क्या गठबन्धन में अकेले पड़ गए हैं केजरीवाल ?

आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल चुका है लेकिन वो सिर्फ  दो राज्यों में ही ज्यादा प्रभाव रखती है। इन दोनों राज्यों में उसकी आम अदमी पार्टी की सरकार चल रही है। एक सच यह भी है कि ये दोनों राज्य उसने कांग्रेस से छीने हैं। जब ‘इंडिया’ गठबन्धन का गठन हुआ तो आम आदमी पार्टी को भी उसमें शामिल होने का न्यौता दिया गया।  केजरीवाल इस गठबन्धन में शामिल होने में ज्यादा उत्सुक नहीं थे लेकिन दिल्ली में केंद्र सरकार और राज्य सरकार की शक्तियों के बंटवारे से संबंधित अध्यादेश के खिलाफ  विपक्षी दलों के सहयोग के लिये केजरीवाल ने इस गठबन्धन में शामिल होने का फैसला किया था। 
पटना की बैठक से वह नाराज़ होकर चले गये क्योंकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उन्हें इस मामले पर स्पष्ट जवाब नहीं दिया था। केजरीवाल चाहते थे कि राहुल गांधी यह घोषणा कर दें कि उनकी पार्टी इस अध्यादेश को कानूनी रूप देने के लिये लाये जाने वाले बिल का संसद में विरोध करेगी। केजरीवाल ने घोषणा कर दी कि वह गठबन्धन की अगली बैठक में तभी शामिल होंगे जब कांग्रेस अध्यादेश मामले में उनके साथ खड़ी होगी। उनकी जिद के आगे कांग्रेस झुक गई और उसने यह घोषणा कर दी। केजरीवाल बैठक में खुशी-खुशी शामिल हो गये लेकिन कांग्रेस के समर्थन के बावजूद वह कानून पास हो गया।
वास्तव में केजरीवाल भी जानते थे कि कांग्रेस के समर्थन के बावजूद कानून को पास होने से वह रोक नहीं सकते लेकिन वह कांग्रेस को अपने सामने झुकाना चाहते थे और वह इसमें सफल रहे। गठबन्धन की मज़बूती दिखाने के लिये कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व चाहता है कि केजरीवाल गठबन्धन में बने रहें जबकि पंजाब, दिल्ली, गुजरात और गोवा की कांग्रेस यूनिट नहीं चाहती कि केजरीवाल के साथ कांग्रेस कोई समझौता करे। केजरीवाल भी नहीं चाहते हैं कि कांग्रेस के साथ समझौता किया जाये लेकिन मोदी विरोधी राजनीति के कारण वो ऐसा करने के लिये मजबूर हैं । 
 बदलते हालातों के कारण अब केजरीवाल चाहते हैं कि उन्हें गठबन्धन में बने रहना चाहिए। वास्तव में केंद्रीय जांच एजेंसियों का शिकंजा धीरे-धीरे आम आदमी पार्टी के नेताओं पर कसता जा रहा है। वह चाहते हैं कि जब मोदी सरकार उनके नेताओं पर कोई कार्यवाही करे तो उन्हें विपक्षी दलों का समर्थन प्राप्त हो ताकि मोदी सरकार पर दबाव बन सके। कांग्रेस का साथ पाने के लिये केजरीवाल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में प्रचार अभियान शुरू कर चुके हैं। वह इन राज्यों में चुनाव प्रचार की शुरुआत करके कांग्रेस पर दबाव बना रहे हैं कि कांग्रेस उनके साथ समझौता कर ले। वह चाहते हैं कि कांग्रेस दिल्ली और पंजाब आम आदमी पार्टी के लिये छोड़ दे तो केजरीवाल इन राज्यों को कांग्रेस के लिये छोड़ सकते हैं। देखा जाये तो यह एक तरह से धमकी देकर किसी को दोस्त बनाना कहा जायेगा लेकिन सच यही है कि केजरीवाल कांग्रेस के साथ यही कर रहे हैं । 
