आप्रेशन सिंदूर भारत की नई युद्ध नीति का शंखनाद

भारत के धैर्य की बार-बार परीक्षा ली जाती रही है परंतु जब धैर्य टूटता है तो उसका परिणाम इतिहास में निर्णायक हो जाता है। 22 अप्रैल को जब जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में भारतीय पर्यटकों पर कायरतापूर्ण आतंकी हमला हुआ, जिसमें कई निर्दोषों की जान गई, तभी भारत ने स्पष्ट संकेत दे दिया था कि अब केवल शोक नहीं मनेगा, उत्तर भी दिया जाएगा और वो भी दृढ़, सटीक और निर्णायक। इसी उत्तर का नाम था 7 मई की सुबह एक से डेढ़ बजे के बीच किया गया ‘ऑपरेशन सिंदूर’। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी, यह एक रणनीतिक संदेश भी था, जो न केवल आतंकवाद को पनाह देने वालों को दिया गया बल्कि उन वैश्विक शक्तियों को भी चेताया गया, जो आतंक को कूटनीतिक संरक्षण देते हैं। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत की रणनीतिक दृढ़ता, सैन्य क्षमता, राजनीतिक इच्छाशक्ति, सामरिक बुद्धिमत्ता, सुरक्षा संकल्प और प्रतिशोध की संस्कृति में हुए ऐतिहासिक बदलाव का प्रतीक बन गया। यह केवल एक जवाबी हमला नहीं था, यह भारत की ओर से स्पष्ट संकेत था कि अब सीमा पार भी आतंकवाद के स्रोत पर असहनीय चोट की जाएगी। यह कार्रवाई केवल गोलियों और मिसाइलों की नहीं थी, यह भारत के आक्रोश, संकल्प और आत्मरक्षा के अधिकार की आवाज थी, जिसने वैश्विक राजनीति को झकझोर कर रख दिया।
पहलगाम जो अमरनाथ यात्रा का प्रमुख पड़ाव है, वहां की बैसरन घाटी में अपने परिजनों के साथ खुशियां मना रहे पर्यटकों पर हथियारबंद आतंकियों द्वारा गोलियों की बौछार की गई। आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की मौत हुई थी और दर्जनों घायल हुए थे। पहलगाम आतंकी हमला भारत के लिए एक ऐसे घाव के समान था, जिसे अब सहन नहीं किया जा सकता था। निर्दोष पर्यटकों पर यह कायरतापूर्ण हमला न केवल मानवता के विरुद्ध अपराध था बल्कि भारत की आंतरिक सुरक्षा और सामरिक संप्रभुता पर भी सीधा आघात था। इस बर्बर कृत्य की जिम्मेदारी उस नवगठित आतंकी संगठन ने ली थी, जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में पनप रहा था। भारतीय खुफिया एजेंसियों द्वारा जांच के बाद इसकी पुष्टि की गई कि हमले के पीछे लश्कर-ए-तैयबा और आईएसआई की रणनीतिक मिलीभगत थी। हमले के 24 घंटों के भीतर ही हुई आपात बैठक में रॉ, आईबी, सेना, वायुसेना, नौसेना और बीएसएफ के उच्चाधिकारियों को एकजुट कर रणनीति तैयार की गई और निर्णय लिया गया कि यह हमला केवल निंदा का नहीं, निर्णायक प्रतिशोध का विषय बनेगा, जिसके बाद ही भारतीय सेना को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के लिए हरित संकेत मिल गया था। 
बीते वर्षों में भारत ने अनेक बार अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की ओर ध्यान दिलाया किन्तु कूटनीतिक कोशिशें और वैश्विक निंदा बेअसर होती दिख रही थी। ऐसे में भारत के लिए दो ही विकल्प शेष बचे थे, या तो शांति के नाम पर चुप रहना या फिर निर्णायक प्रतिकार करना। भारत ने दूसरा विकल्प चुना और आखिरकार ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू हुआ। यह महज एक सीमित सर्जिकल स्ट्राइक नहीं थी बल्कि एक बहु-आयामी सैन्य प्रतिशोध था, जिसमें दुश्मन के आतंकी शिविरों को निशाना बनाया गया। ऑपरेशन का नाम ‘सिंदूर’ देना भी अत्यंत प्रतीकात्मक था, यह उस रक्त के स्मरण का संकेत था, जो आतंकवादियों द्वारा भारतीय नागरिकों का बहाया गया था, साथ ही यह उस शक्ति और अग्निशक्ति का नाम था, जो भारत माता के ललाट पर विजय के रूप में चढ़ाया गया।
