विशेष सत्र का एजेंडा आ ही गया सामने

18 सितबर से संसद का विशेष सत्र आरंभ हो रहा है। हालांकि यह संयुक्त अधिवेशन के बजाय ‘संयुक्त आयोजन’ के रूप में आहूत किया जाएगा। उस दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी उपस्थित रह सकती हैं। इसे राष्ट्रपति की ‘गरिमामय मौजूदगी’ कहा गया है। गणेश चतुर्थी पर यानि 19 सितम्बर को नए संसद भवन में कामकाज आरंभ किया जाएगा। जिस वक्त सरकार ने विशेष सत्र को आहूत करने का ऐलान किया था, उसी समय से विपक्ष यह कह कर सरकार की आलोचना कर रहा था कि सरकार ने विशेष सत्र का एजेंडा नहीं बताया। नतीजतन पूरे देश में इस बात की चर्चा शुरू हो गई थी कि संसद के विशेष सत्र में क्या खास होने वाला है। 
इन तमाम चर्चाओं और विपक्ष के हमलों के बीच बीते दिनों संसद सत्र की अस्थायी कार्य सूची जारी कर दी गई। इस एजेंडे में संसद के 75 साल की यात्रा पर चर्चा के साथ-साथ चार बिल भी रखे गए हैं। हालांकि यह अस्थायी सूची है और इसमें कुछ और बिल भी जोड़े जा सकते हैं। भाजपा ने लोकसभा के सभी पार्टी सांसदों को 18 से लेकर 22 सितम्बर तक संसद में चर्चा के दौरान उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी किया है। 
कार्य सूची के अनुसार 17 सितम्बर को सर्वदलीय औपचारिक बैठक है। इसी दिन प्रधानमंत्री का जन्म दिन और ‘विश्वकर्मा जयंती’ है। प्रधानमंत्री नए संसद भवन पर राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ हराएंगे। ध्वजारोहण के बाद ही संसद में कामकाज शुरू होगा, क्योंकि देश के ‘फ्लैग कोड’ के मुताबिक, किसी भी सरकारी इमारत को राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद ही यह दर्जा मिल पाता है। बहरहाल सत्र में कुल चार बिल पारित किए जा सकते हैं। इनमें मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य दो आयुक्तों की नियुक्ति और सेवा-शर्तों वाला बिल है, जिसे मानसून सत्र में लोकसभा में पेश किया गया था। इस संदर्भ में देश के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और संवैधानिक पीठ का भारत सरकार पर दबाव था कि चुनाव आयुक्तों को चुनने की एक संवैधानिक प्रक्रिया होनी चाहिए। सरकार अपनी मज़र्ी से किसी को भी चुनाव आयुक्त नहीं बना सकती। सर्वोच्च अदालत का सुझाव था कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और प्रधान न्यायाधीश मिलकर चयन करें कि किसे चुनाव आयुक्त के पद पर नियुक्त किया जा सकता है। मोदी सरकार ने इस फार्मूले को खारिज कर अपना ही पैनल बनाया है, जिसमें प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्री और नेता प्रतिपक्ष होंगे। कोई भी कैबिनेट मंत्री प्रधानमंत्री की मानसिक पसंद और उनके फैसले के खिलाफ  जाने का दुस्साहस कैसे कर सकता है? 
