पराली जलाने की बढ़ती घटनाएं

पंजाब में धान की कटाई का मौसम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, प्रदेश में पराली के अवशेषों को खेतों में ही आग लगाये जाने की घटनाएं भी उसी अनुपात से बढ़ती गई हैं। हालत यह हो गई है कि पंजाब सरकार के लाख यत्नों और ढेरों घोषणाओं के बावजूद ऐसी घटनाओं पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है। उल्लेखनीय है कि पंजाब की भगवंत मान सरकार ने अभी कुछ ही दिन पूर्व घोषित एक कार्य-योजना में दावा किया था कि प्रदेश में पराली जलाये जाने की घटनाओं में चालू मौसम में 50 प्रतिशत तक की अवश्यमेव कमी लाई जाएगी, परन्तु इस कार्य-योजना की स्याही भी अभी सूखी नहीं होगी कि प्रदूषण नियन्त्रण विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार केवल विगत दस दिन में ही धान की फसल के अवशेषों को आग लगाये जाने की घटनाओं में पिछले वर्ष के इस काल से दो गुणा तक वृद्धि हुई है। पंजाब में कृषि विशेषज्ञों के अनुसार इस वर्ष 32 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में धान की बुआई किये जाने का अनुमान है। इससे 220 लाख टन पराली उपजने की सम्भावना है। दीपावली के आस-पास ऐसी घटनाएं शिखर पर होती हैं, किन्तु शुरुआत में ही आज स्थिति यह हो गई है कि सर्वोच्च न्यायालय को भी इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में एक ओर जहां वायु गुणवत्ता प्रबन्धन आयोग सी.ए.क्यू.एम. से इस संबंध में रिपोर्ट मांगी है, वहीं आयोग ने पंजाब सरकार को फसली अवशेष प्रबन्धन हेतु और मशीनों की खरीद और इनके कुशल प्रबन्धन का निर्देश भी दिया है। इसके बावजूद अभी तक के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पराली जलाये जाने की घटनाओं में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। सरकारी अमले द्वारा कई जगहों पर पराली को आग लगाने वाले किसानों को जुर्माने भी किये गये हैं किन्तु आग लगाये जाने की घटनाओं में रत्ती भर भी कमी आते दिखाई नहीं दी है।
पंजाब में पराली जलाये जाने के अब तक कुल 1027 मामले सामने आ चुके हैं जिनमें से 567 केवल ज़िला अमृतसर से हैं। दूसरे स्थान पर तरनतारन में 154 ऐसी घटनाओं का पता चला है। पटियाला और कपूरथला तीसरे और चौथे स्थान पर रहे हैं किन्तु वायु गुणवत्ता सूचकांक के धरातल पर ज़िला रोपड़ सर्वाधिक प्रदूषित इलाका माना गया है। लुधियाना और मंडी गोबिन्दगढ़ भी प्रदूषण और वायु गुणवत्ता में बिगाड़ के मामले में निम्न धरातल वाले इलाके घोषित हुए हैं। यह भी इस पूरे मामले का एक बेहद त्रासद पक्ष है कि पिछले वर्ष 2022 में बिना सरकारी पहल के, और सामाजिक धरातल पर चलाये गये जन-अभियानों के दृष्टिगत ऐसी घटनाओं में 30 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई थी, किन्तु इस वर्ष केवल एक पखवाड़े में ही विगत वर्ष से दो गुणा पराली जलायी जा चुकी है। पिछले वर्ष प्रदेश में पराली को आग लगाये जाने के 49 हज़ार 900 मामले दर्ज हुए थे। यह भी एक कटु तथ्य है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान के अपने गृह क्षेत्र मालवा में ऐसी घटनाएं अन्य ज़िलों की अपेक्षा अधिक उभर कर सामने आ रही हैं। दोआबा मंडल में भी ऐसी घटनाएं निरन्तर हुई हैं हालांकि इनकी संख्या मालवा और माझा दोनों से कमतर है। यह भी एक तथ्य है कि कटाई का मौसम शुरू होने से पूर्व सरकारें पराली के विशेष प्रबन्धन, मशीनों की आवक और अनेक प्रोत्साहन विकल्पों के तौर पर घोषणाएं तो बहुत करती हैं किन्तु क्रियात्मक धरातल पर कुछ नहीं हो पाता, और समस्या पूर्व से अधिक गम्भीर और नाज़ुक होती चली जाती है।
आज स्थिति यह हो गई है कि सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद वायु गुणवत्ता प्रबन्धन आयोग ने भी चिन्ता की अभिव्यक्ति कर दी है, हालांकि स्थितियों की गम्भीरता की आहट अभी महसूस होने वाली है। सरकार द्वारा सख्ती की घोषणाओं एवं निर्देशों की स्याही अभी सूखी भी नहीं होती कि पूर्व संख्या से अधिक, पराली को आग लगाये जाने की नई घटनाओं का पता चल जाता है। यह भी एक बेहद चिन्तनीय पक्ष है कि प्रदूषण रोकथाम कानून-1981 के तहत बोर्ड बेशक पाबन्दियों को लागू करने हेतु कई जगहों पर मौका पर पहुंचता ज़रूर है, किन्तु उसके पीठ मोड़ते ही ऐसी घटनाएं पूर्ववत् होने लगती हैं। हम समझते हैं कि नि:संदेह इस हेतु सरकार के प्रबन्ध और प्रोत्साहन अधूरे हैं। सरकार को पराली अवशेषों को  उद्योगों में खपाने एवं खाद बनाने हेतु प्रयोग करने के लिए समुचित प्रणाली विकसित करनी चाहिए, और इसके लिए किसानों को वित्तीय मदद भी दी जानी चाहिए। पराली अवशेषों की गांठें बना कर उसे खपाने के लिए भी मशीनों की कमी है। सरकार के पास न मशीनें हैं, न समुचित धन की व्यवस्था और न ही गांठों को सम्भालने हेतु गोदाम उपलब्ध हैं। पराली खपाने वाले उद्योग भी सरकारी अनुदान की प्रतीक्षा में हैं। हम यह भी समझते हैं कि विकल्प-हीनता की स्थिति में ही किसान पराली अवशेषों को आग लगाने पर विवश होते हैं। सरकार जितना शीघ्र इस व्यवस्था को अंजाम  देने हेतु प्रयत्नरत होगी, उतना ही प्रदेश के लोगों, किसान वर्ग और पर्यावरण के हित में होगा।