बासमती के निर्यात हेतु निर्धारित 1200 डॉलर की कीमत पर पुन: दृष्टिपात की ज़रूरत

केन्द्र सरकार ने बासमती के निर्यात संबंधी जो फैसला लिया है कि 1200 डालर प्रति टन से नीचे के सप्लाई आर्डरों पर बासमती चावल निर्यात नहीं किया जा सकता, इससे पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के अतिरिक्त सभी निर्यातक दु:खी लग रहे हैं। इस फैसले से हरियाणा की करनाल, तरौड़ी तथा चीका आदि मंडियों में बासमती की कीमत गिर गई है। इस फैसले के बाद बासमती की फसल 3800 रुपये प्रति क्ंिवटल तक करनाल मंडी में बिक कर 3300 रुपये प्रति क्ंिवटल पर आ गई है। चाहे अब पंजाब भाजपा अध्यक्ष सुनील जाखड़ तथा आई.सी.ए.आर.-इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीच्यूट के डायरैक्टर तथा उपकुलपति डा. अशोक कुमार सिंह (जो बासमती किस्मों के मुख्य ब्रीडर हैं) द्वारा केन्द्र सरकार के समक्ष विरोध प्रकट किया गया और इस संबंधी सही स्थिति अधिकारित अथारिटी के ध्यान में लाने के बाद जब यह मांग की गई कि इस फैसले पर दृष्टिपात करके इस कीमत को कम किया जाए और केन्द्र सरकार द्वारा हमदर्दी से विचार करने का आश्वासन दिया गया। इसके साथ ही मंडी में बासमती की पैदावार की कीमत पुन: कुछ बढ़ गई और 3650 रुपये प्रति क्ंिवटल तक आ गई। 
किसानों के प्रतिनिधियों द्वारा केन्द्र सरकार के ध्यान में लाया गया कि इस फैसले पर पुन: समीक्षा करने हेतु 15 अक्तूबर की तिथि तय की गई है। उस समय यदि 1200 डालर प्रति क्ंिवटल के निर्यात हेतु रखी कीमत कम करने का फैसला ले लिया जाता है, किसान तो नुकसान उठा चुके होंगे, क्योंकि वह अपनी कम समय में पकने वाली पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-1847, पूसा बासमती-1692 आदि किस्मों की फसल का मंडीकरण कर चुके होंगे। किसानों के पास भंडार करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। न ही उन्हें आसानी से बैंक या आढ़ती कज़र् देते हैं। उन्हें रबी की फसलों के लिए खाद, बीज तथा अन्य सामग्री खरीदने के लिए पैसे की आवश्यकता होती है और वे तुरंत फसल को काट कर मंडी में बेचने के लिए उत्सुक होते हैं। भाजपा अध्यक्ष सुनील जाखड़ तथा बासमती के प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ब्रीडर डा. अशोक कुमार सिंह द्वारा केन्द्र सरकार को कहा गया है कि यदि फैसले पर तुरंत दृष्टिपात नहीं किया जाता और विदेशों को निर्यात की जाने वाली बासमती की कीमत 1200 डालर से कम नहीं की जाती तो किसानों का 5000 से 10000 रुपये प्रति एकड़ का नुकसान होने की सम्भावना है। 
निर्यातकों का पक्ष पेश करते हुए आल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और बासमती के प्रसिद्ध निर्यातक विजय सेतिया ने कहा कि केन्द्र सरकार के  इस फैसले से बासमती के निर्यात पर प्रभाव पड़ा है। जो दूसरे देशों के आर्डर थे, उनके संबंध में दूसरे देशों द्वारा कीमत कम करने के लिए कहा जा रहा है। यह फैसला निर्यात पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है, क्योंकि बासमती खरीदने वाले दूसरे देश पाकिस्तान से बासमती खरीदने के लिए तैयार हो गए हैं। इससे पाकिस्तान को इस व्यापार में बढ़त मिलेगी तथा भारत की जो दूसरे देशों में स्थापित एक्सपोर्ट मंडी है, उसमें उथल-पुथल हो जाएगी।   
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार केन्द्र सरकार के पास इस मामले संबंधी स्थापित की गई कमेटी की रिपोर्ट आ गई है और किसी समय भी केन्द्र द्वारा निर्यात के लिए कम से कम निर्धारित की गई 1200 डालर की कीमत कम किये जाने की सम्भावना है। अब तक बासमती औसतन 1050 डालर प्रति टन के हिसाब से दूसरे देशों को भेजी जाती रही है। वर्ष 2022-23 के दौरान भारत से 46 लाख मीट्रिक टन बासमती लगभग 30,000 करोड़ रुपये की निर्यात की गई। 
पंजाब यंग फार्मर्स एसोसिएशन तथा अन्य किसान संगठनों द्वारा ज़ोरदार मांग की जा रही है कि किसानों का विश्वास बासमती की फसल में रखने के लिए इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) निर्धारित किया जाए ताकि किसानों को यह लाभकारी फसल बेचने में कोई मुश्किल पेश न आए और बासमती उनकी पसंदीदा फसल बनी रहे। पंजाब सरकार को इसलिए किसानों की मदद हेतु आगे आना चाहिए और केन्द्र से एम.एस.पी. निर्धारित करवाने के लिए प्रयास करने चाहिएं। बासमती की काश्त बढ़ने से राज्य में भू-जल का स्तर गिरने की समस्या का भी समाधान हो जाएगा, क्योंकि बासमती की नई किस्मों की बिजाई जुलाई में होती है, जिन्हें बहुत कम पानी की ज़रूरत है और कई बार ये मानसून की बारिश के पानी से ही पक जाती हैं।