वायदों की बैसाखियों पर निर्भर होते राजनीतिक दल

देश के पांच राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम में सम्पन्न होने जा रहे विधानसभा चुनावों में प्रचार हेतु सक्रिय रूप से भाग ले रहे राजनीतिक दलों की ओर से अपने-अपने प्रदेशों में विभिन्न धरातलों पर वायदों, दावों, गारंटियों एवं अन्य कई प्रकार की घोषणाओं का दौर बड़ी तेज़ी से चला है। इस चुनाव अभियान के अन्तर्गत प्रथम चरण के अन्तर्गत विगत सात नवम्बर को मिज़ोरम की सभी 40 और छत्तीसगढ़ के नक्सल-प्रभावित क्षेत्र की 20 सीटों के चुनाव में लगभग 70 प्रतिशत तक मतदान रिकार्ड हुआ था। दूसरे चरण में भी 17 नवम्बर को छत्तीसगढ़ की शेष 70 सीटों और मध्य प्रदेश की सभी 280 सीटों हेतु 73 प्रतिशत तक मतदान हुआ बताया गया। आगामी दो चरणों में राजस्थान में 23 नवम्बर और तेलंगाना में 30 नवम्बर को मतदान होगा।
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और कि यहां निचले स्तर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था होने के कारण, वर्ष भर किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। अतीत में देश में होने वाले प्रत्येक चुनाव के अवसर पर प्राय: सभी राजनीतिक दल विशेष तौर पर सत्तारूढ़ और सत्ता हेतु प्रयत्नरत दल अपनी-अपनी नीतियों एवं कार्यक्रमों की घोषणाएं करते, और फिर अगले पांच वर्ष तक इन नीतियों एवं कार्यक्रमों के आधार पर जन-कल्याण और विकास कार्यक्रमों को सम्पन्न किया जाता, किन्तु विगत कुछ दशकों से इस जन-कल्याणकारी राजनीति का रंग-ढंग और चेहरा-मोहरा सब कुछ बदल गया है। मौजूदा राजनीति का मकसद आज येन-केन-प्रकारेण राजनीतिक सत्ता की कुर्सी को प्राप्त करना अथवा उसे अपने पास बनाये रखना ही रह गया है। यह भी कि इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए राजनीतिक दल और उनके नेता अधिकाधिक वायदों, दावों और घोषणाओं पर निर्भर करने लगे हैं। इस स्थिति की त्रासदी को इस प्रकार से समझा जा सकता है कि जन-समाज के बौद्धिक वर्ग ने इसे ‘रेवड़ी कल्चर’ कहना शुरू कर दिया है। 
मौजूदा चरण पर पांच राज्यों के चुनावों को उदाहरण रूप में लें, तो अब तक के चुनाव प्रचार के दौरान ऐसे ही वायदों एवं घोषणाओं का सहारा लिया जा रहा है। सभी राजनीतिक दल और बड़े नेता प्राय: रेवड़ी कल्चर पर ही निर्भर होते दिखाई दिये हैं। किसी भी राजनीतिक दल ने अपने राज्य के जन-समाज के कल्याण, प्रदेश के विकास, उन्नति अथवा विकास योजनाओं की एक भी सार्थक नीति अथवा कार्यक्रम की घोषणा नहीं की।   इन पांचों राज्यों में बेशक अनेक छोटे एवं क्षेत्रीय दल भी चुनावों में भाग लेने के दौरान स्थानीय समस्याओं के साथ दो-चार होते हुए सक्रिय भी रहे किन्तु देश के दो बड़े राजनीतिक दलों कांग्रेस एवं भाजपा के बीच मतदाताओं को रिझाने और भरमाने की जैसे एक होड़-सी लगी रही है। इस होड़ की शुरुआत सबसे पहले अखिल भारतीय कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा कांग्रेस की सरकार बनने पर महिलाओं को अतिरिक्त लाभ दिये जाने की घोषणा से हुई। प्रियंका गांधी ने कांग्रेस की सरकार बनने पर 500 रुपये में घरेलू सिलेण्डर दिये जाने और प्रत्येक महिला को 1500 रुपये प्रति माह देने की घोषणा की, तो मध्य प्रदेश में भाजपा का संकल्प पत्र इससे भी एक कदम आगे बढ़ गया। भाजपा ने उज्ज्वला योजना के तहत 450 रुपये में गैस सिलेण्डर और लाडली बहना योजना के तहत प्रत्येक महिला को 3000 रुपये तक नकद देने का वायदा कर डाला। