मानसून, मेंढक और नेताजी


हमारे देश में मानसून मेंढक और नेता तीनों का आपस में बहुत ही जबरदस्त गठबंधन है। नेता और मेंढक दोनों ही मानसून में ही राहत महसूस करते हैं। दोनों की पूछ, आदर, सम्मान, विकास मानसून में ही बढ़ता है ना यह मानसून के बिना कुछ है ना मानसून इनके बिना कुछ है। अगर मानसून न रहे तो दोनों जहां के तहां पड़े रह जाएंगे। लेकिन मानसून आकर इनकी समस्याओं को समाप्त कर जाता है। नेता और मेंढक दोनों के लिए विस्तार और विकास का यह सुखद काल होता है। जहां वह अपना विकास करते हैं। मानसून के रथ पर सवार होकर विकास नेताओं के पास आता है और जनता के पास से वापस जाता है।
हमारे शहर के नेताजी बड़े खुश तबीयत से बाग बाग और व्यस्त मूड में थे... हो भी क्यों नहीं परसों ही तो उनकी एक महत्वकांक्षी सड़क परियोजना का उद्घाटन समारोह किए... इसी सड़क के नाम पर तो पूरे चुनाव में अपने दोनों हाथों को जोड़-जोड़ कर जनता से वोट मांगे थे और उसी आशा में लोगों ने इनको चुनाव जीतवा दिया था... नेता जी को दो तरफा फायदा हुआ था... एक तो चुनाव जीत गए, दूसरा सड़क बनाने में उन्होंने अपने मनपसंद ठेकेदार को ठेका देकर भारी-भरकम लक्ष्मी आगमन का सुख मिला था। आम के आम गुठलियों के दाम और वह नेता ही क्या जो आम और आम जनता को नहीं निचोड़ना जानता हो।
और अब उसके उद्घाटन समारोह का जनता के सामने शेखी बघारना बाकी रह गया था। वह इच्छा भी अब पूरी वह होने वाली थी... सोने पर सुहागा जैसा अवसर उनके दोनों हाथों में लग गया था। तभी उस रात जनता के दुर्भाग्य से मूसलाधार बारिश हुई... सुबह-सुबह उनका पीए दौड़ा-दौड़ा हांफता कांपता आया और बोला-साहब वह फोरलेन वाली सड़क जिसका उद्घाटन हुआ था जगह-जगह से धंस गई है।
अब इसमें नेताजी का भला क्या दोष है मानसून को भी भला कहीं इतना जोर से बरसना चाहिए की सड़क को ही बहा ले जाए। सारा दोष इस मूसलाधार बारिश का है। जिसने नेताजी के सपनों पर पानी फेर दिया। नेताजी तो मानसून से मेंढक के भाग्य जैसी अपेक्षा रखे हुए थे। अपने विकास की अपेक्षा रखे हुए थे। उनके विकास पर पानी फेर दिया। मेंढक के परिवार का विकास और विस्तार मानसून में ही होता है और नेताजी के आकार का और पद का विकास भी मानसून में होता है। यह तीनों अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
देखिए ....मानसून में पानी बरसता है पानी से नदियां उफन जाती हैं नदियां उफनने से सड़क और खेत सारे जल थल हो जाते हैं नदियों में बाढ़ आने से सड़क बाढ़ में बह जाती हैं। सड़क बनाने के लिए नेताजी की ज़रूरत पड़ती है और नेताजी को विकास के लिए सड़क  की ज़रूरत पड़ती है। नेताजी तो एक ही सड़क से कई बार अपना विकास कर लेते हैं। और अपने देश में तो न जाने कितनी सड़कें है जो अपने देश के नेताओं को विकास रुपी मोक्ष प्रदान करने के लिए ही उनका जन्म हुआ हैं उन सभी सड़क के सम्मान में नेता जी को दंडवत प्रणाम करना चाहिए। वह तो पहले के जमाने में अंग्रेज बेवकूफ थे जिन्होंने मज़बूत सड़क एवं पुलों का निर्माण करवाया वह बरसों बरस चलती रही आम जनता उस पर चल चल कर बोर हो रही थी। आजकल के नेता होशियार है समझदार है जनता का मन समझते हैं इसीलिए नित एक ही सड़क को कई बार बनवा-बनवा कर जनता को नई सड़कों पर चरण धरने का अवसर देते हैं।