चुनावों पर गर्माती राजनीति


चाहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के संबंध में यत्न किये जाने की घोषणा की गई है। इस संबंधी पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के नेतृत्व में एक उच्च-स्तरीय समिति भी बनाई गई है, जो लोकसभा तथा विधानसभा के चुनाव एक ही समय में करवाये जाने पर विस्तारपूर्वक तथा गहन विचार-विमर्श करेगी। इसके भाजपा की केन्द्र सरकार द्वारा बहुत लाभ भी गिनाये जा रहे हैं, परन्तु देश में जिस तरह की लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम हो चुकी है, उसके दृष्टिगत ऐसे प्रबन्ध किये जाने बेहद मुश्किल प्रतीत होते हैं तथा इनका किसी भी तरह शीघ्र सम्पूर्ण होने की कोई सम्भावना दिखाई नहीं देती। इसके साथ ही देश में एक बार फिर चुनावों का माहौल गर्माने लगा है। इसी वर्ष के अंत में जहां पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं वहीं आगामी वर्ष लोकसभा के चुनाव भी करवाये जाएंगे। 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश ने कई पक्षों से आयाम स्थापित किये हैं। इसकी अर्थ-व्यवस्था भी मज़बूत हुई है। विगत अवधि में इसकी बड़ी उपलब्धियों में से एक चंद्रयान-3 की योजना के तहत चन्द्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने की रही है। इसके बाद यहां जी-20 के सफल सम्मेलन करवाये जाने पर प्रधानमंत्री तथा भारत के नाम की विश्व भर में चर्चा हो रही है, परन्तु देश भर में बढ़ती महंगाई तथा बेरोज़गारी ने व्यापक स्तर पर लोगों में बेचैनी पैदा की है।
चाहे केन्द्र सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं का प्रभाव भी प्रत्यक्ष रूप में देखा जा सकता है परन्तु इसके साथ-साथ देश में जिस तरह से साम्प्रदायिक विवाद बढ़े हैं, जिस तरह लोगों के भीतर डर तथा भय पैदा हुआ है, ऐसे दृश्य सरकार की कारगुज़ारी के नकारात्मक प्रभाव का भी निर्माण करते हैं। चाहे इन बातों का समूचा प्रभाव तो आगामी समय में होने वाले लोकसभा चुनावों में देखा जा सकेगा परन्तु पांच राज्यों के होने जा रहे चुनावों में ऐसे प्रभावों के साथ-साथ वहां के स्थानीय प्रभाव तथा प्रांतीय सरकारों की कारगुज़ारी की जांच-पड़ताल भी की जायेगी। राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, मिज़ोरम तथा छत्तीसगढ़ में इस वर्ष नवम्बर मास में एक साथ चुनाव करवाये जाने की सम्भावना बनी हुई है। इनमें  से दो राज्यों राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी प्रशासन चला रही है तथा तेलंगाना में के. चन्द्रशेखर राव के नेतृत्व वाली भारत राष्ट्र समिति पार्टी तथा मिज़ोरम में जोगमथांगा के नेतृत्व में मिज़ो नैशनल फ्रंट प्रशासन चला रहा है। इनमें मध्य प्रदेश सबसे बड़ा प्रदेश है, जिसकी असैम्बली में 230 सीटें हैं। दूसरे स्थान पर राजस्थान है, जिसकी 200 सीटें हैं। तीसरे स्थान पर तेलंगाना है, जिसकी 119 सीटें हैं। छत्तीसगढ़ की 90 तथा मिज़ोरम की 40 सीटें हैं। मध्य प्रदेश में भी विगत चुनावों के दौरान कांग्रेस को ही बहुमत मिला था परन्तु बाद में इसमें ब़गावत होने के कारण भाजपा ने इसका प्रशासन हथिया लिया था। इस तरह इस बार भी यहां मुख्य रूप में कांग्रेस का भाजपा के साथ ही मुकाबला होगा। दो दर्जन से अधिक पार्टियों द्वारा ‘इंडिया’ नामक गठबंधन बनाये जाने से कांग्रेस को इसका अधिक लाभ मिलने की उम्मीद की जा रही है, परन्तु इसके साथ उसे छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान के प्रशासन में पैदा हुए सत्ता-विरोधी रुझान के कारण सुरक्षित नीति भी धारण करनी पड़ेगी।
मिज़ोरम में भाजपा तथा कांग्रेस का अधिक प्रभाव नहीं है तथा तेलंगाना में भी अभी तक के. चन्द्रशेखर राव की पार्टी का ही पलड़ा भारी दिखाई देता है। समय व्यतीत होने के साथ-साथ इन प्रदेशों में जहां राजनीतिक लड़ाई तेज़ होती जा रही है, वहीं कांग्रेस तथा कुछ अन्य पार्टियों द्वारा मुफ्त की योजनाएं लागू करने के वायदे भी किये जा रहे हैं। चाहे भाजपा का मुख्य मुद्दा शुरू में विकास का होता है, परन्तु ज़रूरत के अनुसार यह ध्रुवीकरण की राजनीति की ओर भी चली जाती है। नि:संदेह जहां क्षेत्रीय पार्टियों को वहां की पिछली कारगुज़ारी देख कर समर्थन मिलेगा, वहां राष्ट्रीय पार्टियों की क्षेत्रीय सरकारों की कारगुज़ारी के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीतिक प्रभावों के साथ उनकी पार्टियों का राष्ट्रीय व्यक्तित्व भी मतदाताओं पर प्रभाव डालने के समर्थ होगा। इन प्रदेशों के चुनाव परिणामों का देश की राजनीति तथा आने वाले लोकसभा चुनावों पर भी प्रभाव पड़ेगा। 
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द