क्यों खो दें हम सांस लेने का हक ?

आज के नाज़ुक समय में क्या हमारे पास सांस लेने का अधिकार भी रह सकता है या नहीं? हर साल ज़हरीली हवा की स्थायी समस्या पर क्या हमें गम्भीरता से सोचना नहीं चाहिए? ‘नैशनल क्लीन एयर प्रोग्राम’ क्या बुरी तरह असफल होता रहेगा? पिछले पांच साल से यह कार्यक्रम देश के सौ से अधिक शहरों में हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए शुरू किया गया है। हज़ारों करोड़ रुपये के बजट के बावजूद इस काम की सफलता क्यों संदिग्ध बनी रही है? इस भीषण वायु-प्रदूषण के समय में जो रास्ते बताये गये हैं, उनकी गम्भीर पड़ताल का समय आज नहीं तो कब आएगा? हम क्यों प्रभावी सफलता तक पहुंच नहीं पा रहे। दिल्ली और आस-पास के इलाकों में जो हालात हाल ही में देखे गए हैं, वे अवाम की सेहत के लिए कितने हानिकारक हैं, इस पर हर संवेदनशील व्यक्ति को सोचना होगा। जबकि पिछले पांच साल से केन्द्र सरकार ने जो ‘नैशनल क्लीन एयर प्रोग्राम’ चला रखा है उसके तहत देश के चुने हुए 132 शहरों की हवा साफ करने का कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम के ट्रेकर ने इसी दीप पर्व की आधी रात से शुरू कर अगले दिन के दोपहर तक देश के ग्यारह बड़े शहरों की वायु की शुद्धता जांचने का कार्य किया। इसके पहले ही वायु प्रदूषण झेलते 18 शहरों के अतिरिक्त  बावन अन्य शहरों की हवा बुरी तरह बिगड़ चुकी थी। इन बावन शहरों में उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, बंगाल के अनेक शहर शामिल हैं। 
दिल्ली के वायु प्रदूषण को देखते हुए सरकार ने हो रही आलोचना से घबरा कर कृत्रिम बारिश की योजना अमल में लाने की बात कह दी थी, परन्तु इन बावन शहरों को लेकर ऐसा कुछ सुनने में आया नहीं। हर साल वायु प्रदूषण से त्रस्त-ग्रस्त, बीमारियां झेलते नए शहरों में लगातार इज़ाफा होता रहा है। कारण वही है जो पहले थे और अब जड़े पकड़ गए हैं। इनके सीमित होने की जगह कारणों में इज़ाफा ही होता चला गया है। अनेक कारण सामने आए हैं, मसलन वाहन, कारखानों का प्रबन्ध, पराली जलाना और जलाते रहना, ईंट भट्ठों से निकलने वाली धूल तथा दीवाली की खुशी मनाने के लिए चलाये जाते लाखों रुपये के पटाखे। हमने अन्तत: प्रदूषणकारी तत्वों को पहचानने में अब कोई कोताही नहीं की, लेकिन उन पर नियन्त्रण करने और हवा को स्वच्छ बनाये रखने के प्रयास अभी भी संदेह के घेरे में हैं। अगर हम इनके स्रोतों को काबू में रख पाएं तो नागरिकों की सेहत पर काफी बुरा असर डालने वाले तत्वों पर रोक लगा पाएं तो काफी हद तक इन खतरों से बचाव किया जा सकता है। हमें अब किसी अस्थाई हल की जगह स्थाई हल की तरफ जाना होगा, तभी परिणाम आशाजनक हो सकते हैं और फिर जब हम जान गए हैं कि यह आपदा हर साल आती है तो इसके सम्पूर्ण उपचार की तरफ जाएं भी क्यों न।
पर्यावरण वन मंत्रालय ने 2018 में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण हेतु समयबद्ध रणनीति के तहत कार्यक्रम बनाया था। सभी के लिए स्वच्छ हवा आन्दोलन चलाया। मंत्रालय ने 2023 हेतु ‘स्वच्छ वायु के लिए एक साथ’ थीम रखा, जोकि इस साल पूरा हो रहा है। बड़े शहरों में सार्वजनिक परिवहान में ई बसों को शामिल करना और सुधार लाना ज़रूरी समझा गया। बिजली चालित वाहनों पर ज़ोर दिया गया। सी.एन.जी. स्टेशनों, चार्जिंग प्वाइंट्स बढ़ाना और जन-जागरूकता बढ़ाना जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए, लेकिन अधिकांश कार्यक्रमों की रफ्तार काफी सुस्त है। धुआं उगलती फैक्टरियों पर रोक कम ही है। जन-जागरूकता और  पटाखों पर नियन्त्रण कभी लगा ही नहीं। सौर ऊर्जा का प्रयोग अधिक हो पर उतना काम नहीं हो रहा। साइकिल लेन बनाकर साइकिल चलाने को प्रोत्साहन दिया जा सकता है।