रक्षा तकनीक में भारत से बहुत पीछे है पाकिस्तान

सिंदूर अभियान और उसके बाद अब तक की सारी सफलता उत्कृष्ट रक्षा तकनीक और उसके इस्तेमाल के कौशल का कमाल है। इस अभियान के तहत सेना ने सीमा पार के आतंकी ठिकानों को बिना सीमा पार किए नेस्तनाबूद किया और बौखलाए पाकिस्तान ने जब हमारे सैन्य ठिकानों, सीमा और दीगर इलाकों पर ड्रोन, मिसाइलों, बम वगैरह से हमले किए तो वे हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सके। देश ने अपनी तकनीकी क्षमता, दक्षता से हमलों को नाकाम कर दिया। बेशक सिंदूर अभियान की सबसे अहम बात थी इसका टेक्नोलॉजी-ड्रिवन एक्जीक्यूशन-भारतीय सेना ने पहली बार किसी रक्षा अभियान में इतने बड़े पैमाने पर तकनीक संचालित हथियारों, अति उन्नत तकनीक वाली रक्षा प्रणाली का इस्तेमाल किया। सीमा के भीतर से सीमा के पार वार करने के लिये ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम से लक्ष्य की निशानदेही हुई, इसरो के उपग्रह कार्टोसेट ने रीयल टाइम इमेज दी, डीआरडीओ के यूएवी रुस्तम और नेत्रा ने ज़मीनी हरकतों, हलचलों को दर्ज किया तो  स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफार्म ने बढ़िया प्रदर्शन किया। खुफिया जानकारी जुटाई, आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस ने सटीक, निष्कंटक रास्ता बताया। सिगनिट के जरिये संचार सेवा आबाध रही तो मूवमेंट का पता दुश्मन को लगने पाये इसके लिये स्पेक्ट्रा जैमिंग प्रणाली से उनके रडार जाम किए गए, स्पूफिंग के जरिये नकली संकेत भेजकर उन्हें भ्रमित किया गया। इस दौरान दुश्मन की सुरक्षा को चकमा देने के लिये लाइटरिंग म्यूनेशन, कामकाजी ड्रोन तथा प्रकाशीय गोले डिकाय फ्लेयर्स ने शानदार कारगुजारी दिखाई, इन्होंने पाकिस्तानी वायु सुरक्षा को इस बाबत असमंजस में रखा कि हमला कहां हो रहा है या होने को है। 
अत्याधुनिक तकनीक से युक्त मल्टीरोल वाले मिराज़ 2000, राफेल जैसे कई विमान उड़े और अपनी सीमा के भीतर से ही रॉफेल मेटियॉर, स्केल्प मिसाइल, क्रिस्टल मैज़ मिसाइल, गाइडेड हैमर बम, स्पाइस 2000 बम, इज़रायल निर्मित पेववे-2 सुदर्शन लेजर बम जो इलेक्ट्रो ऑप्टिकल गाइडेड बम हैं और लक्ष्य तक जाने के लिए इंफ्रारेड या प्रकाश सेंसर का इस्तेमाल करते हैं, वगैरह से स्टैंड ऑफ  अटैक किया।
नौ आतंकी ठिकानों पर एक साथ हुए इस हमले और उनके तबाह हो जाने से झुंझलाए पाकिस्तान ने सीमा जितने भी ड्रोन भेजे, सेना ने एल-70 गन, ज़ैड यू-23 एमएम, शिल्का सिस्टम और दूसरे एंटी ड्रोन तकनीकी से उन्हें नष्ट कर दिया। भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम सुदर्शन चक्र यानी एस-400 ने न सिर्फ  पाकिस्तान के जेएफ-17 जेट विमान मार गिराये, बल्कि लाहौर में  उनकी चीन निर्मित वायु रक्षा प्रणाली एचक्यू-9 भी ध्वस्त कर दी। उधर अरब सागर में तैनात युद्धपोत विक्रांत ने अपनी अत्याधुनिक मिसाइल प्रक्षेपण तकनीक का प्रदर्शन करते हुए कराची में भीषण धमाका किया तो इज़रालयल के बने बेहद सक्षम और मारक आत्मघाती ड्रोन हारोप ने भी इस संघर्ष में गज़ब का कौशल दिखाया। इसके अलावा भी तमाम तकनीकी प्रविधि, भारतीय सेना ने इस अभियान में इस्तेमाल किया। पाकिस्तान के विरुद्ध भारत द्वारा अब तक चलाए गए सैन्य अभियानों में इतनी तकनीकी सघनता कभी नहीं देखी गई।
