द्विपक्षीय समझदारी की ज़रूरत

कनाडा के प्रदेश ब्रिटिश कोलम्बिया के शहर सरी में जून मास में खालिस्तान टाइगर फोर्स के प्रमुख हरदीप सिंह निज्जर की दो व्यक्तियों द्वारा गोली मार कर हत्या कर दी गई थी।  भारत में अपनी खाड़कू गतिविधियों के कारण वह चोरी-छिपे 1996 में कनाडा चला गया था, जहां उसे लम्बी अवधि के बाद वहां की नागरिकता मिली थी। भारत में उस पर 10 लाख रुपये का ईनाम रखा गया था तथा उसके लिए रैड कार्नर नोटिस भी जारी किया गया था। भारत सरकार इस संबंध में लगातार कनाडा की सरकार को सूचित करती रही थी तथा उसे वापिस भेजने के लिए दबाव बनाती रही थी, क्योंकि कनाडा में ऐसे कई संगठन बने हुए हैं, जो खालिस्तान के लिए गतिविधियों को अंजाम देते हैं। इनमें से ज्यादातर पर पाकिस्तान से संबंध रखने तथा वहां से भारत में हिंसक गतिविधियां करवाने के भी गम्भीर आरोप लगते रहे हैं। 
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो वर्ष 2018 में भारत आये थे। भारत सरकार उनके साथ इस बात से खुश नहीं थी कि वह अपने देश में भारत विरोधी हर तरह की गतिविधियों को जारी रखने के लिए इजाज़त दे रहे हैं। यहां पर उनका बेगानों की तरह ही स्वागत किया गया था। इसी दौरान वह अमृतसर में तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह से भी मिले थे, जिन्होंने ट्रूडो को वहां सक्रिय खाड़कू संगठनों तथा उनके प्रमुखों के नामों की एक सूची भी सौंपी थी तथा विस्तारपूर्वक उनके संबंध में विवरण देते हुए कार्रवाई की मांग की थी, परन्तु जस्टिन ट्रूडो ने भारत सरकार की इन बातों की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था। वह लिबरल पार्टी के प्रतिनिधि हैं। उनकी पार्टी बहुमत में नहीं है, इसलिए उन्होंने न्यू डैमोक्रेटिक पार्टी के साथ गठबंधन किया हुआ है, जिसका अध्यक्ष जगमीत सिंह है, जो प्रत्यक्ष रूप से खालिस्तान समर्थक माना जाता है। कनाडा के ही पंजाबी राजनीतिज्ञ उज्जल सिंह दोसांझ जो ब्रिटिश कोलम्बिया के प्रीमियर भी रहे हैं, ने एक भेंटवार्ता में यह कहा है कि चाहे पंजाब में खालिस्तान की कोई लहर नहीं है तथा न ही वहां के लोग खालिस्तान चाहते हैं परन्तु कनाडा तथा कुछ अन्य देशों में इसकी चर्चा बनी रहती है। निज्जर की हत्या के संबंध में विगत दिवस जस्टिन ट्रूडो ने अपनी संसद में यह बयान दिया था कि निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों का हाथ है। इस संबंधी भारत की जवाबदेही बनती है। इस बयान ने भूकम्प ला दिया था, जिसके झटके अभी तक जारी हैं। भारत ने ट्रूडो के इस बयान को पूरी तरह खारिज कर दिया था। आज दोनों देशों में जो भारी तनाव बन गया है, उसने भारत के साथ-साथ कई पक्षों से पंजाब पर भी बड़ा प्रभाव डाला है।
आज कनाडा में 20 लाख के लगभग भारतीय रहते हैं। कनाडा के प्रत्येक क्षेत्र में उनका अहम योगदान है। भारत के सवा तीन लाख के लगभग विद्यार्थी वहां स्टडी वीज़ा पर गये हुए हैं। इनमें डेढ़ लाख से भी अधिक पंजाबी हैं, जो अपनी शिक्षा पूरी होने के बाद वहां रहने के लिए आवेदन दे सकते हैं। एक अनुमान के अनुसार प्रत्येक विद्यार्थी के कनाडा जाने पर 25 लाख से भी अधिक खर्च आता है। जो चले गये, वे तो वहां पर ही हैं, पंजाब में अभी भी युवाओं की कनाडा जाने के लिए लम्बी कतारें लगी दिखाई देती हैं। कनाडा को अब तक ऐसे प्रवास से अरबों रुपये प्राप्त हो चुके हैं। इच्छुक युवाओं के रुक जाने तथा वहां पढ़ते लाखों विद्यार्थियों की स्थिति अनिश्चित बन जाने से पंजाब में चिंता के साथ-साथ बड़ी हलचल मची दिखाई देने लगी है। कनाडा की सैकड़ों कम्पनियां भारत में अपना कारोबार भी चला रही हैं। प्रत्येक वर्ष दोनों देशों के मध्य अरबों रुपये का व्यापार होता है। इस देश में अब तक भारतीयों की भारी जनसंख्या प्रवास कर चुकी है, परन्तु अब बने अनिश्चितता भरे माहौल ने सभी को चिन्ता में डाल दिया है। जस्टिन ट्रूडो द्वारा जल्दबाज़ी में किए गए ऐसे दावों ने दोनों देशों में एक ऐसी रेखा खींच दी है, जिसे आगामी समय में मिटा पाना आसान नहीं होगा। दोनों देशों को ही परिपक्व नीति अपना कर आपसी बातचीत द्वारा शीघ्र इस मामले का कोई न कोई हल निकालने की ज़रूरत होगी, ताकि दोनों देशों की लम्बी अवधि से बनी मित्रता ऐसी दरारों का रूप न धारण कर ले, जिन्हें बाद में भरा जाना बेहद कठिन हो जाये। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द