बदलाखोरी की राजनीति

पंजाब में भगवंत मान के नेतृत्व में विगत डेढ़ वर्ष से प्रशासन चला रही ‘आप’ की सरकार ने इस कम समय में ही प्रत्येक पक्ष से बड़ा खिलारा डाल दिया है। इस पार्टी को लोगों ने बड़ी आशाओं तथा उम्मीदों से जिताया था। शायद ही प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में कभी भी किसी पार्टी को इस तरह समर्थन मिला हो। 117 में से 92 विधायकों का चुना जाना अपने-आप में जहां इस पार्टी की शानदार जीत थी, वहीं इस जीत ने पार्टी पर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी भी डाल दी थी। चुनावों से पहले ‘आप’ के नेताओं द्वारा यह दावा किया जाता रहा था कि यह आम लोगों की पार्टी है। यह भी कि उनका जीवन व किरदार दूध का धुला है। यह भी कि यदि लोग उन्हें जिता देते हैं तो वे प्रदेश में एक ऐसा इन्कलाब ला देंगे, जिसके द्वारा इसे रंगला पंजाब बनाया जाएगा। 
चाहे इस पार्टी का सर्वोच्च नेता अरविंद केजरीवाल मूल रूप में पंजाबी नहीं है, परन्तु पंजाबियों ने उसे सिर आंखों पर बिठाया था तथा उन्हें यह प्रतीत होने लगा था कि वास्तव में ही यह नेता प्रदेश की नुहार बदल देगा। समय के साथ प्रत्येक पक्ष से इसके अवसान की ओर सफर पर ब्रेक लग जाएगी और इस नई पार्टी तथा उसके नेताओं के नेतृत्व में यह प्रदेश विकास के मार्ग पर चल पड़ेगा। चुनावों से पहले तथा चुनावों के दौरान इन नेताओं ने जो स्वप्न दिखाए थे, वे डेढ़ वर्ष की ही अवधि में चूर-चूर हो गए प्रतीत होते हैं। इनका नारा भ्रष्टाचार को खत्म करना, बढ़ रहे नशे को रोकना, प्रदेश की आर्थिकता को ऊपर ले जाना तथा इसके आधारभूत ढांचे को पूरी तरह मज़बूत करना था, परन्तु अब तक जो सामने आया है, लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार ने इसे पुलिस तंत्र में बदल दिया है। अब तक इसके दर्जनों उदाहरण दिये जा सकते हैं जब इस सरकार ने विरोधी स्वर निकालने वालों का गला दबाने का यत्न किया है। इसने प्रदेश में भय का ऐसा माहौल पैदा करने का यत्न किया है जिसमें कोई भी सिर न उठा सके। इसका ताज़ा उदाहरण कांग्रेसी नेता सुखपाल सिंह खैहरा पर पुलिस के द्वारा डंडा बरसाने का है। स. खैहरा पहले आम आदमी पार्टी के भी नेता रहे हैं, परन्तु इनकी अपनी कार्यशैली होने के कारण उनका इस पार्टी में गुज़ारा होना मुश्किल था। घटित काफी राजनीतिक घटनाचक्र के बाद वह फिर कांग्रेस में आ गए थे।
विगत समय से वह निर्भीक होकर भगवंत मान सरकार की नीतियों की सख्त आलोचना करते रहे हैं, जिसके कारण उनको बड़े अजीबो-गरीब ढंग से एक बहुत पुराने केस में फंसाया गया। सुखपाल खैहरा के साथ किसी के राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं। कोई उनके द्वारा की जाने वाली कटु आलोचना से नाराज़ भी हो सकता है लेकिन उनको नशे के धंधे में फंसाने का यत्न करना, उनके साथ की गई बड़ी नाइन्साफी और ज्यादती है, लेकिन सरकार द्वारा की जाने वाली ऐसी कार्रवाइयों पर इसलिए हैरानी नहीं होती क्योंकि उसने अपने ढंग-तरीके के साथ हर तरफ ही ऐसा माहौल बना दिया है। आज ‘आप’ के बहुत सारे छोटे-बड़े नेताओं पर अनेक अनियमितताओं के लिए उंगलियां उठ रही हैं, लेकिन उनके द्वारा किए जाते ऐसे ‘कारनामों’ के बारे में कोई कार्रवाई तो क्या की जानी होती है बल्कि ऐसे घटनाक्रम से आंखें घुमा ली जाती हैं। इससे भी निचले स्तर की बात यह है कि आज शासकों द्वारा निजी बदला लेने की नीति को अधिमान दी जा रही है। इसलिए सभी विपक्षी पार्टियों के नेताओं को प्रतिदिन धमकियां ही नहीं दी जातीं, बल्कि उनको अलग-अलग केसों में फंसाया जा रहा है।
आज नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार का बोलबाला है। नशे की भरमार में प्रदेश गर्क होता जा रहा है। आम से खास बने ये नेता हर ढंग-तरीके के साथ प्रदेश के स्त्रोतों को घुन लगाने पर तुले हुए हैं। यहां तक कि विगत दिनों पंजाब के राज्यपाल श्री बनवारी लाल पुरोहित ने भी इस काल में इस सरकार से पचास हजार करोड़ का और कज़र् चढ़ा देने का हिसाब मांगा है। एक तरफ राष्ट्रीय स्तर पर यह पार्टी ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल होकर कांग्रेस व अन्य पार्टियों के साथ मिलकर देश में आने वाले लोकसभा चुनावों में भागीदारी की बात कर रही है। दूसरी तरफ निजी ईर्ष्या और बदलाखोरी के स्वभाव करके पंजाब में कांग्रेस के छोटे-बड़े नेताओं को पूरी तरह बदनाम और ज़लील करने की नीति इस पार्टी की सरकार ने अपना ली है। पैदा किए गये ऐसे हालात में राष्ट्रीय या प्रांतीय स्तर पर यह पार्टी अपने कितने राजनीतिक भागीदार बना सकेगी, इस संबंधी तस्वीर पूरी तरह साफ होती जा रही है। आज पंजाब के लोग निराशा के आलम में हैं। उनकी आशाओं को बूर तो क्या लगना था, अपितु से आशाएं पूरी तरह से टूटती जा रही हैं। ऐसे हालात कब तक बने रहेंगे, इसके बारे में कुछ कहना अभी भी बेहद मुश्किल लगता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द