तेलंगाना चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में तेज़ी से आगे बढ़ी कांग्रेस

जैसे-जैसे तेलंगाना चुनाव अपने अंतिम सप्ताह में पहुंच रहे हैं, भारत का सबसे युवा राज्य त्रिकोणीय चुनावी मुकाबले के लिए तैयार है। सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बी.आर.एस.), कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जीत के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। 2014 में अपनी स्थापना के बाद से बी.आर.एस. प्रमुख के. चंद्रशेखर राव शीर्ष पर रहे हैं। वह हैट्रिक लगाने को बेताब हैं। हालांकि सत्ता विरोधी लहर उनके लिए एक बड़ी चुनौती है। अलग तेलंगाना आंदोलन का सफलतापूर्वक नेतृत्व करने के बावजूद, उन्हें विभिन्न कारणों से लोकप्रियता में गिरावट का सामना करना पड़ा है।
2018 में आश्चर्यजनक रूप से चुनावों को समय से पहले रखते हुए, टी.आर.एस. 119 सदस्यीय विधानसभा में 88 सीटें जीतीं। कांग्रेस ने 19 और ए.आई.एम.आई.एम. ने 7 सीटें जीती थीं। वर्तमान में बी.आर.एस. अन्य दलों को तोड़कर कुल 99 सीटें बना चुकी हैं, जबकि कांग्रेस के पास 8 विधायक हैं। ए.आई.एम.आई.एम. और भाजपा के पास क्रमश: 7 और 6 विधायक हैं। के.सी.आर. ने अपने बेटे और बेटी सहित अपने परिवार के सदस्यों को प्रमुख पदों पर स्थापित किया है। उनके बेटे, केटी रामा राव, उप-मुख्यमंत्री हैं, उनकी बेटी कविता, एक सांसद हैं और उनका भतीजा एक मंत्री है।
राव के पास अपने और अपने परिवार के लिए बड़ी योजनाएं हैं। जीतने के बाद वह अपने बेटे को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित करने की योजना बना रहे हैं। राज्य स्तर के राजनेता होने से संतुष्ट नहीं, उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति पर अपनी नज़रें जमा ली हैं। पहले कदम के रूप में के.सी.आर. ने पार्टी का नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति से बदलकर भारत राष्ट्र समिति कर दिया, जो अधिक राष्ट्रीय दृष्टिकोण की ओर बदलाव का संकेत है।
राव ने पिछले दशक में तीसरा मोर्चा, संघीय मोर्चा और जिंजर ग्रुप बनाने का प्रयास किया था, लेकिन कोई उन्हें गंभीरता से लेने वाला नहीं था। नवगठित विपक्षी इंडिया गठबंधन ने भाजापा को चुनौती देने के अपने उद्देश्य के बावजूद अभी तक के.सी.आर. को अपने साथ शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया है। उनका आरोप है कि के.सी.आर. भाजपा की बी टीम है। यह चुनाव तीन प्राथमिक खिलाड़ियों के लिए एक सफल क्षण है, क्योंकि भाजपा तेलंगाना को दक्षिणी राजनीति में लाभ पाने के एक अवसर के रूप में देखता है। नतीजे नि:संदेह अगले साल के लोकसभा चुनाव की दिशा तय करेंगे।
तेलुगु देशम पार्टी (टी.डी.पी.) एक समय एक महत्वपूर्ण राजनीतिक खिलाड़ी थी, लेकिन पिछले दशक में कमजोर हो गई है। इसके नेता चंद्रबाबू नायडू भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं और उन्होंने घोषणा की है कि पार्टी आगामी चुनावों में भाग नहीं लेगी। इस बीच कांग्रेस पार्टी ने अपनी स्थिति फिर से हासिल कर ली है और बी.आर.एस. के लिए एक गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है।
राज्य में मुख्य विपक्षी दल बनने का भाजपा का लक्ष्य दूर की कौड़ी है। नगर निगम चुनाव में सुधार के बावजूद अब वह तीसरे स्थान पर खिसक गयी है। कर्नाटक में दो बार जीतने के अलावा भाजपा का एन.आर. कांग्रेस के साथ गठबंधन को छोड़कर दक्षिण भारत में कोई महत्वपूर्ण उपस्थिति नहीं है। भाजपा उत्तर में किसी भी संभावित नुकसान को संतुलित करने के लिए दक्षिण में अधिक सीटें हासिल करने का इरादा रखती है, जहां उनका विस्तार पहले से ही अपने चरम पर है।
कांग्रेस को 2014 में दबाव में आकर आंध्र प्रदेश को बांटने का अफसोस है। हैरानी की बात यह है कि यह कदम उल्टा पड़ गया क्योंकि लोगों ने कांग्रेस को खारिज कर दिया और तेलंगाना में टी.आर.एस. व आंध्र प्रदेश में  वाई.एस.आर.सी.पी. को अपना लिया।
के.सी.आर. ने दो निर्वाचन क्षेत्रों गजवेल और कामारेड्डी से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की है। गजवेल में उनका मुकाबला बी.आर.एस. के एक बागी से है, जबकि कामारेड्डी में उनका मुकाबला कांग्रेस नेता रेवंत रेड्डी से होगा। उन्होंने जोखिम लेने के बावजूद पार्टी में किसी भी विद्रोह से बचने के लिए सभी मंत्रियों और वरिष्ठ विधायकों को बरकरार रखा है। हालिया जनमत सर्वेक्षणों के अनुसार कांग्रेस पार्टी प्रतियोगिता में सबसे आगे है, उसके बाद बी.आर.एस. और भाजपा। बी.आर.एस. की पिछली बार की तुलना में कम सीटें जीतने की उम्मीद है, जबकि कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिलने का अनुमान है। ए.आई.एम.आई.एम. जिसकी सीमित उपस्थिति है, वही सीटें बरकरार रख सकती है। कुछ स्वतंत्र उम्मीदवार एक या दो सीटें जीत सकते हैं। भाजपा के चौथे स्थान पर रहने की उम्मीद है। 
रेवंत रेड्डी के नेतृत्व की बदौलत कांग्रेस तेजी से बढ़त हासिल कर रही है। सोनिया गांधी ने मतदाताओं का दिल जीतने के लिए छह लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा की, जिसमें महिलाओं के लिए 2500 रुपये और किसानों के लिए 15000 रुपये की पेशकश की गयी। उन्होंने भीड़ को यह भी याद दिलाया कि कांग्रेस ने 2014 में तेलंगाना बनाया था।
के.सी.आर. की सफलता उनकी राजनीतिक रणनीति पर निर्भर है। इसके विपरीत उनके विरोधी उनके परिवार की आलोचना करते हैं और उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हैं। के.सी.आर. 2014 में तेलंगाना मुद्दे पर विजयी हुए और 2018 के चुनाव में किसानों का समर्थन किया। हालांकि वर्तमान में उन्हें सत्ता विरोधी लहर, पुनर्जीवित कांग्रेस और केंद्र का सामना करना पड़ रहा है वह अपनी बेटी की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का प्रयास कर रहा है। (संवाद)