लड़खड़ाती आर्थिकता
जब बात निकलती है तो फिर वह दूर तक चली जाती है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पिछले दिनों प्रदेश के राज्यपाल श्री बनवारी लाल पुरोहित को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने केन्द्र द्वारा रोके गये ग्रामीण विकास फंड के 5637 करोड़ रुपये दिलाने की मांग की थी। यह पत्र इसलिए हैरानी वाला है कि विगत लगभग एक वर्ष से राज्यपाल का यह गिला रहा है कि मुख्यमंत्री उनके द्वारा लिखे जाते पत्रों का जवाब नहीं देते। उन्होंने यह भी लिखा था कि यह बात ़गैर-संवैधानिक है क्योंकि राज्यपाल का पद संवैधानिक होता है। उनके पत्रों का उत्तर देना मुख्यमंत्री का फज़र् होता है। बात यहीं खत्म नहीं होती बल्कि लगातार इन पत्रों को दृष्टिविगत करते हुए मुख्यमंत्री ने राज्यपाल द्वारा लिखे इन पत्रों को ‘लव लैटर’ कह कर मज़ाक उड़ाया था। यह भी कि राज्यपाल अपने सीमावर्ती ज़िलों के दौरे के दौरान सरकारी हैलीकाप्टर का उपयोग करते हैं। सरकार द्वारा कई मामलों में की जाती अवहेलना और लापरवाही को लेकर विपक्षी पार्टियों और अन्य महत्वपूर्ण संस्थाएं अक्सर राज्यपाल के पास पहुंच करके उनको अपने मांग-पत्र देती हैं। ताकि इसी ढंग-तरीके के साथ सरकार के पास उनकी सुनवाई हो सके, लेकिन सरकार राज्यपाल के पत्रों को लम्बे समय तक कोई महत्व देने के लिए तैयार नहीं थी।
अब मुख्यमंत्री को ग्रामीण विकास फंड की अपनी मांग के लिए राज्यपाल के पास पहुंच क्यों करनी पड़ी, इसका जवाब तो वही जानते हैं, लेकिन केन्द्र का पिछले लम्बे समय से यह पक्ष रहा है कि उसके द्वारा भेजे अलग-अलग क्षेत्रों के लिए फंडों का प्रदेश सरकार द्वारा दुरुपयोग किया जाता रहा है। इसी प्रकार पहले भेजे गये ग्रामीण विकास फंड को अन्य कामों या क्षेत्रों में खर्च कर दिया जाता रहा है। केन्द्र की ऐसी बात का प्रदेश सरकार कभी भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी। इस बार पंजाब सरकार इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई है, जिसकी वहां सुनवाई की जा रही है। राज्यपाल ने अपने पत्र में यह भी लिखा है कि यदि सरकार इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के पास पहुंच चुकी है तो ऐसी स्थिति में उनका केन्द्र के पास यह बात रखना अदालत के फैसले से पहले उचित नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने सरकार से यह भी पूछा है कि पिछले डेढ़ वर्ष के समय में सरकार ने पचास हज़ार करोड़ रुपये का कज़र् उठा लिया है। इतनी बड़ी रकम सरकार ने किस प्रकार खर्च की है, उसका विस्तार भी दिया जाए। हमारी सूचना के अनुसार इस बड़ी राशि में से प्रदेश के आधारभूत निर्माण के लिए बहुत ही कम पैसा इस्तेमाल किया गया है।
यहां तक कि बाढ़ से प्रभावित किसानों द्वारा बार-बार मुआवज़े की मांग की जाती रही है, जिसमें सरकार का अब तक का हिस्सा बहुत ही कम है, जिस कारण बाढ़ की मार झेल रहे लोगों में भारी निराशा फैल चुकी है। सरकार बनने से पहले पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल तथा भगवंत मान ने बड़े-बड़े दावे भी किये थे तथा वायदे भी किये थे कि वे खनन में से 20000 करोड़ रुपये एकत्र करेंगे और आबकारी से भी प्रदेश के विकास के लिए बड़ी राशि जुटाएंगे, परन्तु ये दावे हवा में गुम हो गये प्रतीत होते हैं। नि:संदेह पिछली सरकारों ने पंजाब के सिर पर ऋण की गठरी लाद दी थी। आम आदमी पार्टी के सत्ता के सम्भालते समय लगभग पौने तीन लाख करोड़ का प्रदेश के सिर पर ऋण था जो अब सवा तीन लाख करोड़ से अधिक हो गया है। जहां तक लोगों को मुफ्त बिजली देने की व्यवस्था है, ऐसा करके सरकार ने पावरकॉम पर 18 हज़ार करोड़ का ऋण चढ़ा दिया है, जिसकी वह किसी भी तरह भरपायी करने से असमर्थ प्रतीत होती है, परन्तु इसके साथ ही व्यापारिक तथा औद्योगिक क्षेत्र में बिजली के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। जहां तक सरकार का संबंध है, इसके खर्चों को ‘शाही खर्चे’ कहा जा सकता है। पंजाब की बात छोड़ें, इससे बाहर अब तक टी.वी. चैनलों तथा समाचार पत्रों (जिनमें दक्षिण के बहुत-से समाचार पत्र भी शामिल हैं) में इश्तिहारबाज़ी पर अब तक करोड़ों नहीं, अपितु अरबों रुपये बहा दिये गये हैं। सरकार द्वारा पंजाब में नहीं, पंजाब के बाहर किराये पर लिये गये हवाई जहाज़ों को सड़कों पर दौड़ती रोडवेज़ की बसों की भांति चलाया जाता रहा है। छोटे-मोटे समारोहों के लिए इश्तिहारबाज़ी पर करोड़ों रुपये खर्च कर देना इसके ‘शाही खर्चों’ में और वृद्धि करता है। अब तक सरकार द्वारा बनाई गई योजनाएं न सिर्फ बड़ी सीमा तक क्रियान्वयन से वंचित हैं, अपितु कहीं अधिक खर्चीली भी प्रतीत होती हैं। पिछली सरकारों की भांति ही वोट प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा लागू की जा रही मुफ्तखोरी पर आधारित योजनाएं भी सरकारी खज़ाने को आघात पहुंचा रही हैं।
ऐसी स्थिति में प्रदेश के राज्यपाल द्वारा इस खर्च का विवरण मांगना स्वाभाविक है, परन्तु यह बात यहीं समाप्त नहीं हो रही, अपितु यह एक मुद्दा बनती दिखाई दे रही है। इस संबंध में अब तक बहुत-से प्रमुख राजनीतिक नेताओं ने आवाज़ उठाई है और लिये गये इस बड़े ऋण का विशेष आडिट करवाने की मांग की है। यदि प्रदेश की सरकार में थोड़ी-बहुत पारदर्शिता भी बची है तो उसे अब तक अपने द्वारा लिये गये बड़े ऋण का हिसाब लोगों के सामने अवश्य रखना चाहिए ताकि वे निष्पक्ष होकर सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों संबंधी अपनी कोई राय बना सकें।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द