चीन और तुर्की आदि देशों से दोस्ती के चलते पाकिस्तान ने भी सैन्य तकनीक में प्रगति की है, अत: दोनों देशों के बीच पारंपरिक दुश्मनी अब तकनीकी जंग का रूप ले चुकी है। लेकिन सच तो यह है कि पाकिस्तान किसी भी स्थिति में सैन्य व रक्षा तकनीक में भारतीय क्षमता का मुकाबला नहीं कर सकता। हमारे पास ज्यादा तकनीकी संसाधन, बहुत बड़ी आर्थिक क्षमता और तकनीक और विज्ञान संबंधी वैश्विक स्तर की सैन्य तथा रक्षा साझेदारियां हैं। डीआरडीओ के अलावा दर्जनभर संगठन, संस्थाएं, कंपनियां, आधुनिकतम आयुध तथा रक्षा प्रणाली के विकास में रत हैं। इसके अलावा देश में डिफेंस स्टार्टअप और घरेलू निर्माण भी तेज़ी पर है। भारत सैन्य बल, हथियारों और रक्षा तकनीक पर खर्च के मामले में दुनिया सबसे बड़े पांच सैन्य शक्तियों में से एक है। पाकिस्तान का इस सूची में नंबर बहुत नीचे है। पाकिस्तान मात्र नाभिकीय हथियारों की संख्या में ही भारत की बराबरी कर सकता है, सैनिकों की संख्या, सैन्य संसाधन, विमान, पोत, हथियार और हथियार प्रणालियों के बारे में वह मीलों पीछे है। ऑपरेशन सिंदूर’ में उच्च परिशुद्धता वाले हथियारों का जिस तरह प्रयोग किया गया और सरकार जिस पैमाने पर सेना के सभी अंगों के लिए हरबे, हथियारों की खरीद-फरोख्त पर ध्यान और ज़ोर दे रही है। अगले एक दशक के भीतर भारत और विपन्न पाकिस्तान की सैन्य क्षमता के बीच इतना फासला होगा कि वह चीन, तुर्की की खुली मदद लेकर भी ऐसे पाट पाना तो दूर चौथाई तक भी नहीं पहुंचेगा।  
एडवांस अंडरवॉटर नेवल माइन सिस्टम : डीआरडीओ और भारतीय नौसेना ने मिलकर इसे विशाखापत्तनम स्थित नेवल साइंस एंड टेक्नोलॉजी लैब में विकसित इस समुद्री बारूदी सुरंग से दुश्मन का स्टील्थ शिप हो या पनडुब्बी, कोई नहीं बचेगा। इसमें अलग-अलग तीन तरह की माइन की खूबियां एक साथ हैं; क्योंकि यह मैग्नेटिक, अकॉस्टिक और प्रेशर सेंसर तीन तरह के इनपुट का इस्तेमाल करती है। इसमें लो सिग्नेचर डिटेक्शन तकनीक जिससे माइन को दुश्मन के रडार या सोनार की नज़र से बचाया जा सकता है। पानी में एक सामान्य दबाव के तहत तैरती माइन के करीब से कोई जहाज अथवा सबमरीन गुजरती है, तो सेंसर पानी का बदले दबाव भांपता है और फिर माइन में विस्फोट हो जाता है। मैग्नेटिक इंफ्लुएंस तकनीक पानी के अंदर धात्विक गतिविधियों को पहचानकर धमाका करता है। यह जल्द ही नौसेना को मिलेगी। इसके अलावा उसे ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल भी मिलेगा जिसे डीआरडीओ ने विकसित किया है। इसका सोनार और संचार प्रणाली लाजवाब है। यह तकनीक भारतीय नौसेना को समुद्री सीमाओं निगरानी तथा आसन्न खतरों का पता लगाने में सहायक होगी।    
लेज़र वेपन सूर्या : रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने ‘मेक इन इंडिया’ तहत सूर्या नामक लेज़र हथियार विकसित किया है जो लेज़र वेपन्स की दुनिया में भारत का नाम रोशन करेगा। हथियार पर काम शुरू है, 2027 के बाद यह सेना को मिलेगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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