सेवा का भाव

आरूषि का बचपन से ही यह सपना था कि वह पढ़-लिखकर डॉक्टर बनेगी और सेवा भाव से रोगियों की सेवा कर उन्हें स्वास्थ्य लाभ दूंगी। उसका सपना साकार हुआ और वह डॉक्टर बन गई और उसने अपने ही गांव में अपना क्लीनिक खोल लिया और रोगियों की सेवा करने लगी।
रविवार का दिन था। गोपाल, रमेश, मुकेश, गर्वित और चेतन खेल के मैदान में खेल रहे थे। तभी उन्हें सड़क दुर्घटना की जानकारी मिली। वे खेल को छोड़कर तत्काल दुर्घटना स्थल पर पहुंचे। उन्होंने देखा कि कोई अज्ञात वाहन कामवाली बाई के लड़के रामू को टक्कर मार कर भाग गया। रामू के गहरी चोट लगी थी। बच्चों ने तत्काल रामू को डॉक्टर आरूषि की क्लिनिक में ले गये और डॉक्टर आरुषि को सारी बात बताई।
डॉक्टर आरूषि ने तुरंत रामू का उपचार शुरू कर दिया। बच्चों ने आरुषि को बताया कि यह कामवाली बाई का लड़का हैं और इसकी मां पिछले दो-तीन महीनों से बीमार हैं और उसकी नौकरी भी छूट गई है। मां के अलावा परिवार में रामू का और कोई नहीं हैं। डॉक्टर आरूषि की देखरेख में रामू का उपचार हुआ। कुछ ही दिनों के उपचार से रामू पूरी तरह से ठीक हो गया।
डॉक्टर आरूषि स्वयं रामू को उसके घर पहुंचाने गयी। रामू की मां ने हाथ जोड़कर आरुषि के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि, बेटा, मैं स्वयं बीमार हूं। मैं आपको फीस तो नहीं दे सकती लेकिन आशीर्वाद देती हूं कि तुम अपने मिशन में कामयाब हो। इस पर डॉक्टर आरूषि ने कहा कि मैंने तो अपना मानवीय धर्म निभाया। ईश्वर की कृपा से आपका बेटा ठीक हो गया।
जब गांव वालों को पता चला तो उन्होंने आरूषि के कार्य की सराहना करते हुए उसके प्रति आभार व्यक्त किया व उसका नागरिक अभिनंदन किया। इस अवसर पर डॉक्टर आरुषि ने कहा कि सेवा की भावना ही डॉक्टर का पहला धर्म हैं। मैंने तो अपना धर्म निभाया है। डाक्टर का धर्म रोगी की सेवा करना हैं न कि उपचार के नाम पर अनावश्यक रूप से धन कमाना। चूंकि आम जनता की नज़रों में डॉक्टर इस धरती के भगवान माने जाते हैं फिर भला भगवान अपने भक्तों (रोगियों) को कैसी दु:खी देख सकता हैं। 
 

(सुमन सागर)

#सेवा का भाव