विशेष सत्र की भावना 

केन्द्र सरकार द्वारा बुलाए गए संसद के 5 दिवसीय विशेष सत्र के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अलावा लोकसभा में विपक्षी दल के नेता अधीर रंजन चौधरी और राज्यसभा में कांग्रेस प्रधान मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने भाषण दिये। यह विशेष सत्र किस उद्देश्य के लिए बुलाया गया है, इसके बारे में सरकार ने कोई एजेंडा नहीं भेजा, जिसके कारण बड़े स्तर पर अनुमान लगते रहे। बाद में पहले राज्यसभा में पेश किए जा चुके कुछ बिलों को पास करवाने के बारे में ज़रूर बताया गया लेकिन इसके लिए विशेष सत्र बुलाने की कोई ज़रूरत नहीं लगती थी। इसके लिए सरकार द्वारा कोई विशेष बिल पेश किए जाने के अनुमान अभी भी लगाए जा रहे हैं। ऐसे कुछ की केन्द्र सरकार से इसलिए आशा है, क्योंकि इसकी पिछली कारगुज़ारी भी इसी प्रकार की रही है। कई बार महत्वपूर्ण बिल अचानक लाए गये हैं। इन अनुमानों के चलते सत्र का एक दिन पूरा हो गया है। इस सत्र की एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि संसद के अगले दिन की कार्रवाई नये बने संसद भवन में शुरू होगी। पिछले लम्बे समय से इसकी चर्चा चलती रही है। इसके साथ-साथ इस मामले पर मोदी सरकार को निशाना भी बनाया जाता रहा है।
ब्रिटिश शासन के समय उनके द्वारा देश की पहली राजधानी कलकत्ता बनाई गई थी। बाद में उस समय के शासकों ने दिल्ली को अपना केन्द्र बनाने के बारे में सोचा, जिसके कारण लुटियन जैसे बेहद काबिल व्यक्ति से नई दिल्ली की रूप-रेखा तैयार करवाई गई। उसकी देख-रेख में नई दिल्ली का निर्माण हुआ। राष्ट्रपति भवन के साथ-साथ अन्य कार्यालयों का निर्माण किया गया। वर्ष 1927 में असैम्बली की इमारत तैयार करवाई गई। देश की स्वतंत्रता के बाद यह संसद भवन बन गया। इसे बने हुए 96 वर्ष हो चुके हैं, परन्तु इसी इमारत में नये संविधान की रूप-रेखा तैयार की गई थी। यहीं से ही 75 वर्ष तक संसद की कर्यवाहियों को चलाया जाता रहा। विगत 75 वर्ष में देश ने प्रत्येक पक्ष से बड़ा विकास किया है। इसी समय में बड़ी घटनाएं भी घटित हुई हैं। देश के समक्ष अनेक चुनौतियां भी उत्पन्न हुईं। इस संसद ने ही देश के नये रूप को उजागर होते देखा।
इसके बावजूद आज हम अपने राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में अनेक त्रुटियां देख रहे हैं। इन्हें कैसे दूर करना है, इस बारे भी संसद में गम्भीर चर्चा होती रहती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नया संसद भवन समय की ज़रूरतों को देखते हुए तैयार किया गया है। जनसंख्या बढ़ने से लोगों के प्रतिनिधियों की संख्या में भी वृद्धि होगी। वर्तमान डिजिटल दौर के  दृष्टिगत भी इसमें नये इज़ाफे किये गए हैं। 
नि:संदेह इसका निर्माण नई ज़रूरतों के दृष्तिगत किया गया है, परन्तु इसके साथ-साथ पहले संसद भवन के महत्व को भी दृष्टिविगत नहीं किया जा सकता। जहां सही अर्थों में आज मुख्य ज़रूरत लोकतांत्रिक भावना को मज़बूत करने की है, वहीं देश के सामाजिक तथा आर्थिक प्रबंध में पड़ी दरारों को भरने की कोशिश भी होनी चाहिए। ऐसी भावनाएं ही देश को जहां आगे बढ़ाने में सहायक हो सकती हैं, वहीं ये देशवासियों तथा उनके प्रतिनिधियों में नई ऊर्जा उत्पन्न करने के भी समर्थ हो सकती हैं। इस प्रकार से देश के समक्ष खड़ीं उत्पन्न चुनौतियों का भी सामना किया जा सकता है। 

 —बरजिन्दर सिंह हमदर्द