सलाम एवं ़खुश-आमदीद! 

ज़िन्दगी ने मृत्यु के विरुद्ध फिर जीत ली एक और जंग। ज़िन्दगी हमेशा जीतते आई है। अन्धेरा कितना भी घना-गहरा हो, प्रकाश की मात्र एक किरण उसे भेद देती है। उत्तराखंड के सिल्कियारा क्षेत्र में 17 दिन पूर्व घटित हुए एक सुरंग हादसे के दौरान भी ऐसा ही हुआ जहां निर्माणाधीन 4.5 कि.मी. लम्बी एक सुरंग का एक बड़ा हिस्सा ढह जाने से परियोजना से जुड़े 41 श्रमिक एवं कामगार अपने चारों ओर अन्धेरे और सीले मलबे के बीच फंस कर रह गये थे। यह हादसा विगत 12 नवम्बर को हुआ था जब पूरा देश अन्धेरे पर प्रकाश की विजय के पर्व दीपावाली को मनाने की तैयारियों में व्यस्त था, और निरन्तर संघर्ष के बाद जब ये सभी 41 लोग 17 दिन लम्बी सुरंग के अन्धेरे से बाहर निकले तो इन सभी के पारिवारिक जनों के साथ पूरे राष्ट्र ने भी जैसे एक बार फिर दीपावली के दीप जलाये हैं। नि:संदेह विगत 17 दिन तक निरन्तर इन 41 लोगों ने पत्थरों के बीच बनी इस सुरंग में हर पल ज़िन्दगी को मृत्यु से लड़ते हुए साक्षात अपनी आंखों से देखा। दूसरी ओर देश की पूरी सरकार और सत्ता-व्यवस्था ने अपने तमामतर संसाधनों के साथ, पत्थरों की सीना-शिलाओं को काट कर इन्हें सकुशल बाहर निकाला तो नि:संदेह ऐसा लगा, कि देश के करोड़ों लोगों की दुआएं फलीभूत हुई हैं।
नि:संदेह यह दुर्घटना अपने लौटते पांवों के निशानों के साथ-साथ अनेक ऐसे प्रश्न-चिन्ह भी छोड़ गई जिनके उत्तर की तलाश करना देश और सत्ता-व्यवस्था के लिए बेहद लाज़िमी हो जाएगा। बेशक यह हादसा किसी प्राकृतिक आपदा के कारण तो कदापि नहीं उपजा। यह प्राकृतिक पथों पर मनुष्य की किसी स्वार्थ-लिप्सा का परिणाम भी नहीं है, किन्तु नि:संदेह इस हादसे के लिए मानवीय त्रुटि अथवा मनुष्य की लापरवाही अवश्य ज़िम्मेदार रही है। बताया जाता है कि यह हादसा सुरंग के भीतर निर्माण-कार्यों में जुटे एक मानव-चालित वाहन के सुरंग की छत को सम्बल दे रहे एक स्तम्भ के साथ टकरा कर, उसके टूट जाने के कारण घटित हुआ। बेशक यह एक बड़ी चिन्ताजनक बात है। इतनी नाज़ुक, महंगी और महत्त्वपूर्ण परियोजना को सम्पन्न करने हेतु तैनात मशीनरी और जुटे लोगों के बीच इतनी-सी सोच एवं सूझबूझ तो अवश्य होनी चाहिए कि वे कार्य के दौरान कार्य-स्थल पर निरन्तर चौकसी व सतर्कता को बनाये रखें। यह चौकसी एवं सतर्कता  भीतरी और बाहरी दोनों धरातल पर होनी चाहिए। हम यह भली-भांति समझते हैं कि पहाड़ों पर मानव-जनित विकास कार्यों के कारण प्रकृति कुपित होती रहती है, और कि इस प्रकोप का प्रकटीकरण भी वह किसी न किसी रूप में अक्सर करती रहती है, किन्तु विकास और उन्नति के मौजूदा दौर में ऐसी योजनाओं-परियोजनाओं को रोका भी नहीं जा सकता। शेष विश्व के साथ समकक्षता बनाये रखने के लिए पहाड़ों को काट-छील कर सुरंगों और सड़कों को बनाया जाना भी ज़िन्दगी को जीने के लिए  उतना ही लाज़िम है, और इस क्रिया-पथ पर कई बार ऐसे मुकाम आ जाते हैं जहां ज़िन्दगी और मृत्यु एक-दूसरे के आमने-सामने आ खड़े होते हैं।