भारत ने इस ऑपरेशन में अपनी वायुशक्ति का ऐसा प्रदर्शन किया, जिसने बालाकोट एयर स्ट्राइक की यादें ताजा कर दी किन्तु उससे कहीं अधिक गहराई और रणनीतिक विस्तार के साथ। वायुसेना ने अत्याधुनिक राफेल, सुखोई, मिराज और जगुआर विमानों का प्रयोग कर सीमापार स्थित आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त किया। खास बात यह रही कि यह हमला केवल नियंत्रण रेखा तक सीमित नहीं था बल्कि इसके निशाने में आतंकियों के वे गुप्त ठिकाने भी शामिल थे, जो अब तक पाकिस्तानी सैन्य संरक्षण में सुरक्षित माने जाते थे। भारत ने पहली बार यह स्पष्ट किया कि अब ‘डिनायल पॉलिसी’ या ‘स्ट्रेटेजिक रेस्ट्रेंट’ के युग की समाप्ति हो चुकी है। यह एक ऐसा साहसिक कदम था, जिसमें रणनीतिक जोखिम भी थे किन्तु भारत ने वैश्विक जनमत और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों को संतुलित करते हुए यह सुनिश्चित किया कि यह ऑपरेशन केवल आतंकवाद के खिलाफ है, न कि किसी देश की जनता के खिलाफ।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता ने न केवल पाकिस्तान को भीतर से हिला दिया बल्कि उसकी सेना की कथित ‘रक्षात्मक क्षमता’ की पोल भी खोल दी। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जब भारत ने ऑपरेशन के बाद के उपग्रह चित्र, इंटरसेप्टेड कम्युनिकेशन और जमीनी खुफिया रिपोर्ट साझा की तो कई देशों को पहली बार यह समझ में आया कि भारत किस हद तक संयम बरतता रहा है। अमरीका, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार को उचित ठहराया और आतंक के विरुद्ध इस निर्णायक रुख की सराहना की। संयुक्त राष्ट्र ने भले ही परंपरागत भाषा में ‘दोनों पक्षों से संयम’ की बात दोहराई किंतु उसके भीतर भी भारत की सैन्य क्षमता और सामरिक धैर्य के प्रति एक नया सम्मान देखने को मिला।
ऑपरेशन सिंदूर का रणनीतिक संदेश यही है कि अब भारत बदल चुका है, जो अब अपने राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रश्न पर किसी वैश्विक अनुमति या सहमति का मोहताज नहीं है। अब नीति स्पष्ट है, यदि आतंकी हमला होगा तो उसका जवाब शून्य-धैर्य और शत-प्रतिशत विनाश से दिया जाएगा। ऑपरेशन सिंदूर में एक बात विशेष रूप से सामने आई कि भारतीय सेना अब केवल पारंपरिक युद्ध के लिए ही तैयार नहीं है बल्कि हाइब्रिड वॉरफेयर, साइबर रणनीति और इनफॉर्मेशन डोमिनेशन के लिए भी पूरी तरह सक्षम है। यह ऑपरेशन भारतीय राजनीति और सेना के बीच बढ़ते तालमेल की भी मिसाल बन गया है। प्रधानमंत्री, एनएसए, सीडीएस, वायुसेना प्रमुख और थलसेना प्रमुख के बीच लगातार समन्वय ने सुनिश्चित किया कि ऑपरेशन न केवल सफल हो बल्कि पूर्ण रूप से गुप्त भी रहे। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि भारत अब सैन्य और कूटनीतिक क्षेत्र में परिपक्वता की नई ऊंचाईयों पर पहुंच चुका है। इस ऑपरेशन के माध्यम से भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह शांति का पक्षधर देश है परंतु शांति को यदि खून में रंगने की कोशिश की जाएगी तो भारत युद्ध से पीछे नहीं हटेगा।
आश्चर्यजनक रूप से, इस ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान के भीतर असंतोष की लहर फैल गई। वहां की आम जनता, जो आर्थिक बदहाली, महंगाई और राजनीतिक अस्थिरता से त्रस्त है, अब सेना की नीतियों और आतंकियों के संरक्षण को लेकर सवाल उठा रही है। यह बदलती हुई मानसिकता इस बात का संकेत है कि आतंक के संरक्षकों की जमीन अब खुद उनके देश में ही खिसकने लगी है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नि:संदेह भारतीय सैन्य इतिहास में एक स्वर्णाक्षरी अध्याय के रूप में दर्ज किया जाएगा।
 यह केवल एक अभियान नहीं था, यह एक उद्धोषणा थी कि आतंक के हर स्रोत पर प्रहार होगा, हर सहायक पर वार होगा और हर दुश्मन को अब केवल चेतावनी नहीं, प्रतिशोध मिलेगा। यह उस भारत की पहचान है, जो अब चुप नहीं बैठेगा, जो अब युद्ध से नहीं डरता बल्कि आवश्यकता पड़ने पर युद्ध को न्योता भी दे सकता है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत के बदलते रणनीतिक युग की शुरुआत है, जिसमें अब शांति की रक्षा केवल बातों से नहीं बल्कि कार्रवाई से की जाएगी। यह उन सबके लिए संदेश है, जो अब भी भारत की सहनशीलता को कमजोरी समझते हैं। भारत अब शांत रहेगा लेकिन यदि कोई शांति भंग करेगा तो उस पर भारत का ‘अग्निपात’ निश्चित है।

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