तैनूं सब है पता, है न मां...
अन्तर्राष्ट्रीय मातृ दिवस पर विशेष
इस पंक्ति में दुनिया की वह सच्चाई छुपी है जिसका कारण कोई बड़ी से बड़ी खोज भी न ही ढूंढ सकी है और न ही ढूंढ सकेगी कि मां को बिना बोले सब कुछ कैसे पता चल जाता है। जब एक महिला मां बनती है तो उसका रोल, उसकी दुनिया सब कुछ बदल जाता है।
ये वे नायिकाएं हैं जो चुपचाप समाज के भविष्य को आकार देती हैं। मनुष्य का पालन पोषण करके उसको समाज में खड़ा होने लायक बनाती हैं।
मां की देन अमूल्य है और हम सभी के दिल की गहराइयों से आदर-सम्मान और कद्र की हकदार है। मां दिवस एक ऐसा दिन है जब हम अपनी मां, चाहे जन्म देने वाली या किसी भी रूप में जो हमारी ज़िंदगी में मां की भूमिका की तरह प्रभाव डालने वाली हो, के प्रति सम्मान ज़ाहिर करें। उन सभी को यह दिन समर्पित करें, उनको अहसास दिलाएं कि हमारी ज़िंदगी में उनका कितनी अहम भूमिका है जो कि हम अपनी प्रतिदिन की ज़िंदगी में अपनी भागदौड़ में शायद अहसास दिलाना भूल जाते हैं।
मां बच्चे के बाहरी और मानसिक ज्ञान को विकसित करने के साथ-साथ अपनी संस्कृति, विरसा, परिवार के नैतिक मूल्यों को एक बच्चे से बड़े इन्सान में समा देने की बखूबी भूमिका निभाती है।
मां एक जहाज़ चालक की तरह है जो रास्ता दिखाने की भूमिका अपनाती है, जो पूरी ज़िंदगी औलाद को जीवन के तूफान में अपनी कश्ती को पार करवाना, चुनौतियों का सामना करना, मुश्किल समय में मज़बूत रहना सिखाती है। ये सब बातें एक इन्सान मां की दी शिक्षा, उससे ली गई राय, उपदेशों से हासिल करता है और इनके सहारे अपना जीवन व्यतीत करने की कोशिश करता है।
मां को बच्चा एक ढाल की तरह देखता है, जो उसको बाहर और बाकी घर वालों की डांट से बचाएगी, खासतौर पर पिता की डांट से। अक्सर छोटी से लेकर बड़ी औलाद के मुंह से यह बात सुनी जाती है कि ‘मां गलती हो गई पर पिता जी और अन्यों को मत बताना।’
यह मां का रिश्ता है, जिसका स्थान ज़िंदगी में कोई अन्य रिश्ता नहीं ले सकता। तभी कहते हैं कि नारी को शिक्षा दें, वह पूरे परिवार को शिक्षित करेगी। एक महिला का, मां का पढ़ा-लिखा होना बहुत ज़रूरी है, तभी वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के गहने के साथ श्रृंगार सकेगी। तभी मां को बच्चे की पहली अध्यापिका कहा जाता है और समझदार मां के समझदार और होशियार बच्चे होने की पूरी उम्मीद होती है। मां की ममता का रोल अकेले बच्चों तक सीमित नहीं होता, पूरे परिवार को मानसिक सहारा देने के साथ-साथ, दु:ख की घड़ी हो, चाहे सुख की घड़ी, मां की गोद में सुकून मिलता है।
मां परिवार के लिए शांति का स्रोत होती है। यह सहारा पारिवारिक सदस्यों को तनाव का सामना करने में मदद करता है। मां के उत्साहित करने वाले दो बोल ही बच्चे को अर्श पर पहुंचा देते हैं। दूसरे शब्दों में मां बच्चे के लिए सबसे ज्यादा जोशीली, प्रेरक और सहारा देने का काम करती है।
जब बच्चे बड़े हो रहे होते हैं और एक समय पर आकर उनको लगता है कि वे सबसे ज्यादा समझदार हैं और मां पुरानी सोच वाली है, वहां फिर नोक-झोंक शुरू हो जाती है। झट औलाद मां की भूमिका अपनी ज़िंदगी में से भूल जाती है, जिस मां ने चलना सिखाया होता है, जब वह कोई ठीक बात समझाती है तो सबसे बड़ी दुश्मन लगती है। हम किसी को भी इस धरती पर एक पवित्र शख्सियत के साथ बेरुखी करने का कोई अधिकार नहीं है। हर बात का एक तरीका होता है, अपनी बात रखने का भी, परन्तु मां के आगे हाथ खड़े करने और भी ज़रूरी होते हैं क्योंकि कुछ भी हो जाए, मां अपनी औलाद का बुरा नहीं सोचेगी, बुरा नहीं करेगी, जो कि इस ज़माने में, ज़िंदगी में किसी से भी उम्मीद की जा सकती है।
बड़े होने तक अपनी मां को यह अहसास दिलाना बहुत ज़रूरी होता है कि हम चाहे कितने भी बड़े हो जाएं, उनकी सलाह, उनके तजुर्बे के बिना हम अधूरे हैं।
हमारी मां ने जो हमारे लिए हमेशा किया है, हमारा भी फज़र् बनता है कि उनके साथ घर के काम में, पारिवारिक सभ्याचार कार्यों में मां को सहयोग दें। जो हमारी मां अपने सपने पूरे नहीं कर सकी, हमें उनको उनके बीते कल के शौकों को दोबारा से शुरू करने के लिए मदद करनी चाहिए। इस तरह से ‘मां’ को मां की भुमिका के अलावा एक भरपूर ज़िंदगी जीने की सामर्थ्य मिलेगी। मां, उसकी ममता, उसके प्यार, उसकी वफादारी को एक सच्ची-सुच्ची श्रद्धांजलि यही होगी, जब उसकी औलाद एक अच्छे अनुशासन, मेहनत करने वाले नागरिक के तौर पर उभरेगी।
बहुत दु:ख होता है यह देख कर कि मां जैसे अनमोल हीरे को कई बच्चे बड़े होकर बोझ समझने लगते हैं और वृद्ध आश्रमों की ओर मोड़ देते हैं। उनका ज़मीर इतना गिर जाता है कि जिस मां ने औलाद का दिल दुनिया से बचाकर संजोया होता है, आज जब मां को ज़रूरत है तो वही दिल कठोर बन जाता है।
कई बार कोई शख्सियत जिसने आपको जन्म नहीं दिया होता पर उस इन्सान का आपकी ज़िंदगी में मां जैसा रोल होता है, इस तरह की शख्सियतों का उपकार यदि उतारना है तो उनकी उम्मीदों और सपनों पर पूरा उतर कर ऐसा कर सकते हैं।
सलाम है हर मां (देश के भविष्य की शांत निर्माता) को जो अपने इस रोल में पांव रखने के बाद धरती मां के लिए अच्छे नागरिक उजागर करने में बखूबी भू्मिका निभाती है। इस धरती, कुदरत सबको देख कर एक बात याद आती है, ‘जे रब्ब होया इस दुनिया ते मां तेरे वरगा होवेगा।’
‘मातृ दिवस की शुभकामनाएं’
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