ऐसा ही एक मुकाम बना है यह सुरंग हादसा जहां सिल्कियारा और बारकोट को जोड़ने वाली लम्बी सुरंग के निर्माण कार्य के दौरान एकाएक एक छोटी-सी मानवीय भूल के कारण देश के 41 योद्धा नागरिकों की ज़िन्दगी दांव पर लग गई थी। तथापि, जैसा कि अक्सर होता आया है, ज़िन्दगी प्रत्येक विनाश-मैदान में से फतेहयाब होकर निकलती आई है। वर्तमान में भी देश की भारी-भरकम मशीनरी, प्रबुद्ध एवं प्रतिबद्ध तकनीकी एवं इंजीनियरिंग शक्ति और क्षमता तथा इन लोगों की ज़िन्दगी हेतु दुआ के लिए उठे करोड़ों हाथों की बदौलत न केवल इन 41 श्रमिकों को सकुशल अन्धी-अन्धेरी सुरंग से बाहर निकाल लिया गया, अपितु यह दुर्घटना भविष्य के लिए अनेक चुनौतियों एवं समाधानों का फलक भी तैयार कर गई। भारी-भरकम मशीनरी भले विकास कार्यों हेतु अति उत्तम रही हो, किन्तु अन्तत: मनुष्य के हाथ ही कर्मशाली होते हैं, यह भी इस घटना ने सिद्ध किया है। पहाड़ और पत्थरों से टकरा कर मशीनरी भी जब हांफ गई, तो महाभारत काल की चूहा-विधि से खोदी गई सुरंग की स्मृति ही अन्तत: काम आई। इन चूहा-मानवों ने फावड़े, कही और हथौड़ी-छैनी से पहाड़ को काट कर इन 41 लोगों को बचाने में बड़ी मदद की।
बचाव कार्यों की इस सफलता के बाद बेशक राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रशंसा और सन्तोष की अभिव्यक्ति की है, किन्तु हम समझते हैं कि इस भयावह त्रासदी से यह शिक्षा भी मिलती है कि विकास के साथ-साथ बचाव कार्यों एवं उपकरणों की व्यवस्था साथ-साथ करते जाना भी उतनी ही लाज़िमी है। इस सुरंग के दौरान भी न तो रैस्क्यू रूट की व्यवस्था की गई थी, न ह्यूम पाईपों का प्रबन्ध ही किया गया था। पहाड़ों में विकास कार्यों हेतु उनकी काट-तोड़ की ज़रूरत रहती है, किन्तु इस दौरान बचाव साधनों को भी उतना ही महत्त्व दिया जाना चाहिए। नि:संदेह रात-दिन बचाव कार्यों में लगे रहे लोगों के प्रति पूरा राष्ट्र अपने आभार को व्यक्त करता है। इन लोगों ने देश को प्रसन्नता का अवसर प्रदान किया है। हम इस हेतु जहां इन जां-बाज़ों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं, वहीं सुरंग से सकुशल निकल आये 41 योद्धाओं को ़खुशआमदीद भी कहते हैं। वैसे एक सलाम पूरे राष्ट्र का इन 41 श्रमिकों के प्रति भी बनता है, जिन्होंने निरन्तर 17 दिन तक अन्धेरों और सीलन भरे माहौल के बीच अपने भीतर जीवन और ज़िन्दगी की ऊर्जा को बनाये रखा जिससे 17 दिन बाद भी, अन्तत: उन्हें बचा रखने वाली आस की डोर कभी नहीं टूटी।