प्रौद्योगिकी में नये आयाम स्थापित करता भारत
आज के लिए विशेष
तकनीकी प्रगति न केवल जीवन को सरल और सुलभ बनाती है बल्कि यह गरीबी में कमी, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण और सार्वजनिक सेवाओं में सुधार के माध्यम से मानव विकास की दिशा में महत्वपूर्ण रोल अदा करती है। इसलिए भारत 11 मई को नेशनल टेक्नोलॉजी दिवस मनाता है, जो 1998 के ऐतिहासिक पोखरण परमाणु परीक्षणों की याद दिलाता है।
इस राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस पर जब हम भारत की वैज्ञानिक यात्रा को आगे बढ़ाने वाले वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और शोधकर्ताओं के योगदान को सलाम करते हैं, तो हमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में किए गए परिवर्तनकारी कदमों को भी स्वीकार करना चाहिए। 2014 से भारत ने अपने स्वयं के ‘रमन प्रभाव’ का अनुभव किया है जिसमें तेजी से प्रगति ने ‘टेकेड’ के लिए मंच तैयार किया है, जो नवाचार, डिजिटल सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता से प्रेरित है।
नवाचार एवं विकास : जैसे-जैसे देश ‘विकसित भारत’ के अपने विजन की ओर आगे बढ़ रहा है, देश का नवाचार एवं विकास के बजट में भारी वृद्धि हो रही है। पिछले एक दशक के दौरान बजट 60,196 करोड़ रुपये से बढ़कर 1,27,381 करोड़ रुपये हो गया है। केंद्रीय बजट 2025-26 साइंस और टेक्नोलॉजी विकास के लिए 33,393 करोड़ रुपये से अधिक के आवंटन के साथ इस महत्वाकांक्षा को दर्शाता है। इसमें से 20,000 करोड़ रुपये विज्ञान और पटेक्नोलॉजी विभाग (डीएसटी) को निजी क्षेत्र के नवाचार, एआई, भ-स्थानिक प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने और स्कूलों में वैज्ञानिक जिज्ञासा जगाने के लिए 50,000 अटल टिंकरिंग लैब्स की स्थापना के लिए आवंटित किए गए हैं। 10,000 से अधिक प्रधानमंत्री अनुसंधान फैलोशिप आईआईटी और आईआईएससी जैसे प्रमुख संस्थानों में अत्याधुनिक शोध का समर्थन करेंगे। डीपटेक स्टार्टअप्स के लिए फंड के लिए 10,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। प्रमुख इसरो केंद्रों के लिए 10,230 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इसी तरहए वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआईआर)और डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस के लिए आवंटन में क्रमश 230 प्रतिशथ और 139 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
अंतरिक्ष में ‘टैकेड’ : भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम ने पिछले एक दशक में लगातार अपनी प्रभावी नवाचार और तकनीक में शानदार प्रदर्शन के लिए वैश्विक प्रशंसा प्राप्त की है। मंगलयान जैसे ऐतिहासिक मिशन दुनिया का सबसे किफायती मंगल ऑर्बिटर और चंद्रयान-1, जिसने चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी की पुष्टि की, ने इसरो की वैज्ञानिक क्षमताओं को प्रदर्शित किया। 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ऐतिहासिक चंद्रयान-3 की लैंडिंग ने अंतरिक्ष इतिहास में भारत के स्थान को और मज़बूत किया। सितम्बर 2023 में लॉन्च की जाने वाली भारत की पहली सौर वेधशाला, आदित्य-एल1 अब सूर्य के कोरोना और पृथ्वी पर इसके प्रभावों का अध्ययन कर रही है। स्वदेशी मानव अंतरिक्ष यान मिशन गगनयान भारत को अंतरिक्ष में मानव भेजने वाला चौथा देश बनाने के लिए तैयार है। भारत का अंतरिक्ष सेक्टर भी निजी खिलाड़ियों के लिए खुल गया है। अब इसरो के साथ 150 से ज़्यादा स्टार्टअप काम कर रहे हैं और नासा-इसरो मिशन जैसे वैश्विक साझेदारी से से यह इकोसिस्टम फल-फूल रहा है।
बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में क्रांति : केंद्र सरकार ने लगातार नवाचार और तकनीकी उन्नति को प्राथमिकता दी है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत ने बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र ने असाधारण वृद्धि का अनुभव किया है जो 2014 में 10 बिलियन अमरीकी डॉलर की इंडस्ट्री से बढ़ कर 2024 में 130 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक हो गई है और 2030 तक 300 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। भारत वर्तमान में वैश्विक वैक्सीन उत्पादन का 60 प्रतिशत हिस्सा है और संयुक्त राज्य अमरीका के बाद यूएसएफडीए अनुमोदित विनिर्माण संयंत्रों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या का घर है। बायो-फार्मा, बायो-एग्री, बायो-इंडस्ट्रियल, बायो-एनर्जी, बायो-सर्विसेज और मेड-टेक जैसे क्षेत्रों में बढ़ते निवेश अवसरों के साथ भारत बायोटेक्नोलॉजी में एक वैश्विक नेता के रूप में उभर रहा है।
साइंस एंड टेक्नोलॉजी इकोसिस्टम का लोकतंत्रीकरण : आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण के तहत, भारत ने राष्ट्र निर्माण में स्टार्टअप, एमएसएमई, शिक्षाविदों और उद्योग को शामिल करके साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एस एंड टी) के लोकतंत्रीकरण में पिछले एक दशक में बड़ी प्रगति की है। यह समावेशी दृष्टिकोण भारत की जनसांख्यिकीय शक्ति का उपयोग करके एक गतिशील, नवाचार-संचालित इकोसिस्टम का निर्माण कर रहा है।
साइंस एंड टेक्नोलॉजी की नींव को किया मजबूत : स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, संचार और बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण ज़रूरतों को पूरा करने के लिए और भविष्य के उद्योगों को शक्ति प्रदान करने के लिए भारत ने साइंस एंड टेक्नोलॉजी की नींव मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित किया है। 2017 में शुरू की गई प्रतिष्ठित संस्थाओं (आईओई) जैसी पहल वैश्विक अनुसंधान उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए शीर्ष यूनिवर्सिटीयों को स्वायत्तता और वित्त पोषण प्रदान करती है। संस्थागत समर्थन के पूरक के रूप मेंए प्रधानमंत्री अनुसंधान फेलोशिप (पीएमआरएफ), रामानुजन फेलोशिप और इंस्पायर जैसी फेलोशिप एक मजबूत प्रतिभा का पोषण कर रही हैं। 2023 तक पीएमआरएफ ने 2,572 शोधकर्ताओं का समर्थन किया है, जिनमें से 35 प्रतिशत महिलाएं हैं।
भविष्य केंद्रित मिशन : आत्मनिर्भर भविष्य के लिए नेशनल बायो-एनर्जी और ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का लक्ष्य स्वच्छ ऊर्जा में वैश्विक नेतृत्व स्थापित करना है जबकि डीप ओशन मिशन समुद्री अनुसंधान को आगे बढ़ाता है और सेमीकंडक्टर मिशन चिप आत्मनिर्भरता में निवेश करता है, जो बजट का 2.5 प्रतिशत आर एंड डी और कौशल के लिए आवंटित करता है।
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