जिससे हालात के और भी बिगड़ने की सम्भावना बन गई है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान का भविष्य एक बार फिर बेहद धूमिल होता दिखाई देने लगा है।


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द