उत्पादन के साथ पानी बचाने को भी प्राथमिकता दें किसान

धान खरीफ की मुख्य फसल है। इसकी काश्त लगभग 31 लाख हैक्टेयर रकबे पर की जाती है। वर्ष 2020-21 तथा 2021-2022 के दौरान रकबा बढ़ कर क्रमश: 31.49 तथा 31.46 पर पहुंच गया था। उत्पादन 210 लाख टन के लगभग हुआ और प्रति एकड़ उत्पादन 26-27 क्ंिवटल को छू गया। आजकल धान की पौध लग रही है। पंजाब प्रिज़रवेशन आफ सब-सॉइल वाटर एक्ट, 2009 के तहत पंजाब सरकार ने धान लगाने की तिथि 10 जून से 21 जून निर्धारित की है। पहले चरण में अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर कंटीली तार के उस पार क्षेत्रों में धान की रोपाई का कार्य 10 जून से शुरू हो जाएगा, दूसरे चरण में सात ज़िलों जिनमें फिरोज़पुर, फरीदकोट, पठानकोट, फतेहगढ़ साहिब, गुरदासपुर, एस.बी.एस. नगर तथा तरनतारन शामिल हैं, में 16 जून से धान लग सकेगा। फिर रूपनगर, एस.ए.एस. नगर, कपूरथला, लुधियाना, फाज़िल्का, बठिंडा तथा अमृतसर ज़िलों में 19 जून से तथा शेष ज़िलों में 21 जून से धान की रोपाई शुरू होगी। धान लगाते समय पौध की आयु भिन्न-भिन्न किस्मों पर आधारित 25 से 30 दिन की होनी चाहिए। पी.ए.यू.  द्वारा भी बढ़िया गुणवत्ता की फसल लेने तथा पानी की बचत करने के लिए पौध की बिजाई 20 मई से शुरू कर देने की सिफारिश की गई है। समय पर लगाई गई पौध तथा फसल पर कई प्रकार की बीमारियों का हमला भी कम होता है। बासमती किस्मों की पौध जून में लगाई जाएगी। पूसा-1401 तथा पूसा बासमती-1886 की पौध मई के अंत में या जून के शुरू में लगाई जा सकती है। 
धान की आम रोपाई खेत मज़दूरों के द्वारा हाथ से की जाएगी। अधिकतर किसानों ने तो खेत मज़दूर अभी से बुक करने शुरू कर दिये हैं और प्रवासी खेत मज़दूरों के साथ ठेका भी तय कर लिया है। धान की फसल में अधिक समस्या पानी की आती है। पंजाब राज्य पावर कार्पोरेशन लिम. के चेयरमैन बलदेव सिंह सरां ने धान की रोपाई के सीज़न में 8 घंटे प्रतिदिन ट्यूबवैलों को बिजली उपलब्ध करने का भरोसा दिया है। राज्य भर में ट्यूबवैलों की संख्या 15.30 लाख के करीब हो गई है। राज्य के कुल 150 ब्लाकों में से 117 सीमा से अधिक शोषित हैं, 6 ब्लाक नाज़ुक, 10 अर्ध-नाज़ुक तथा सिर्फ 17 ब्लाक सुरक्षित श्रेणी में हैं। सुरक्षित श्रेणी में जो ब्लाक हैं, उनमें से अधिकतर में भू-जल की गुणवत्ता अच्छी नहीं और पानी सिंचाई के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। कुछ ब्लाक तो सेम वाली स्थिति में हैं। कृषि क्षेत्र राज्य के जल स्रोतों का सबसे बड़ा खपतकार है और कुल पानी की मांग का 94-95 प्रतिशत भाग इसकी सिंचाई के लिए ही इस्तेमाल किया जाता है। 
धान लगाने में मुख्य समस्याएं खेत मज़दूरों की कमी, भू-जल के स्तर में गिरावट तथा ट्यूबवैल के लिए बिजली संबंधी है।  पानी की बचत के लिए धान की कम समय में पकने वाली पी.आर.-126 जैसी किस्में तथा बासमती लगाने की पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश की गई है। बासमती की किस्मों में भी आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के डायरैक्टर तथा उप-कुलपति डा. अशोक कुमार सिंह ने कम समय (120 दिन) में पकने वाली तथा अधिक उत्पादन देने वाली पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-1692 तथा पूसा बासमती-1847 जैसी किस्में किसानों को उपलब्ध की हैं। जिनकी पानी की आवश्यकता बहुत कम है और मध्य-जुलाई के दौरान लगाने पर ये किस्में मानसून शुरू होने के कारण बारिश के पानी से ही पक जाती हैं। 
पी.ए.यू. के अनुसार धान की फसल या पौध अगेती नहीं लगानी चाहिए क्योंकि इससे भू-जल की ज़्यादा निकासी होती है। अगेती लगी फसल का शुरुआत में वाष्पीकरण बहुत ज़्यादा होता है, जिस कारण फसल को बार-बार पानी लगाना पड़ता है। इसलिए धान तथा बासमती की रोपाई सिफारिश किये समय में ही की जानी चाहिए। धान की फसल के शुरू में सिर्फ पहले 15 दिन ही पानी खड़ा करने का आवश्यकता है। खेत में पानी 10 सैंटीमीटर से अधिक खड़ा करने की आवश्यकता नहीं। दो सप्ताह के बाद पानी सूख जाने के उपरांत ही सिंचाई करनी चाहिए, परन्तु खेत में दरारें नहीं पड़ने देनी चाहिएं। ऐसा करने से लगभग 15 से 20 प्रतिशत पानी की बचत हो सकती है। इससे धान के उत्पादन पर भी कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा। पानी की बचत के लिए लेज़र लैंड लैवलिंग (लेज़र कराहे से भूमि समतल करवाना) की सिफारिश की गई है। इससे सिंचाई वाले पानी की काफी बचत हो जाती है।