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस योजना तहत एक हज़ार रुपये का भुगतान कर देने की घोषणा भी कर दी। लाडली बहना योजना को इतना प्रचार दिया गया कि स्वयं प्रधानमंत्री तक ने अपने भाषण में इसका ज़िक्र किया। इस योजना के तहत 1.30 करोड़ लाभपात्री महिलाओं को पक्के मकान और गरीब परिवारों की लड़कियों को इसी योजना के तहत एम.ए. तक की मुफ्त शिक्षा देने की घोषणा भी संकल्प पत्र में थी। कांग्रेस ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2600 और धान का 2500 रुपये देने की घोषणा की, तो भाजपा ने इसे 2700 और 3100 रुपये तक बढ़ा दिया। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और ‘आप’ के नेताओं ने कुछ सीमा तक बिजली मुफ्त देने का वायदा भी लगे हाथों कर दिया। तेलंगाना के लिए कांग्रेस का चुनावी घोषणा-पत्र जारी करते हुए कांग्रेसाध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी की छह गारंटियों में से महिलाओं को प्रति माह 2500 रुपये, 200 यूनिट मुफ्त बिजली और 500 रुपये में घरेलू गैस सिलेण्डर दिये जाने की घोषणा की है। 
किस्साकोताह यह, कि किसानों के हित-चिन्तन और लाडली बहना योजना तथा कांग्रेस के घोषणा-पत्र की छह गारंटियों के तहत महिलाओं को अतिरिक्त लाभ देने की घोषणाएं तो इन चुनावों के दौरान बहुत की गई हैं, किन्तु इन योजनाओं को पूरा कैसा किया जाएगा, इनके लिए वांछित धन की व्यवस्था कैसे की जाएगी, इसके बारे में किसी ने भी कोई खुलासा नहीं किया है। इन पांचों राज्यों की सरकारों ने चुनावों की घोषणा से पहले ही, चुनाव लड़ने के लिए हज़ारों करोड़ रुपये का ऋण लिया है। बहुत स्वाभाविक है कि इन घोषणाओं की पूर्ति के लिए भी चुनावों के बाद बनने वाली सरकारों को और ऋण लेना पड़ेगा। इन राज्यों के चुनावों में तीसरा पक्ष बन कर आम आदमी पार्टी भी बहुत सक्रिय हुई है, और कि उसने भी लोगों को मुफ्त बिजली का लालीपॉप दिखाया है, किन्तु इस पार्टी की पंजाब सरकार को अपना कामकाज चलाने के लिए अधिकतर ऋणों पर निर्भर करना पड़ रहा है। इस पार्टी की ओर से पंजाब में निर्माण श्रमिकों के लिए घोषित योजना तो औधे मुंह गिरी है, और कि उनके कल्याण की 91 हज़ार से अधिक फाईलें धन के अभाव में धूल फांक रही हैं। हम समझते हैं कि अधिकाधिक झूठे वायदों, दावों और एक-दूसरे को पीछे धकेलने की चाह में की जा रही घोषणाओं से ऐसा प्रतीत होता है जैसे सभी दल वायदों एवं घोषणाओं की बैसाखियों पर आश्रित होते जा रहे हैं। तथापि, जन-साधारण जहां मौजूदा राजनीति से उपराम होता जा रहा है, वहीं राजनीतिक दल देश के लोकतंत्र को भी उपहास का केन्द्र बनाते चले जा रहे हैं। इस यत्न में कोई एक राजनीतिक दल दोषी नहीं, अपितु सभी दल इस हमाम में वस्त्र-हीन दिखाई दिये हैं। विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र को अवसान की अगली पायदान पर लुढ़कने से बचाने के लिए,  देश की राजनीति को एक बार फिर पुरानी एवं परम्परावादी राजनीतिक विरासत की ओर लौटा ले चलना बहुत आवश्यक हो गया है। हम समझते हैं कि राजनीतिक दलों द्वारा इस देश की पुरातन राजनीति की ओर लौटने और लोकतंत्र की छवि को बचाये रखने के लिए जितना शीघ्र यत्न किये जाएंगे, नि:संदेह उतना ही यह राष्ट्र-हित में होगा।