बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुई धान की फसल

सरकारी सूत्रों के अनुसार पंजाब में 9-10 जुलाई के बाद आई बाढ़ से 23 में से 19 ज़िलों के 1441 गांव प्रभावित हुए हैं। बाढ़ से प्रभावित ज़िलों में पटियाला, लुधियाना, मोगा, जालन्धर, संगरूर, मोहाली, नवांशहर, मानसा, बठिंडा, गुरदासपुर, कपूरथला, फाज़िल्का, पठानकोट, रूपनगर, होशियारपुर, फरीदकोट, तरनतारन, फिरोज़पुर तथा फतेहगढ़ साहिब ज़िले शामिल हैं। 
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के डायरैक्टर डा. गुरविन्दर सिंह के अनुसार लगभग 6.25 लाख एकड़ रकबे पर बाढ़ के पानी से धान की फसल प्रभावित हो गई है। लगभग 2 लाख एकड़ से अधिक रकबे पर धान और बासमती की फसल बिल्कुल बर्बाद हो गई। बाढ़ आने तक 27.5 लाख हैक्टेयर रकबे पर धान की काश्त हो चुकी थी, जिसमें से अधिक रकबे का उत्पादन बाढ़ के कारण प्रभावित होने की सम्भावना है। अधिक रकबे पर फसल का कुछ हिस्सा बर्बाद हुआ है, परन्तु खेतों में कुछ हिस्से पर जो शेष फसल खड़ी रह गई और वह पानी में अधिक डूबी रही, किसान उसे उखाड़ कर या तो पुन: फसल लगा रहे हैं या फिर उसी किस्म की पौध का प्रबंध करके उसकी भरपाई कर रहे हैं। जिन किसानों की धान या बासमती की फसल बर्बाद या खराब हो गई, वे कहते हैं कि अब लगाने के लिए उनके पास धान-बासमती की फसल के अतिरिक्त अन्य कोई उचित विकल्प नहीं है। वह धान या बासमती ही दोबारा लगाएंगे, जिसके लिए कुछ किसान तो कम समय में पकने वाली पी.आर.-126 किस्म की पौध लगा रहे हैं और कुछ किसान बासमती किस्मों की पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-1692 तथा पूसा बासमती-1847 किस्मों की पौध लगा रहे हैं। पूसा बासमती-1847 जो नई विकसित किस्म है और भुरड़ एवं झुलस रोग से मुक्त है, का बीज किसानों को उपलब्ध नहीं। पूसा बासमती-1509 तथा पूसा बासमती-1692 कम समय में पकने वाली बासमती की किस्में हैं। यदि अच्छी तरह पौध का पालन-पोषण किया जाए तो इन किस्मों की 20-22 दिन की पौध भी लगाई जा सकती है और 7-8 अगस्त तक ट्रांसप्लांट की जा सकती है, जो ज़्यादा पिछेती नहीं होगी। बासमती के प्रसिद्ध ब्रीडर तथा आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के डायरैक्टर एवं उप-कुलपति डा. अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि किसानों को बासमती किस्मों का बीज लगाने से पहले बीज को ट्राइकोडर्मा हर्जिएनम या बाविस्टन से संशोधित कर लेना चाहिए। पौध की जड़ों को कम से कम 6 घंटे इस दवाई के घोल में रखने के बाद लगाना चाहिए। डा. अशोक कुमार सिंह यह सलाह भी देते हैं कि पौध पर भूरे टिड्डे की रोकथाम के लिए चैस या ओशीन जैसी कोई दवाई का स्प्रे कर देना चाहिए ताकि धान की फसल छोटेपन के रोग से सुरक्षित रहे। 
धान की पी.आर.-126 किस्म से कुछ किसान डरे हुए हैं क्योंकि इस फसल के पौधे कई स्थानों पर छोटेपन (स्टर्न राइस ब्लैक सेटराइड डवार्फिंग वायरस) की बीमारी से ग्रस्त हुए पाए गए थे। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग भी धान व बासमती की पौध जिन किसानों के पास उपलब्ध है, उन किसानों जिनकी फसल प्रभावित हो गई, को अपने फील्ड स्टाफ के माध्यम से सम्पर्क करके दिला रहा है। डायरैक्टर कृषि कहते हैं कि विभाग द्वारा भी कुछ किसानों को बीज उपलब्ध किया जा रहा है और विभाग द्वारा कंट्रोल रूम स्थापित कर दिया गया है, जिसमें कृषि विशेषज्ञ किसानों की फोन कॉल्स का जवाब भी देते हैं और उनकी समस्या का हल करने का प्रयास भी करते हैं। इसके अतिरिक्त किसानों को एक-दूसरे से जोड़ कर पौध उपलब्ध करवाने की कोशिश करते हैं। कुछ किसान अपनी पौध बाढ़ प्रभावित किसानों को देकर उनकी मदद कर रहे हैं। कुछ किसान हरियाणा जाकर भी बासमती की पौध ला रहे हैं, खरीद कर या उन किसानों से जो प्रभावित किसानों की मदद के तौर पर अपने पास से अतिरिक्त पौध दे रहे हैं। जो किसान पौध खरीद कर लगा रहे हैं, वे बासमती-धान की एकड़ की पौध का लगभग 3000 रुपये तक दे रहे हैं। लिफ्ंिटग का खर्च इसके अतिरिक्त है। इस वर्ष बहुत-से डीलरों तथा बीज विक्रेताओं के पास धान पी.आर.-126 किस्म का बीज बिना बिक्री के रह गया था, उसका बीज अब काफी हद तक बाढ़ से प्रभावित किसानों ने खरीद लिया और वह नुकसान उठाने से बच गए। लगभग 31.66 लाख हैक्टेयर रकबे पर बाढ़ से पहले चावल की काश्त किए जाने का अनुमान लगाया गया था, जिस रकबे के अब पूरा होने की सम्भावना नहीं लगती।