लोकसभा में फिलहाल नेता प्रतिपक्ष नहीं है। अलबत्ता विपक्ष में कांग्रेस संसदीय दल सबसे बड़ा है, लिहाजा उसके नेता अधीर रंजन चौधरी को ऐसे पैनल में रखा जाता है। यह उन पर है कि वह शामिल होते हैं अथवा नहीं। संभावना है कि संसद में यह बिल पारित होने के बावजूद सर्वोच्च अदालत की न्यायिक पीठ संवैधानिक समीक्षा के नाम पर हस्तक्षेप कर सकती है।
बहरहाल इसके अलावा, अधिवक्ता संशोधन बिल और प्रेस एवं सावधि प्रकाशनों के पंजीकरण का संशोधन बिल मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा में पारित किए जा चुके हैं। डाकघर संशोधन बिल भी मानसून सत्र में राज्यसभा में पेश किया जा चुका है। हमारा मानना है कि ये बिल संसद के शीतकालीन सत्र में भी पारित किए जा सकते थे। इनकी न्यूनतम अवधि 6 माह है और अभी सरकार भी नहीं बदली है। लोकसभा और राज्यसभा के सदन यथावत निरन्तर हैं, लिहाजा इन बिलों के संदर्भ में ऐसी कोई तात्कालिक संवैधानिक अड़चन दिखाई नहीं देती कि संसद का विशेष सत्र बुलाना पड़ा। 
महिला आरक्षण बिल की बहुत चर्चा थी, क्योंकि संप्रग सरकार के दौरान वह बिल राज्यसभा में पारित किया गया था। उसके बाद लोकसभा भी दो बार संगठित की जा चुकी है और बिल को पारित किए करीब 15 साल गुजर चुके हैं। अब वह फैसला खारिज हो चुका है। राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति भी विभिन्न अवसरों पर कह चुके हैं कि सदनों और राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ना चाहिए। ऐसी सभी चर्चाओं को मोदी सरकार ने खारिज कर दिया। ‘एक देश, एक चुनाव’ पर तो फिलहाल समिति काम कर रही है। 
विशेष सत्र का एजेंडा सामने आने से ये साफ  हो गया है कि विपक्ष जो तरह-तरह के कयास और आशंकाएं जता रहा था, वे सब आधारहीन और तथ्यहीन थी। वास्तव में, विपक्ष को देश और देशवासियों के हित से कुछ ज्यादा लेना-देना नहीं है। उन्हें तो बस किसी न किसी बहाने सरकार की आलोचना करनी है और देश में भ्रम का वातावरण तैयार करना है। विपक्ष सरकार के प्रति नागरिकों के मन में अविश्वास का भाव पैदा करना चाहता है कि सरकार नियमों-कानूनों की धज्जियां उड़ाकर करके देश का संचालन कर रही है और सरकार की कार्यप्रणाली देश को गहरे गड्ढे में धकेल देगी। 
एजेंडा सामने आने के बाद विपक्ष खासकर कांग्रेस पार्टी की प्रतिक्रिया से विपक्ष की मंशा का अनुमान लगाया जा सकता है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि आखिरकार सोनिया गांधी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे गए पत्र के दबाव के बाद सरकार ने विशेष सत्र के एजेंडे की घोषणा कर दी है। फिलहाल जो एजेंडा सामने आया है, उसमें कुछ भी नहीं है। इसके लिए नवम्बर में शीतकालीन सत्र तक इंतज़ार किया जा सकता था। जयराम रमेश ने कहा, ‘मुझे यकीन है कि सरकार हमेशा की तरह विधायी हथगोले आखिरी क्षण में छोड़ने के लिए तैयार है। पर्दे के पीछे कुछ और है! इसके बावजूद ‘इंडिया’ गठबंधन की पार्टियां घातक सीईसी विधेयक का डटकर विरोध करेंगी।’ कांग्रेस ने अपने सांसदों को तीन लाइन के व्हिप में कहा है कि राज्यसभा में कांग्रेस के सभी सदस्य सदन की कार्यवाही के दौरान उपस्थित रहें। वे पार्टी के रुख का समर्थन करें। विपक्ष की मुद्दा और मंशा तो सोनिया गांधी के पत्र से काफी हद तक साफ  हो ही चुका है। सोनिया गांधी के पत्र में जिन 9 बिंदुओं का ज़िक्र था, उसमें अडानी मामले में संयुक्त संसदीय समिति की मांग भी शामिल रही।
विपक्ष का अपनी तरफ  से नेतृत्व कर रही कांग्रेस ने उन मुद्दों को लेकर तैयारी तो कर ही रखी होगी—मसलन, ‘एक देश, एक चुनाव’ जैसे मुद्दे को लेकर  तैयारी तो कर ही रखी होगी, ‘एक देश, एक चुनाव’ जैसे मुद्दे को लेकर विपक्ष को लगता है कि सरकार इससे जुड़ा कोई बिल ला सकती है। महिला आरक्षण के मामले में तो कांग्रेस समर्थन ही करेगी, लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सरकार का जो इरादा सामने आया है, उससे टकराव तो होना ही है। कुल मिलाकर इस विशेष सत्र में विपक्ष हंगामा और विरोध करने का कोई अवसर छोड़ेगा नहीं। अब यह देखना अहम होगा कि सरकार कितनी कुशलता से विशेष सत्र का संचालन करती है। 
 

-चिकित्सक एवं लेखक