भारतीय सिनेमा के देसी जेम्स बांड फिरोज़ खान

भारतीय सिनेमा उद्योग में सबसे स्टाइलिश एक्टर निश्चितरूप से फिरोज खान थे। वह ऐसे फिल्मकार थे, जो वाइल्ड वेस्ट को बॉलीवुड में लेकर आये। उनके लेदर बूट्स, हैट्स, सिगार और हैं स्वैग ने उन्हें पूरब के क्लिंट ईस्टवुड व देसी जेम्स बांड जैसे नाम दिए। वह बचपन से ही विद्रोही स्वाभाव के थे। तीन बार स्कूल से निकाले गये, सीनियर कैंब्रिज तक शिक्षा प्राप्त की और कभी कॉलेज नहीं गये, लेकिन फिर भी 1960 के दशक में एक अंग्रेजी फिल्म (टाज़र्न गोज टू इंडिया) में सिमी ग्रेवाल के साथ काम किया। निर्माता निर्देशक बने तो तो पहली बार भारतीय सिनेमा के पर्दे पर कार रेसिंग दिखायी (फिल्म अपराध में), अफगानिस्तान में पहली हिंदी फिल्म (धर्मात्मा) शूट की, अंजान नाज़िया हसन से ‘आप जैसा कोई मेरी ज़िंदगी में आये’ गाना गवाया और उन्हें युवा दिलों की धड़कन बना दिया। फिरोज खान ऐसा कुछ करने में माहिर थे, जिसकी कोई उम्मीद भी न करता था। मसलन, फिल्म ‘कुर्बानी’ को बेचने के बाद वापस वितरकों से खरीदकर खुद रिलीज़ किया और सबको चौंका दिया। शायर सुदर्शन फाकिर फिल्मों में गीत नहीं लिखना चाहते थे, लेकिन फिरोज खान की ज़िद के आगे वह भी झुक गये। मूडी राजकुमार अगर फिल्मोद्योग में किसी से डरते थे तो वो दूसरे मूडी फिरोज खान ही थे। 
जुल्फिकार अली शाह खान के रूप में फिरोज खान का जन्म 25 सितम्बर 1939 को बेंग्लोर में हुआ था। उनके पिता सादिक अली खान अफगान थे, गजनी से और मां फातिमा पारसी थीं, ईरान से। उनकी मां का परिवार घोड़े पालने का काम करता था और यह शौक फिरोज खान को भी ताउम्र रहा। शाहरुख शाह अली खान को छोड़कर उनके शेष तीन भाइयों- संजय, समीर व अकबर का भी संबंध फिल्मों से रहा। फिरोज खान की दिलचस्पी शुरू से ही फिल्मों में थी, इसलिए वह बेंगलोर छोड़कर बॉम्बे चले आये और 1960 में आयी फिल्म ‘दीदी’ में दूसरी लीड के तौर पर उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। 
फिरोज खान 1960 से 1970 तक कम बजट वाली फिल्मों में ही काम करते रहे, जिनमें सिर्फ ‘ऊंचे लोग’ (1965) को अच्छी कामयाबी मिली, बाकी फिल्में औसत दर्जे की ही रहीं। उनकी असल पहचान ‘आदमी और इंसान’ (1969) से बनी, जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर का सहायक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ एक्टर का अवार्ड मिला। फिर 1971 में वह ‘अपराध’ से निर्माता निर्देशक बने और एक सफल फिल्मकार के रूप में स्थापित हो गये। उन्होंने ‘द गॉडफादर’ पर आधारित पहली हिंदी फिल्म ‘धर्मात्मा’ (1975) बनायी जो ज़बरदस्त हिट रही। इसके बाद ‘कुर्बानी’ (1980) व ‘जांबाज़’ (1986) को भी बॉक्स ऑफिस सफलता मिली। लेकिन ‘यलगार’ (1992) का निर्देशन करने के बाद उन्होंने फिल्मों से 11 वर्षों तक दूरी बनाये रखी। 2003 में ‘जांनशीन’ से उन्होंने बड़े पर्दे पर वापसी की। ‘वेलकम’ (2007) उनकी आखिरी फिल्म थी। 27 अप्रैल 2009 को लंग कैंसर के कारण उनका निधन हो गया। उन्हें बेंगलोर में उनकी मां की कब्र के पास दफनाया गया।
फिरोज खान जितने पर्दे पर रंगीन दिखायी देते थे, उतने ही असल ज़िंदगी में भी थे। शर्मीला टैगोर से लेकर मुमताज़ तक उन्हें हिंदी सिनेमा का सबसे हैंडसम हीरो मानती थीं। फिरोज खान ने 1965 में एक सिन्धी लड़की सुंदरी से विवाह किया, जिनसे उनके दो बच्चे हैं लैला (जन्म 1970) व फरदीन खान (जन्म 1974)। दिलचस्प यह है कि फिरोज खान मुमताज़ से शादी करना चाहते थे। मुमताज़ ने इंकार कर दिया। 
मुमताज़ का कहना है कि फिरोज खान से शादी करना झील में कूदने जैसा होता। फिरोज खान व मुमताज़ की तो शादी न हो सकी, लेकिन दोनों आपस में संबंधी अवश्य बन गये। मुमताज़ की बेटी नताशा की शादी फिरोज खान के बेटे फरदीन खान से हुई है। लैला ने व्यापारी फरहान फर्नीचरवाला से शादी की है, जो पूजा बेदी के पूर्व पति हैं। फिरोज खान का 1085 में सुंदरी से तलाक हो गया था। 
फिरोज खान को घोड़ों का शौक था। वह घोड़े पाला भी करते थे और हॉर्स रेसिंग में भी हिस्सा लिया करते थे। वह स्नूकर भी खेलते थे और इस खेल की प्रतियोगिताएं भी आयोजित कराया करते थे। अपने अंतिम दिनों में वह दर्शन की पुस्तकें पढ़ते और शायरी किया करते थे। निर्देशक के तौर पर फिरोज खान की एक खूबी यह थी कि अपनी फिल्मों में वह हीरोइनों को उनके सबसे सुंदर रूप में पेश करते थे। हेमा मालनी जितनी सुंदर ‘धर्मात्मा’ में लगी हैं, उतनी किसी अन्य फिल्म में नहीं लगीं। फिरोज खान बहुत स्वाभिमानी व्यक्ति थे। मुमताज़ के अनुसार वह कभी किसी से कुछ शेयर नहीं करते थे। उन्हें एक एंग्लो-इंडियन लड़की से प्यार हो गया था। वह भी उनसे प्रेम करती थी। लेकिन दोनों का ब्रेकअप क्यों हुआ यह मुमताज़ को भी नहीं मालूम। हां, उससे ब्रेकअप के बाद मुमताज़ ने फिरोज खान को रोते हुए अवश्य देखा था। मुमताज़ व फिरोज़खान की दोस्ती हमेशा कायम रही। मुमताज़ का कहना है कि अगर वह फिरोज़ खान से रिलेशनशिप में आ जाती तो न सिर्फ उनका दिल टूटता बल्कि उनमें दोस्ती भी न रहती। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

#भारतीय सिनेमा के देसी जेम्स बांड फिरोज़ खान