 जब राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द की गई तो आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के लिये भाजपा के प्रति ज़बरदस्त तरीके से अपना विरोध जताया। अडानी के मामले में ‘आप’ नेता संजय सिंह ने संसद में कांग्रेस के साथ मिलकर ज़बरदस्त नारेबाजी की थी। ऐसा लग रहा था कि वह राहुल गांधी के कांग्रेसियों से भी ज्यादा बड़े समर्थक हैं। अब वही संजय सिंह शराब घोटाले में गिरफ्तार हो चुके हैं और आजकल ईडी की रिमांड पर चल रहे हैं। संजय सिंह की गिरफ्तारी पर विपक्षी दलों में चुप्पी छाई हुई है। कुछ नेताओं के बयान आ रहे हैं लेकिन किसी भी विपक्षी दल ने अधिकारिक रूप से अपना विरोध दर्ज नहीं कराया है। किसी भी दल ने कोई प्रेस कॉन्फ्रैंस नहीं की है और न ही कोई विरोध प्रदर्शन किया है। 
सवाल उठता है कि क्या इसी दिन के लिये केजरीवाल ने गठबंधन का हिस्सा बनने का फैसला किया था। वह इसीलिए तो गठबन्धन में शामिल हुए थे कि उन्हें अपने नेताओं की गिरफ्तारी का डर सता रहा था। असल बात तो यह है कि केजरीवाल को अपनी ही गिरफ्तारी का डर सता रहा है। उन्हें यह एहसास हो चला है कि देर-सवेर ईडी या सीबीआई उनको भी गिरफ्तार कर सकती है। संजय सिंह की गिरफ्तारी पर विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया से केजरीवाल अच्छी तरह से जान चुके होंगे कि जब उनका नम्बर आयेगा तो गठबन्धन से उनको मदद मिलने वाली नहीं है। 
आम आदमी पार्टी के नेता अमानतुल्लाह खान के खिलाफ भी ईडी ने कार्यवाही शुरू कर दी है लेकिन कांग्रेस ने इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। कांग्रेस के इस रवैये के पीछे पंजाब की राजनीति भी है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान गठबंधन की परवाह किए बिना पंजाब कांग्रेस के बड़े नेताओं के खिलाफ  कार्रवाई कर रहे हैं। अब कांग्रेस के सामने सवाल खड़ा हो गया है कि जब उसके नेताओं के खिलाफ  कार्रवाई को केजरीवाल कानून का काम करना बता रहे हैं तो आम आदमी पार्टी के खिलाफ  भी कानून अपना काम कर रहा है। अब कांग्रेस के पास ऐसी कोई वजह नहीं है कि वह केजरीवाल का इस मामले में साथ दे। कांग्रेस केजरीवाल की चाल को अच्छी तरह से समझ गई है कि वो पंजाब में कांग्रेस को खत्म करना चाहते हैं। कांग्रेस न खुद केजरीवाल का साथ दे रही है और न ही गठबन्धन के घटक दलों को ऐसा करने के लिये प्रेरित कर रही है। 
केजरीवाल के नेताओं के खिलाफ  कार्यवाही से ऐसा लग रहा है कि केजरीवाल पूरी तरह से अकेले पड़ गए हैं। पिछले कई हफ्तों से भारतीय राजनीति में गठबंधन के होने का एहसास ही नहीं हो रहा है। सभी दल ‘अपनी ढपली अपना राग’ अलाप रहे हैं। केजरीवाल जान चुके हैं कि अगर मोदी सरकार उनके खिलाफ भी कार्यवाही करती है तो विपक्ष उनकी मदद को आने वाला नहीं है। देखा जाये तो ईडी और सीबीआई जिस तरह से कार्यवाही कर रही हैं, उसमें कोई किसी की मदद कर भी नहीं सकता। केजरीवाल के लिये आने वाले दिन कुछ अच्छा दिखाई नहीं दे रहा। उनके नेता एक एक करके केंद्रीय एजेंसियों के जाल में फंसते जा रहे हैं और वह अकेले पड़ते जा रहे हैं। विपक्षी गठबंधन ने भी उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया लगता है। (युवराज)